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. ★ पारमार्थिक स्वार्थ ★ जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्वरचित पद 'जोइ स्वारथ पहिचान, धन्य सोइ' की व्याख्या लेक्चर भाग-5 गौरांग महाप्रभु कहते हैं कि देखो सिद्धांत ज्ञान में लापरवाही न करना कि हमको क्या करना है, तुम्हारी भक्ति सम्बन्धी ज्ञान जितना आवश्यक है वो पक्के तौर से सदा रहना चाहिये। तुम्हारा स्वरूप क्या है भगवान का स्वरूप क्या है भक्ति का स्वरूप क्या है निष्कामता क्या है अनन्यता क्या है ये जितनी आवश्यक चीजें हैं तुम्हारे मार्ग की, उसकी थ्योरी उसका तत्त्वज्ञान सदा साथ रहना चाहिये। उसको बार-बार मनन करना चाहिये। आलस्य नहीं करना चाहिये, हम तो राधे राधे करेंगे। क्योंकि थोड़ा सा कुसंग मिला कि फिर तुम गिर जाओगे। और, अगर तत्त्वज्ञान परिपक्व होगा तुमको कुसंग कहीं सुनने में भी आ जाये तो हँस दोगे, अरे, ये बेचारे कुछ जानते-वानते नहीं हैं बच्चे हैं। इसलिये तत्त्वज्ञान परमावश्यक है। अनावश्यक तत्त्वज्ञान नहीं, जितना अपने मार्ग में आवश्यक है, उतना।