У нас вы можете посмотреть бесплатно वेदवती तीर्थ और सीता माता मंदिर जहां पर रावण ने अपनी मौत की कहानी लिखी थी | सीतामाई करनाल हरियाणा или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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सीतामाई करनाल (नरेश कुमार स्वामी निंबार्क )आज दिनांक 29 नवंबर 2025 को मैं,मेरी धर्मपत्नी निर्मला स्वामी और मेरी पोती दिव्यांशी स्वामी भारतवर्ष के सबसे बड़े बैरागी सीता माता मंदिरऔर वेदवती तीर्थ सीतामाई करनाल जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | मंदिर में दर्शन करने के बाद जरनल सेक्रेटरी ईशम सिंह बैरागी से मुलाकात हुई | उन्होंने मेरे और मेरी धर्मपत्नी को माता की चुनरी और राम दरबार देकर सम्मानित किया | बैरागी समाज मेरा कितना सम्मान करता है,यह किसी भी कलम से नहीं लिखा जा सकता,| पिछली बार जब मैं सीतामई मंदिर में गया था | उसके बाद वहां पर बहुत काम हुआ है | क्योंकि एक करोड़ 35 लाख रुपए पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल जी ने दिए थे | सीता माता मंदिर की कार्यकारिणी के जनरल सेक्रेटरी ईशम सिंह बैरागी तहे दिल से वहां काम करवा रहे हैं | मैंने मेरे द्वारा रचित वैष्णव बैरागी समाज का गौरवशाली इतिहास की पुस्तक यात्रा बंदूक से कलम तक और महंत बने महाराजा ईशम सिंह बैरागी और उनके साथियों को सप्रेम भेंट की | करनाल के पास सीतामई गांव में स्थित वेदवती तीर्थ (सीता माई मंदिर) का इतिहास रामायण और पौराणिक कथाओं से जुड़ा है। मान्यताओं के अनुसार, यह वही स्थान है जहाँ माँ पृथ्वी ने देवी सीता को समाहित कर लिया था, जब उन्हें अपनी पवित्रता सिद्ध करनी थी। यह तीर्थ 'वेदवती' के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि सीता अपने पिछले जन्म में वेदवती नामक कन्या थीं, जो नारायण की भक्त थीं और रावण के अत्याचारों का शिकार हुईं थीं। मंदिर की वास्तुकला 7वीं-8वीं शताब्दी ई. की मानी जाती है। वेदवती तीर्थ सीतामई करनाल का इतिहास: सीता का पिछला जन्म (वेदवती): माना जाता है कि देवी सीता अपने पिछले जन्म में वेदवती थीं, जो राजा कुशध्वज और मालावती की पुत्री थीं। बचपन से ही वे अत्यंत तेजस्वी थीं और वेदों का ज्ञान रखती थीं, इसलिए उनका नाम वेदवती पड़ा। वह भगवान नारायण की परम भक्त थीं और उनसे विवाह करना चाहती थीं। रावण का अत्याचार: रावण ने एक बार वेदवती को परेशान किया था, जिसके कारण उसने अपना शरीर अग्नि में त्याग दिया था और रावण को श्राप दिया था। सीता का पृथ्वी में समाना: जनश्रुतियों के अनुसार, जब देवी सीता को अपनी पवित्रता साबित करने की आवश्यकता पड़ी, तो माँ पृथ्वी ने उन्हें इसी स्थान पर समाहित कर लिया। यह वह स्थान है जहाँ सीता माई मंदिर स्थित है। मंदिर की वास्तुकला: मंदिर का निचला भाग ढलाई युक्त ईंटों से निर्मित है और इसकी वास्तुकला 7वीं-8वीं शताब्दी ई. की मानी जाती है। मंदिर को विस्तृत अलंकरण और हर ईंट पर बनी गहरी रेखाओं के साथ तैयार किया गया है, जो इसकी कलात्मकता को दर्शाता है। धार्मिक महत्व: वामन पुराण में इस तीर्थ का वर्णन है और कहा गया है कि यहां स्नान करने पर व्यक्ति को कन्या यज्ञ का फल मिलता है और वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। प्रसिद्धी: माना जाता है कि यह भारत में देवी सीता का एकमात्र मंदिर है।