У нас вы можете посмотреть бесплатно चन्द्रशेखराष्टकम्(वनस्थ योगी श्री६श्री गुरुश्री शिवदत्त स्मारक गड्डी,जोधपुर) 9414849604 , 9829335510 или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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अथ चन्द्रशेखराष्टकस्तोत्रम् चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहि माम् । चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्ष माम् ॥१॥ रत्नसानु शरासनं रजताद्रि शृङ्गनिकेतनं सिञ्जिनीकृत पन्नगेश्वरमच्युतानन सायकम् । क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदिवालयैरभिवन्दितं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥२॥ पञ्चपादप पुष्पगन्धपदाम्बुजद्वय शोभितं भाललोचन जातपावक दग्धमन्मथविग्रहम् । भस्मदिग्ध कलेवरं भव नाशनं भवमव्ययं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥३॥ मत्तवारण मुख्यचर्मकृतोत्तरीय मनोहरं पङ्कजासन पद्मलोचन पूजिताध्रि सरोरुहम् । देवसिन्धुतरङ्गसीकर सिक्त शुभ्रजटाधरं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥४॥ यक्षराजसखं भगाक्षहरं भुजङ्ग विभूषणं शैलराजसुता परिष्कृत चारुवाम कलेवरम् । क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥५॥ कुण्डलीकृत कुण्डलेश्वर कुण्डलं वृषवाहनं नारदादि मुनीश्वर स्तुतवैभवं भुवनेश्वरम् । अन्धकान्धकमाश्रिताऽमरपादपं शमनान्तकं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥६॥ भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं दक्षयज्ञ विनाशनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम् । भुक्ति मुक्ति फलप्रदं सकलाघसङ्घनिबर्हणं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥७॥ भक्तवत्सलमर्चितं निधिमक्षयं हरिदम्बरं सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनुत्तमम् । सोमवारिद भूहुताशन सोमपानिलखाकृतिं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥८॥ विश्वसृष्टि विधायिनं पुनरेव पालनतत्परं संहरन्तमपि प्रपञ्चमशेषलोक निवासिनम् । क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथ समन्वितं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥९॥ मृत्युभीत मृकण्डसूनुकृतस्तवं शिवसन्निधौ यत्र कुत्र च यः पठेन्नहि तस्य मृत्युभयं भवेत् । पूर्णमायुररोगितामखिलार्थ सम्पदमादरं चन्द्रशेखर एव तस्य ददाति मुक्तिमयत्नतः ॥१०॥ चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहि माम् । चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्ष माम् ॥ चन्द्रशेखर पाहि माम् ।चन्द्रशेखर रक्ष माम् ।॥ इति श्रीचन्द्रशेखराष्टक सम्पूर्णम् ॥ कैलासके शिखरपर जिनका निवासगृह है , जिन्होंने मेरुगिरिका धनुष , नागराज वासुकिकी प्रत्यंचा और भगवान् विष्णुको अग्निमय बाण बनाकर तत्काल ही दैत्योंके तीनों पुरोंको दग्ध कर डाला था , सम्पूर्ण देवता जिनके चरणोंकी वन्दना करते हैं , उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ । यमराज मेरा क्या करेगा ? ॥ १॥ मन्दार , पारिजात , संतान , कल्पवृक्ष और हरिचन्दन - इन पाँच दिव्य वृक्षोंके पुष्पोंसे सुगन्धित युगल चरणकमल जिनकी शोभा बढ़ाते हैं , जिन्होंने अपने ललाटवर्ती नेत्रसे प्रकट हुई आगकी ज्वालामें कामदेवके शरीरको भस्म कर डाला था , जिनका श्रीविग्रह सदा भस्मसे विभूषित रहता है , जो भव - सबकी उत्पत्तिके कारण होते हुए भी भव - संसारके नाशक हैं तथा जिनका कभी विनाश नहीं होता , उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ । यमराज मेरा क्या करेगा ? ॥२॥ जो मतवाले गजराजके मुख्य चर्मकी चादर ओढ़े परम मनोहर जान पड़ते हैं , ब्रह्मा और विष्णु भी जिनके चरण - कमलोंकी पूजा करते हैं तथा जो देवताओं और सिद्धोंकी नदी गंगाकी तरंगोंसे भीगी हुई शीतल जटा धारण करते हैं उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ । यमराज मेरा क्या करेगा ? ॥ ३॥ गेडुल मारे हुए सर्पराज जिनके कानोंमें कुण्डलका काम देते हैं , जो वृषभपर सवारी करते हैं , नारद आदि मुनीश्वर जिनके वैभवकी स्तुति करते हैं , जो समस्त भुवनोंके स्वामी , अन्धकासुरका नाश करनेवाले , आश्रितजनोंके लिये कल्पवृक्षके समान और यमराजको भी शान्त करनेवाले हैं , उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ । यमराज मेरा क्या करेगा ? ॥४ ॥ जो यक्षराज कुबेरके सखा , भग देवताकी आँख फोड़नेवाले और सर्पोके आभूषण धारण करनेवाले हैं , जिनके श्रीविग्रहके सुन्दर वामभागको गिरिराजकिशोरी उमाने सुशोभित कर रखा है , कालकूट विष पीनेके कारण जिनका कण्ठभाग नीले रंगका दिखायी देता है , जो एक हाथमें फरसा और दूसरेमें मृग लिये रहते हैं , उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ । यमराज मेरा क्या करेगा ? ॥ ५ ॥ जो जन्म - मरणके रोगसे ग्रस्त पुरुषोंके लिये औषधरूप हैं , समस्त आपत्तियोंका निवारण और दक्ष यज्ञका विनाश करनेवाले हैं , सत्त्व आदि तीनों गुण जिनके स्वरूप हैं , जो तीन नेत्र धारण करते , भोग और मोक्षरूपी फल देते तथा सम्पूर्ण पापराशिका संहार करते हैं , उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ । यमराज मेरा क्या करेगा ? ॥ ६॥ जो भक्तोंपर दया करनेवाले हैं , अपनी पूजा करनेवाले मनुष्यों के लिये अक्षय निधि होते हुए भी जो स्वयं दिगम्बर रहते हैं , जो सब भूतोंके स्वामी , परात्पर , अप्रमेय और उपमारहित हैं , पृथ्वी , जल , आकाश , अग्नि और चन्द्रमाके द्वारा जिनका श्रीविग्रह सुरक्षित है , उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ । यमराज मेरा क्या करेगा ? ॥७ ॥ जो ब्रह्मारूपसे सम्पूर्ण विश्वकी सृष्टि करते , फिर विष्णुरूपसे सबके पालनमें संलग्न रहते और अन्तमें सारे प्रपंचका संहार करते हैं , सम्पूर्ण लोकोंमें जिनका निवास है तथा जो गणेशजीके पार्षदोंसे घिरकर दिन - रात भाँति - भाँतिके खेल किया करते हैं , उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ । यमराज मेरा क्या करेगा ? ॥ ८॥