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🌸 गुरु प्यारी, सत्कारयोग साध संगत जी, राधा स्वामी! 🌸 आज, 23 मार्च, डेरा ब्यास में बाबा जी ने सत्संग फरमाया। इस विशेष सत्संग में भारी संख्या में संगत उपस्थित रही, और हर एक ने इस आध्यात्मिक संगति का आनंद लिया। सत्संग की बानी ली गई थी— 📖 "हर की पूजा दुर्लभ है संतो।" बाबा जी ने इस बानी की गहराई को समझाते हुए बताया कि यह तीसरे पातशाह जी की वाणी है, जो हमें भक्ति के सही साधनों को अपनाने की शिक्षा देती है। धर्म, मजहब और आध्यात्मिकता की मूल समझ बाबा जी ने इस तथ्य पर जोर दिया कि हम सभी किसी न किसी धर्म से जुड़े हैं, और हर धर्म की अपनी भक्ति-पद्धति होती है। लेकिन जब गहराई से देखा जाए, तो सभी धर्मों का परम उद्देश्य एक ही होता है—परमात्मा की भक्ति। ➡ आध्यात्मिक साधन बाहरी रूप से अलग हो सकते हैं, क्योंकि हर देश, हर समय, और हर संस्कृति की अपनी परिस्थितियाँ होती हैं। लेकिन परमार्थी साधन सदैव एक से ही होते हैं। ➡ महापुरुषों ने समय की जरूरत को समझते हुए साधनों में बदलाव किए, ताकि हम सही राह पर चल सकें। सत्य और भक्ति का सही मार्ग बाबा जी ने एक सुंदर उदाहरण दिया— जब कोई बच्चा किसी विषय में कमजोर होता है, तो माता-पिता उसकी ट्यूशन लगवा देते हैं। अब, यदि बच्चा यह सोचने लगे कि बस इसी विषय पर ध्यान देना है और बाकी को छोड़ देना है, तो वह पास नहीं हो सकता। इसी तरह, कई लोग बाहरी पूजा-पाठ को ही भक्ति मान बैठते हैं, लेकिन असल भक्ति वह है, जो अंतर में की जाती है। ➡ क्या परमात्मा अलग-अलग है? बाबा जी ने स्पष्ट किया कि कोई भी धर्म यह नहीं कहता कि मालिक दो या तीन हैं। सबका मालिक एक ही है। फिर हम क्यों धर्मों में बंटे हुए हैं? ➡ नामों का महत्व और सत्य दसवें पातशाह जी ने 1100-1200 नाम लिखने के बाद "अलख" शब्द का प्रयोग किया, जिसका अर्थ है— जिसका कोई नाम नहीं। "बलिहारी जाऊं, जिते तेरे नाम हैं।" यानी हमें नामों में नहीं उलझना चाहिए, बल्कि उसके मूल स्वरूप को समझना चाहिए। गुरु, शब्द, और भक्ति का महत्व 📖 "शब्द गुरु, सूर धुन" गुरु कोई शरीर नहीं होता, बल्कि गुरु शब्द रूप में होता है। जब हम ध्यान को समेटकर अपनी सूरत को गुरु के शब्द से जोड़ते हैं, तभी असली आध्यात्मिक उन्नति होती है। ➡ क्या मालिक बाहर है? बाबा जी ने समझाया कि— "घट-घट में हरि बसै, संतन कहयो पुकार।" परमात्मा बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर ही विराजमान है। लेकिन हम उसे बाहर ढूँढने की भूल करते हैं। ➡ संत महापुरुषों की सिखाई हुई भक्ति महापुरुष हमें भक्ति के लिए प्रेरित करते हैं, न कि सिर्फ बाहरी दिखावे के लिए। ➡ बाबा जी ने यह भी समझाया कि "माथा टेकना या नाक रगड़ना" ही भक्ति नहीं है, बल्कि असली भक्ति अंतर में परमात्मा को खोजना है। भक्ति का वर्तमान युग और नाम की शक्ति "अब कली आई रे, इक नाम बोवो।" कलयुग में संतों ने नाम भक्ति को प्रमुख बताया क्योंकि यह सबसे आसान और प्रभावी साधन है। ➡ पहले के युगों में अलग-अलग साधन अपनाए