У нас вы можете посмотреть бесплатно Pathmeda Gaushala New Documentary पथमेड़ा गौशाला की अद्भूत डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
Jay Gaumata, This video is downloaded from following channel / @godhampathmedaofficial Shree Godham Mahatirth Anandvan Pathmeda, Teh: Sanchore, Dist:Jalore (Rajasthan)- 343041 +91-7073 000 151 Online Donation Link:- http://www.godhampathmeda.org/ गोग्रास घास-चारा सहायता हेतु Bank of Baroda (SAVING ACCOUNT) SHRI GODHAM MAHATEERTH PATHMEDA LOK PUNYARTH NYAS A/c – 08490100023827 IFSC CODE- BARB0ASHRAM ( Fifth character is zero) BRANCH ASHRAM ROAD AHMEDABAD, PAN NO. AATTS3459A Donation Enquiry - +917665059999, +917073000250 State Bank Of India (SAVING ACCOUNT) Shri Gopal Govrdhan Goshala Pathmeda Branch : Pathmeda A/c no : 51055523971 Ifsc: SBIN0032237 PAN- AAATG0739J Donation Enquiry- +918003392300 रचनात्मक गोसेवा महाभियान की प्रेरणा व प्राकट्य वेदलक्षणा गोवंश के लिये प्राणलेवा भयंकर दुष्काल ईस्वी सन् 1987 से 1993 के मध्य गोरक्षा आन्दोलन का विधेयात्मक (सकारात्मक) स्वरूप देशवासियों के सामने आया। उपरोक्त समयावधि में माँ नर्मदा एवं कल्पगुरु दत्तात्रेय भगवान की प्रेरणा से परम श्रद्धेय गोऋषि स्वामी श्रीदत्तशरणानन्दजी महाराज का राजस्थान की भूमि पर लम्बे अज्ञातकाल के बाद आगमन हुआ। कुछ सत्संगी साधकों द्वारा अगस्त सन् 1992 में एकान्त स्थली के रूप में सांचोर शहर के निकट आनन्दवन पथमेड़ा गोचरभूमि पर स्थित कामधेनु सरोवर के सन्निकट स्थान चयनित किया। यह आनन्दवन पथमेड़ा भारत देश की वह पावन व मनोरम गोचारण भूमि है जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र से द्वारिका जाते समय श्रावण, भादों महिने में रुककर वृन्दावन से लायी हुई भूमण्डल की सर्वाधिक दुधारू, जुझारू, साहसी, शौर्यवान, सौम्यवान, ब्रह्मस्वरूपा वेदलक्षणा गायों के चरने व विचरने के लिए चुना था। यह आनंदवन मारवाड़, काठियावाड़ तथा थारपारकर की गोपालन लोक संस्कृति का ललित संयोग तो है ही,साथ ही भूगर्भ में बह रही पावन सरस्वती, कच्छ के रण में फैली हुई सिन्धु तथा धरा पर बहने वाली सावित्री (लुणी) नदी द्वारा जन्म-जन्म के पापों का शमन करने वाले श्रीकृष्ण,कामधेनु एवं कल्पगुरु दत्तात्रेय की आराधना का परम पावन त्रिवेणी संगम स्थल है। इसी मांगलिक धरा पर सतचर्चा एवंप्रयोगिक साधना का अनुष्ठान प्रारम्भ हुआ। भगवत् प्रेरणा से इस दिव्य धर्मधरा पर शीघ्र ही परमहंस श्रीमगारामजी राजगुरु एवं पूज्य सिद्ध बाबा हरिनाथजी महाराजका आगमन हुआ। यहाँ निवास करते हुए उपरोक्त महापुरुषों को भगवान की दिव्य गोचारण लीलाओं का स्फुरण हुआ। उसमें एक अतिविशिष्ठ भगवतलीला स्फुरणा में अनुभूति हुई कि ब्रज की सौम्यवान, शोर्यवान एवं ब्रह्मस्वरूपा उन्नत नस्ल की लाखों