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वित्तीय प्रबन्धन (financial management) - अर्थ ,क्षेत्र , उद्देश्य, महत्व , वित्तीय प्रबंधन का अर्थ 1- • प्रबंध की प्रकृति एवं महत्व - 1 प्रबन्ध प... { प्रबन्ध परिभाषित , प्रबंध की प्रकृति -विज्ञानं एवं कला } video 2 • Видео { प्रबंध के स्तर उच्चस्तरीय , मध्यस्तरीय , तथा निम्नस्तरीय प्रबंध } video 3 • प्रबंध की प्रकृति एवं महत्व 1 - प्रबंधन की... {-प्रबंधन की विशेषताएं , उद्देश्य , महत्व , प्रबंधन के } Video 4 • प्रबन्ध के सिद्धान्त -हेनरी फेयोल प्रबन्ध ... { प्रबन्ध के सिद्धान्त -हेनरी फेयोल प्रबन्ध के सिद्धान्त } Video 5 • BEST RESULT KAROND & DIG [ RESULTS PIC ] Video 6 • PARTNERSHIP [ Fundamental ] What is Partn... [ GOODWILL ] वित्त व्यवसाय का जीवन का रक्त होता है। वित्तीय प्रबंध व्यावसायिक प्रबंध का ही एक भाग है। वित्तीय प्रबंध किसी उपक्रम के वित्त तथा वित्त से सम्बंधित पहलुओं पर निर्णय करने और नीति निर्धारण करने से सम्बंधित क्रियाओं का समूह होता है। अध्ययन की दृष्टि से हम इसे दो भागों में विभाजित कर सकते है -- 1. सार्वजनिक वित्त सार्वजनिक वित्त से आशय सरकारी वित्त से है, इसके अन्तर्गत विभिन्न सार्वजनिक संस्थाओं की वित्तीय आवश्यकताओं का अध्ययन किया जाता है। सार्वजनिक वित्त के अन्तर्गत आय, व्यय एवं ऋण सम्बन्धी विभिन्न सिद्धान्तों एंव व्यवहारेां का अध्ययन किया जाता है। 2. निजी वित्त निजी वित्त के अन्तर्गत विभिन्न व्यक्तियों एंव निजी संस्थाओं की आय का व्यय का अध्ययन किया जाता है । निजी वित्त को मुख्य रूप से तीन भागों में बॉंटा जा सकता है-- (अ) वैयक्तिक वित्त (ब)व्यवसायिक वित्त (स)गैर लाभ कमाने वाली संस्थाओं का वित्त। व्यावसायिक वित्त का प्रमुख उद्देश्य लाभ कमाने वाले उद्योगो की वित्तीय व्यवस्था करने से है। वित्तीय प्रबंधन का महत्व (vittiya prabandh ka mahatva) यह भी पढ़ें; वित्तीय प्रबंधन का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं पिछले कुछ वर्षों मे समामेलिए संस्थाओं की संख्या काफी बढ़ गयी है तथा इसी कारण वित्त प्रबंध का महत्व भी काफी बढ़ गया है। प्रबंधन का महत्व इस प्रकार है- 1. उपक्रम की सफलता का आधार चाहे एक उपक्रम छोटा और अथवा बड़ा, चाहे उपक्रम निगमित, चाहे अथवा गैर निगमित, चाहे उपक्रम निर्माणी हो अथवा सेवा संस्थान, उसकी सफलता वित्तीय प्रबंध की कुशलता पर निर्भर करती है। 2. व्यावसायिक प्रबंधकों हेतु उपयोगिता निगमों मे जनता अपनी बहुमूल्य बचतें अंशों, ऋणपत्रों या सार्वजनिक निक्षेपों के रूप मे विनियोजित करती है। प्रबन्धकों का यह दायित्व होता है कि जनता के धन को सुरक्षित रखे एवं उन्हे उचित दर से प्रत्याय दे। यह तभी सम्भव है जब प्रबन्धकों को वित्तीय प्रबंध के सिद्धांतों की जानकारी हो। 