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This video discus about the Book of Third Gender Titled " My Lakshmi My hijra" written by Lakshminarayana Tripati and translated by Dr. Sasikala Rai in Hindi, Radio Talk given by Prof. Narayana Raju. लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी द्वारा रचित ‘मैं हिजड़ा...मैं लक्ष्मी’ का हिंदी रूपांतरण - डॉ.शशिकला राय जी ने किया. लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी का जन्म मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में सबसे पहले लड़के राजू के रूप में हुआ. बचपन में डॉक्टर ने लक्ष्मी को पुरुष लैंगिकता की श्रेणी में दर्ज किया. माता-पिता ने भी अपने घर के बड़े बेटे की भाँति उसका लालन-पालन किया तथा खूब लाड-प्यार के साथ शिक्षा और संस्कार दिए. किन्तु लक्ष्मी उर्फ राजू में उम्र के साथ हाव-भाव और चाल-चलन में बदलाव दृष्टिगोचर होने लगे. लक्ष्मी स्वयं जिस लिंग में पैदा हुआ उसमें कतई सहजानुभूति नहीं था. शारीरिक बदलाव के साथ उसके साथ आस-पास के रिश्तेदारों और सहपाठियों के व्यवहार भी ठीक नहीं था. लक्ष्मी के बचपन से लेकर किन्नर समुदाय से जुड़ने और उनके अधिकार प्राप्ति तक के सफर के विभिन्न पहलुओं को इस आत्मकथा में उजागर किया गया है । राजू उर्फ लक्ष्मी बचपन में काफी बीमार रहता था इसके कारण काफी दुबला-पतला भी था. उसका सात वर्ष की उम्र पहली बार रिश्तेदार के लड़कों ने गाँव में यौन-शोषण किया. लक्ष्मी को डरा-धमकाकर घर भेज दिया गया कि यदि किसी को बता दिया तो उसकी और अधिक सजा मिलेगी. लक्ष्मी ने धीरे-धीरे अपने जीवन से अनचाहे लड़कों को दूर किया. वह अपनी लैंगिकता से परेशान होकर एक दिन अशोक राव कवि से मिलने जाती है. उन्होंने लक्ष्मी को प्रेरित करते हुए कहा था- “तुम एबनॉर्मल नहीं हो बच्चे, नॉर्मल ही हो. एबनॉर्मल है ये हमारे आस-पास की दुनिया...ये हमें समझ नहीं सकती. पर तुम उसके बारे में मत सोचो. यहाँ आये हो ना...अब हम मिलकर इसमें से रास्ता निकालेंगे. अब तुम जो कर रहे हो,वही करो. अभी तुम बच्चे हो. पढ़ाई करो. डांस सीख रहे ,वो सीखते रहो...कुछ भी बदलाव लाने की जरूरत नहीं है. ” (2) अर्थात् स्पष्ट है कि समाज और स्कूल में ऐसे बच्चों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है. जिसके कारण लैंगिक विकृति वाले बच्चे मानसिक प्रताड़ना के शिकार बन जाते है. लक्ष्मी जैसे समझदार अलैंगिक किशोर को इतनी समस्या का सामना करना पड़ा यदि इसके साथ सामान्य किन्नर बच्चों की क्या दशा होगी जिन्हें कोई माता-पिता भी स्वीकार नहीं करते है. इस प्रकार के सामाजिक और सहपाठियों के शोषण के साथ लक्ष्मी ने कॉलेज तक की पढ़ाई पूरी की और तन्मयता के साथ भरतनाट्यम का प्रशिक्षण देने की शुरुआत करते हुए आत्मनिर्भरता की तलाश में लगी रही. प्रस्तुत आत्मकथा लक्ष्मी के बचपन से लेकर किशोरावस्था, युवावस्था के साथ प्रौढ़ावस्था का संघर्ष, समर्पण, सफलता, आशा, विश्वास, प्रेरणा और जीवन के उतार-चढ़ावों का दस्तावेज है. जो तमाम लोगों को जीवन मूल्य और जीवन की सार्थकता को बनाए रखने का गुर व हुनर सिखाता है. इसमें भारतीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के किन्नरों के जीवन की समानता –असमानता के साथ धार्मिक,आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक कारणों से किन्नर समुदाय के साथ होने वाले भेदभाव और उनकी यथार्थ स्थिति को लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने सफलतापूर्वक चित्रण किया है. VIEW BLOG http://drnarayanaraju.blogspot.com/ Website: https://sites.google.com/view/profvna...