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🧔🏻♂आचार्य प्रशांत गीता पढ़ा रहे हैं। घर बैठे लाइव सत्रों से जुड़ें, अभी फॉर्म भरें — https://acharyaprashant.org/hi/enquir... 📚 आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं? फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?... 📲 आचार्य प्रशांत की मोबाइल ऐप डाउनलोड करें: Android: https://play.google.com/store/apps/de... iOS: https://apps.apple.com/in/app/acharya... 📝 चुनिंदा बोध लेख पढ़ें, खास आपके लिए: https://acharyaprashant.org/en/articl... ➖➖➖➖➖➖ #MahatmaGandhi, #Ahimsa, #Dharma, #Violence, #WhatsAppForward, #Hinduism, #Mahabharata, #BhagavadGita, #Truth, #Spirituality, #SocialIssues, #Education, #Modernity, #IndianCulture, #ReligiousTexts, #SocialResponsibility, #Awareness, #InnerPeace, #HistoricalContext, #EthicalDilemmas, #CulturalCritique, #PoliticalCommentary, #Consumerism, #HumanValues, #PersonalGrowth, #Philosophy, #MoralLessons, #SocialJustice, #Leadership, #CommunityAwareness वीडियो जानकारी: 25.02.23, वेदांत महोत्सव, ऋषिकेश "अहिंसा परमो धर्मः गलत है, हिंसा ही धर्म है" || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2023) 📋 Video Chapters: 0:00 - Intro 2:04 - गांधी जी की अहिंसा की शिक्षा और उसके प्रभाव पर चर्चा 9:59 - धर्म ग्रंथों के साथ खिलवाड़ और उसके परिणाम 17:32 - धर्म ग्रंथों के प्रति असत्य प्रचार कौन कर रहा? 24:25 - 'Discovery of India' किताब को ले कर चर्चा 31:32 - कौन कैसा है जानने के लिए पढ़ना होगा, मानना नहीं है (तथ्य के निकट आना) 38:03 - आचार्य जी का हम सबको संदेश 45:04 - समापन प्रसंग: ~ "अहिंसा परमो धर्मः गलत है, हिंसा ही धर्म है"? ~ अहिंसा परमो धर्मः का असली अर्थ क्या? ~ भगवद् गीता में श्रीकृष्ण क्या बताते हैं अर्जुन को? ~ श्रीकृष्ण द्वारा दी गई धर्म की परिभाषा क्या है? ~ ऐसा क्यों कहा जाता है कि कलयुग के बाद सतयुग आएगा? ~ जब पाप बढ़ जाता है तो श्रीकृष्ण आते हैं, इसका क्या अर्थ है? ~ अधर्म बढ़ने पर अधर्म को ख़त्म करने के लिए धर्म की स्थापना खुद ही होती है इसका क्या अर्थ है? संगीत: मिलिंद दाते ~~~~~ 11.12 व 11.13, पौलोमपर्व, आदिपर्व स डौण्डुभं परित्यज्य रूपं विप्रर्षभस्तदा । स्वरूपं भास्वरं भूयः प्रतिपेदे महायशाः ।। १२ ।। इदं चोवाच वचनं रुरुमप्रतिमौजसम् । अहिंसा परमो धर्मः सर्वप्राणभृतां वर ।। १३ ।। इतना कहकर महायशस्वी विप्रवर सहस्रपादने डुण्डुभका रूप त्यागकर पुनः अपने प्रकाशमान स्वरूपको प्राप्त कर लिया। फिर अनुपम ओजवाले रुरुसे यह बात कही—‘समस्त प्राणियोंमें श्रेष्ठ ब्राह्मण! अहिंसा सबसे उत्तम धर्म है ।। १२-१३ ।। 207.74, मार्कण्डेयसमास्यापर्व, वनपर्व अहिंसा सत्यवचनं सर्वभूतहितं परम् । अहिंसा परमो धर्मः स च सत्ये प्रतिष्ठितः । सत्ये कृत्वा प्रतिष्ठां तु प्रवर्तन्ते प्रवृत्तयः ।। ७४ ।। अहिंसा और सत्यभाषण—ये समस्त प्राणियोंके लिये अत्यन्त हितकर हैं। अहिंसा सबसे महान् धर्म है, परंतु वह सत्यमें ही प्रतिष्ठित है। सत्यके ही आधारपर श्रेष्ठ पुरुषोंके सभी कार्य आरम्भ होते हैं ।। ७४ ।। 115.23, दानधर्मपर्व, अनुशासनपर्व अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः। अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते ।। २३ ।। अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तप है और अहिंसा परम सत्य है; क्योंकि उसीसे धर्मकी प्रवृत्ति होती है ।। २३ ।। 116.28, दानधर्मपर्व, अनुशासनपर्व अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परो दमः । अहिंसा परमं दानमहिंसा परमं तपः ।। २८ ।। अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम संयम है, अहिंसा परम दान है और अहिंसा परम तपस्या है ।। 245.4, दानधर्मपर्व, अनुशासनपर्व श्रीमहेश्वर उवाच अहिंसा परमो धर्मो ह्यहिंसा परमं सुखम्। अहिंसा धर्मशास्त्रेषु सर्वेषु परमं पदम् ।। श्रीमहेश्वरने कहा—अहिंसा परम धर्म है। अहिंसा परम सुख है। सम्पूर्ण धर्मशास्त्रोंमें अहिंसाको परमपद बताया गया है ।। 43.20 व 43.21 अनुगीतापर्व, आश्वमेधिकपर्व अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि नियतं धर्मलक्षणम् ।। २० ।। अहिंसा परमो धर्मो हिंसा चाधर्मलक्षणा । प्रकाशलक्षणा देवा मनुष्याः कर्मलक्षणाः ।। २१ ।। अब मैं सबके नियत धर्म के लक्षणों का वर्णन करता हूँ। अहिंसा सबसे श्रेष्ठ धर्म है और हिंसा अधर्म का लक्षण (स्वरूप) है। प्रकाश देवताओं का और यज्ञ आदि कर्म मनुष्यों का लक्षण है ।। २०-२१ ।।