У нас вы можете посмотреть бесплатно चक्रवर्ति सम्राट अशोक или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
सम्राट अशोक, जिन्हें अशोक महान के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास के सबसे प्रभावशाली और प्रसिद्ध शासकों में से एक थे। वे मौर्य साम्राज्य के तीसरे सम्राट थे और तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में शासन करते थे। उनका शासनकाल लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक माना जाता है। अशोक का जीवन और शासन एक क्रूर योद्धा से शांतिप्रिय बौद्ध शासक तक की अद्भुत यात्रा को दर्शाता है। आइए, उनके जीवन, शासन और योगदान के बारे में विस्तार से जानते हैं। प्रारंभिक जीवन अशोक का जन्म 304 ईसा पूर्व में हुआ था। वे मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के पौत्र और सम्राट बिंदुसार के पुत्र थे। उनकी माता का नाम विभिन्न स्रोतों में अलग-अलग बताया जाता है, लेकिन कुछ ग्रंथों में उन्हें सुभद्रांगी या धर्मा कहा गया है। अशोक के बचपन और युवावस्था के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वे एक कुशल योद्धा और प्रशासक थे। उनके पिता बिंदुसार ने उन्हें उज्जैन और तक्षशिला जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों का शासक नियुक्त किया था, जहां उन्होंने विद्रोहों को दबाने में अपनी योग्यता साबित की। सिंहासन पर चढ़ाई बिंदुसार की मृत्यु के बाद, अशोक ने अपने भाइयों के साथ उत्तराधिकार के लिए संघर्ष किया। कुछ ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, इस संघर्ष में उन्होंने अपने कई भाइयों की हत्या करवाई, हालांकि इन कहानियों की सत्यता पर बहस होती है। अंततः, वे 268 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के सम्राट बने। शुरुआती शासनकाल में अशोक एक कठोर और विस्तारवादी शासक थे, जो अपने साम्राज्य को मजबूत करने और विस्तार करने में लगे रहे। कलिंग युद्ध और परिवर्तन अशोक के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्होंने कलिंग (आधुनिक ओडिशा) पर आक्रमण किया। यह युद्ध 261 ईसा पूर्व में हुआ और इसे भारतीय इतिहास के सबसे रक्तरंजित युद्धों में से एक माना जाता है। कलिंग युद्ध में लाखों लोग मारे गए, घायल हुए या विस्थापित हो गए। इस युद्ध की भयावहता ने अशोक के हृदय को गहरे तक प्रभावित किया। युद्ध के बाद की तबाही और मानवीय पीड़ा को देखकर उन्हें गहरा पश्चाताप हुआ। इसी दौरान अशोक बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुए। ऐसा कहा जाता है कि एक बौद्ध भिक्षु उपगुप्त ने उन्हें बौद्ध धर्म के सिद्धांतों से परिचित कराया। इसके बाद, अशोक ने हिंसा का मार्ग त्याग दिया और अहिंसा, करुणा और शांति के सिद्धांतों को अपनाया। यह परिवर्तन उनके जीवन और शासन का आधार बन गया। बौद्ध धर्म का प्रचार कलिंग युद्ध के बाद, अशोक ने बौद्ध धर्म को न केवल अपने जीवन में अपनाया, बल्कि इसे अपने विशाल साम्राज्य और उसके बाहर भी फैलाने का संकल्प लिया। उन्होंने बौद्ध धर्म को एक राज्य धर्म के रूप में प्रोत्साहित किया, लेकिन अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णुता दिखाई। अशोक ने अपने साम्राज्य में कई शिलालेख (अशोक के अभिलेख) स्थापित किए, जिनमें उनके आदेश, नीतियां और बौद्ध सिद्धांतों का उल्लेख है। ये शिलालेख ब्राह्मी, खरोष्ठी, अरमाइक और ग्रीक जैसी विभिन्न लिपियों में लिखे गए थे, जो उनकी व्यापक पहुंच को दर्शाते हैं। उन्होंने बौद्ध संन्यासियों को श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, मध्य एशिया और यहां तक कि यूनान और मिस्र जैसे क्षेत्रों में भेजा ताकि बौद्ध धर्म का प्रचार हो सके। अशोक ने सारनाथ में प्रसिद्ध अशोक स्तंभ भी बनवाया, जिसका शीर्ष भाग (चार शेरों वाला चिह्न) आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है। शासन और सुधार अशोक का शासन केवल धार्मिक प्रचार तक सीमित नहीं था। उन्होंने अपने साम्राज्य में कई सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक सुधार किए। उनके कुछ प्रमुख योगदान इस प्रकार हैं: • सामाजिक सुधार: अशोक ने जाति व्यवस्था और सामाजिक भेदभाव को कम करने की कोशिश की। उन्होंने सभी प्रजाओं को समान रूप से देखने की नीति अपनाई। • पर्यावरण संरक्षण: उन्होंने वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया और जंगलों व वन्यजीवों की रक्षा के लिए नियम बनाए। • स्वास्थ्य और कल्याण: अशोक ने अस्पतालों और औषधालयों की स्थापना की, जहां इंसानों और पशुओं दोनों का इलाज होता था। सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष और कुएं बनवाए गए। • शिक्षा: उन्होंने शिक्षा के प्रसार के लिए प्रयास किए और अपने शिलालेखों के माध्यम से नैतिकता और धर्म का संदेश जनता तक पहुंचाया। अशोक के अभिलेख अशोक के शिलालेख उनकी नीतियों और विचारों को समझने का प्रमुख स्रोत हैं। ये अभिलेख पत्थरों, स्तंभों और गुफाओं पर刻े गए हैं। इनमें से कुछ प्रसिद्ध हैं: • प्रमुख शिलालेख: इनमें उनकी नीतियों, धर्म और प्रशासन के बारे में जानकारी है। • स्तंभ लेख: जैसे सारनाथ और प्रयागराज के स्तंभ, जो उनकी शक्ति और बौद्ध धर्म के प्रति समर्पण को दर्शाते हैं। लघु शिलालेख: ये छोटे संदेश हैं जो स्थानीय स्तर पर लोगों को संबोधित करते हैं। व्यक्तिगत जीवन अशोक की कई पत्नियों और संतानों का उल्लेख मिलता है। उनकी पत्नी देवी (या विदिशा महादेवी) उनके दो बच्चों, महेंद्र और संघमित्रा की मां थीं। महेंद्र और संघमित्रा ने बौद्ध धर्म के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासकर श्रीलंका में। अशोक का निजी जीवन सादगी और धर्म के प्रति समर्पण से भरा हुआ था। मृत्यु और विरासत अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व में हुई। उनकी मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर पड़ गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। अशोक को उनकी शांति, अहिंसा और मानवता के प्रति योगदान के लिए याद किया जाता है। उनके शिलालेख और स्तंभ आज भी भारत के विभिन्न हिस्सों में मौजूद हैं और इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं। निष्कर्ष सम्राट अशोक एक ऐसे शासक थे जिन्होंने युद्ध और हिंसा से शांति और करुणा की ओर यात्रा की। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि परिवर्तन संभव है और सत्ता का उपयोग जनकल्याण के लिए किया जा सकता है। भारतीय इतिहास में उनका योगदान अतुलनीय है, और वे आज भी एक प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।