3. अंशधारियों हेतु उपयोगिता कम्पनी का प्रबंध कुछ कारणों से अंशधारी नही कर पाते। प्रबंध का कार्य अंशधारियों के प्रतिनिधि अर्थात् संचालकों द्वारा किया जाता है। संचालकगण अंशधारियों के हित मे कार्य कर रहे है या नही यह देखने का कार्य अंशधारियों का होता है। अंशधारी यह कार्य तभी कर सकते है जबकि उन्हें प्रबन्ध के सिद्धांतों की जानकारी हो। 4. विनियोक्ताओं हेतु उपयोगिता किन प्रतिभूतियों मे धन विनियोजित करना तथा किन मे नही इसका निर्णय विनियोक्ता तभी ले सकते हैं जबकि उन्हें वित्तीय प्रबंध के सिद्धांत एवं व्यवहार की जानकारी हो। 5. वित्तीय संस्थाओं हेतु उपयोगिता बैंक, बीमा कम्पनियों, विनियोग बैंकों, प्रन्यास कम्पनियों अभिगोपकों को भी वित्तीय प्रबंध के सिद्धांतों की जानकारी होना चाहिए। यदि इन संस्थाओं के प्रबन्धकों को वित्तीय प्रबंध के सिद्धांतों की जानकारी न हो तो वे गलत कम्पनियों अथवा खराब प्रतिभूतियों मे धन विनियोजित कर सकते है। 6. राष्ट्रीय महत्व भारत जैसे विकासशील देशों मे विभिन्न विकास कार्यों पर करोंडो रुपयों का विनियोग किया जाता है। इस विनियोग की कुशलता द्वारा राष्ट्रीय विकास की दर ऊँची की जा सकती है। सार्वजनिक विनियोग अकुशल प्रबंध हमारी गरीबी का एक कारण है। 7. अन्य व्यक्तियों के लिए उपयोगिता वित्तीय प्रबंध की जानकारी समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ आदि के लिए भी बहुत उपयोगी होती है। वित्तीय प्रबंधन के उद्देश्य (vittiya prabandh ke uddeshya) वित्तीय प्रबंध के कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार से है-- 1. अधिकतम लाभ प्राप्ति वित्त का सही तरह से प्रबंध किया जाना, अर्थात् कहाँ, किस समय, कितना वित्त लगाना है, इसे ध्यान मे रखकर किया गया कार्य वित्तीय प्रबंध कहलाता है। वित्त के उचित प्रबंध से अधिकतम लाभ की प्राप्ति होती है। 2. साधनों का कुशल आवंटन एवं उपयोग उपलब्ध साधनों का कुशल आवंटन एवं उपयोग लाभ के आधार पर किया जा सकता है। वित्तीय प्रबंधक साधनों को कम लाभदायक उपयोगों से निकाल कर अधिक लाभदायक उपयोगों मे लगाता है, जिससे कुशला बढ़ती है। 3. निर्णयों की सफलता का मापक सभी व्यावसायिक निर्णय लाभोपार्जन के उद्देश्य को ध्यान मे रखकर किये जाते है, अतः यह निर्णयों की सफलता का प्रमुख मापक है। एक उपक्रम अपने उत्पादन, विक्रय ता निष्पादन मे कुशलता अर्जित करके ही लाभ अर्जित कर सकता है। 4. विशुद्ध सम्पत्तियों के मूल्य मे वृद्धि करना प्रो. इजरा के अनुसार एक व्यवसाय के वित्तीय प्रबंध का प्रमुख उद्देश्य उसका मूल्य अधिकतमीकलण होना चाहिए। उनके ही अनुसार वह एक ऐसा केन्द्रीय उद्देश्य है जिस पर व्यवसाय के अन्य सभी उद्देश्य निर्भर करते है। 5. व्यवसाय का भावी विकास व्यवसाय का भावी विकास एवं वृद्धि वित्तीय प्रबंध की कुशलता पर ही निर्भर होती है। वित्तीय प्रबंधन की अकुशलता से व्यवसाय के भावी विकास की गति अवरूद्ध हो सकती है एवं व्यवसाय भावी समस्याओं का सामना करने मे सक्षम नही रहता। 6. अधिकतम परिणाम प्राप्त करना