गोमाताओं के साथ गोप-गोपियों का समूह ब्रज से श्रीद्वारिकापुरी की ओर आ रहा है। उधर श्रीद्वारिकापुरी से श्रीद्वारिकाधीश भगवान अपने कई मंत्रीयों तथा परिजनों के साथ सामने आ रहे हैं। इन दोनों का मिलन इस भूमि पर हुआ, यहाँ कई दिनों तक परस्पर मिलन स्नेहमयी चर्चा और गोदर्शनपूजन, अर्चन करते हुए श्रीकृष्ण भगवान आनन्दातिरेक में विभोर रहे। श्रीउद्धवजी ने भगवान श्रीद्वारिकाधीश को स्मरण करवाया कि अभी-अभी द्वारिका बसी है, वहाँ पर अनेक प्रकार की आशंकाएँ विद्ध्यमान है अतः शीघ्र ही द्वारिकापुरी की ओर चलना चाहिए। श्रीद्वारिकाधीश बोले- कि हे उद्धव! इस स्थान पर भीतर-बाहर सर्वत्र आनन्द ही आनन्दकी अनुभूति होती है। मुझे तो यह गोचर वन ही आनन्द से निर्मित लग रहा है,वास्तव में यह आनन्दवन ही है। यहाँ पर मुझे अपनी अत्यन्त प्रिय गोमाताओं, गोपों आदि के साथ समागम प्राप्त हुआ है। इसी भूमि से वेदलक्षणा गोपालन लोकसंस्कृति का विस्तार करने के लिये हमारे यदुवंशी परिवार के किसी एक गोप्रेमी वीर पुरुष का चयन किया जायेगा यह कहकर साथ में आये एक विशिष्ठ पुरुष से गो-गोप-गोपियों के प्रबन्ध का कार्य प्रारम्भ कराके फिर द्वारिकापुरी की ओर चल पड़े। इस लीला दर्शन के बाद प्रातःकाल पूज्य श्रीनाथजी एवं पूज्य श्रीपरमहंसजी ने गोऋषिजी से परामर्श करके इसी स्थान पर राष्ट्रव्यापी रचनात्मक गोसेवा महाभियान के लिये अभिजित् मुहुर्त में जाल (पिलू) के वृक्ष पर केसरिया ध्वज चढ़ाकर यह घोषणा की कि भारत में गोपालन लोक संस्कृति की पुनःस्थापना शंखनाद इसी जगह से होगा। इसके बाद में इस आनन्दवन गोचर भूमि को जहरीले किंकरों से मुक्त करवाया। इस भूमि पर सामाजिक सहयोग से वन्य जीवों की हिंसा पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया और एक जलकूप, कच्चा संत निवास तथा लघु वृक्षवाटिका का निर्माण किया गया। सज्जनों! गत 12 शताब्दियों से कामधेनु, कपिला, सुरभि की सन्तान वेदलक्षणा गोवंश पर होने वाले अत्याचार रोकने के लिये 17 सितम्बर, सन् 1993 के दिन सद्गुरु श्रीदत्तात्रेय भगवान एवं जगद्गुरु श्रीगोपालकृष्ण भगवान के सर्वकल्याणकारी भाव से पुनः भारत की पवित्र गोचारण भूमि द्वारिका क्षेत्र आनन्दवन पथमेड़ा से राष्ट्रव्यापी रचनात्मक एवं सृजनात्मक गोसेवा महाभियान का सूत्रपात हुआ। जहाँ सांचोर-राजस्थान के गोरक्षक वीरों द्वारा पाकिस्तान की सीमा से कत्लखाने जाते हुए 8 गायें, 5 बच्छड़ों सहित 13 गोवंश को छुड़ाकर इस भूमि पर लाया। स्थानीय गोभक्तों के निवेदन प.पूज्य परमहंस श्रीमगारामजी राजगुरु तथा सिद्ध बाबा हरिनाथजी महाराज के आत्मीय आग्रह एवं पूज्य श्रीगोऋषिजी की स्वीकृति से उपरोक्त वेदलक्षणा गोमाताओं के सहज, सर्वहितकारी आगमन पर गोसेवा का महाप्रकल्प इस धरा पर प्रारम्भ । पूज्य गोसेवा प्रेमी संतों एवं गोऋषिजी ने इस गोसेवा प्रकल्प का नाम‘श्री गोधाम महातीर्थ, आन्दवन पथमेड़ा’ रखा। सादर प्रणाम, "जय गौमाता जय गोपाल"