गए थे, लेकिन आज के समय में नाम भक्ति ही सबसे उपयुक्त है। ➡ बाबा जी ने स्पष्ट किया कि— "पुण्य, दान, जप, तप, जेते—सब ऊपर नाम हरि हरि रसना जो जपे।" यानी केवल पढ़ने से नहीं, बल्कि नाम को जपने और हृदय से जोड़ने से ही मोक्ष संभव है। मीराबाई का उदाहरण और सच्ची दौलत 📖 "पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो।" मीराबाई जैसी महान संत ने नाम को ही असली धन बताया। ➡ उन्होंने सांसारिक संपत्ति को नहीं, बल्कि नाम की अमोलक वस्तु को सबसे अनमोल बताया। ➡ "वस्तु अमोलक दी, मेरे सतगुरु कृपा कर अपनायो।" ➡ बाबा जी ने समझाया कि— "गुरु हमें अपनाते हैं, न कि हम गुरु को अपनाते हैं।" धर्म, जाति और भक्ति की सच्चाई ➡ महापुरुष हमें मूर्तियों या प्रतीकों की पूजा के लिए नहीं कहते, बल्कि खुद एक उदाहरण बनकर हमें सिखाते हैं। ➡ बाबा जी ने जोर दिया कि— "मिलेगा तो अपनी कमाई से मिलेगा, किसी और की कमाई से नहीं।" अर्थात, भक्ति का लाभ तभी होगा, जब हम खुद प्रयास करेंगे। ➡ "सब किछ में बाहर नाही, बाहर ढूंढे सो परम भुलाई।" ➡ बाबा जी ने बताया कि परमात्मा बाहर नहीं, हमारे अंदर ही है। गुरु की पहचान और शब्द की महिमा 📖 "एक संगत, एक गृह वास्ते मिल बैठ ना करते भाई।" अर्थात, आत्मा और परमात्मा दोनों हमारे भीतर ही हैं, लेकिन अज्ञानता की वजह से हम उसे बाहर खोजने में लगे हैं। ➡ दसवीं पातशाही ने मालिक के 1300 नाम लिखे और अंत में कहा "अनामी"— यानी जिसका कोई नाम नहीं। 📖 "एक-एक है, दूजा ना है कोई।" ➡ बाबा जी ने समझाया कि गुरु का स्वरूप शब्द में ही निहित होता है। मन की महत्ता और भक्ति का सही रूप ➡ बाबा जी ने मन को समझाने के लिए हजूर महाराज का वचन बताया— 📖 "मन से बड़ा दोस्त कोई नहीं, अगर यह काबू में हो। लेकिन मन से बड़ा दुश्मन भी कोई नहीं, अगर यह काबू में न हो।" ➡ मन को सही दिशा देने के लिए भजन-सुमिरन जरूरी है। ➡ जब तक मन को सही दिशा नहीं मिलेगी, तब तक हम आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकते। निष्कर्ष 📌 बाबा जी ने सत्संग में मुख्य रूप से समझाया कि— ✅ परमात्मा बाहर नहीं, हमारे भीतर है। ✅ असली भक्ति बाहरी पूजा नहीं, बल्कि अंतर की खोज है। ✅ धर्मों में फर्क भले ही हो, लेकिन परमात्मा सभी के लिए एक ही है। ✅ गुरु कोई शरीर नहीं, बल्कि शब्द रूप में होता है। ✅ मन को काबू में रखना ही असली साधना है। 🌿 सत्संग हमें यह सिखाता है कि मालिक को कैसे पहचाना जाए और सच्ची भक्ति का मार्ग क्या है। ✨ राधा स्वामी! ✨ #radhasoamisatsang #derabeaslive #derabeasofficial #radhasoamibabaji #rssbdiscourses #satsangbeas #beassatsang #radhasoamisatsangbeas #derabeassatsang #satsanglive #gurukikripa #spiritualguidance #rssbqna #derabeasupdates #naamdanseva #rssbmeditation #derabeasparivar #sevasatsang #radhasoamisangat #radhasoami #sangatbeaski #derabeas #babajiqna #santmat #naamdaan #guruvani #sevabhakti #bhajansimran #spiritualjourney #faithinguru #satsang #meditation