У нас вы можете посмотреть бесплатно वीरभद्र महादेव मंदिर | भगवान शिव की जटा से प्रकट हुए वीरभद्र का मंदिर | उत्तराखंड | 4K | दर्शन🙏 или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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ॐ वीरभद्रेश्वराय नमः भक्तों, यह मंत्र भगवान् भोलेनाथ के उस स्वरुप का है जिसके आगे कोई नहीं टिकता. महादेव को भोलेनाथ इसीलिए कहते हैं क्योंकि वो भक्तवत्सल हैं और क्षण में ही अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण कर देते हैं. किन्तु जब वो रुष्ट होते हैं, तो उनके भय से पूरा ब्रह्माण्ड काँप उठता है. महादेव के व्यक्तित्व का यह भयानक परिवर्तन इस बात का परिचायक है की कभी भी किसी की शान्ति एवं धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए. क्योंकि जो अपने भक्तों की भक्ति के आधीन हो सब कुछ क्षण में देने वाले भोले हैं. वो गलत देख पल भर में अपने क्रोध के आधीन सबकुछ सर्वनाश करने में भी चूकते नहीं. हमारे कार्यक्रम दर्शन से जुड़े सभी भक्तों का तिलक परिवार की ओर से हार्दिक अभिनन्दन. भक्तों आज हम आपको भोलेनाथ के उसी रौद्र स्वरुप स्थान के दर्शन करवाने जा रहे हैं जहाँ आदि काल में महादेव ने अपने ही स्वरुप वीरभद्र को शांत किया था. तो आइये आज दर्शन करते हैं ऋषिकेश के समीप स्थित “श्री वीरभद्र महादेव मंदिर” के. मंदिर के बारे में: तपोस्थली, योग भूमि, प्राक्रतिक सुन्दरता से ओत प्रोत, भगवान् भोलेनाथ की प्रिय भूमि उत्तराखंड के ऋषिकेश शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित वीरभद्र क्षेत्र में स्थित है भगवान् शिव के रौद्र स्वरुप वीरभद्र को समर्पित वीरभद्र मंदिर. आदि काल से स्थित इस मंदिर का निर्माण 1300 वर्ष प्राचीन बताया जाता है जिसका समय समय पर जीर्णोद्धार होता गया. मान्यता है की इस मंदिर में भगवान शिव ने वीरभद्र का क्रोध शांत कर शिवलिंग रूप में विराजमान हो गए थे. और तभी से यह मंदिर वीरभद्र मंदिर के नाम से विख्यात हुआ. लोगों की आस्था है की भोलेनाथ के इस प्राचीन सिद्धपीठ में सच्चे मन से मांगी गई सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं. श्रद्धालु मंदिर परिसर के बाहर स्थित भोग प्रसाद, पूजा सामग्री लेकर मंदिर के भव्य प्रवेश द्वार से मंदिर में प्रवेश करते हैं.यहाँ प्रवेश करते ही जैसे जैसे गर्भग्रह की ओर आगे बढ़ते हैं उन्हें यहाँ फैली दिव्य ऊर्जा का अनुभव होता है. मंदिर का गर्भग्रह: और अब आता है वो स्थान. जहाँ की पौराणिक कथा को जानकर और कोई भगवान् भोलेनाथ की भक्ति में और अधिक लीन हो सुख का अनुभव करता है. मंदिर का गर्भग्रह, जहाँ आदि अनादि काल से विराजित हैं भगवान् भोलेनाथ अपने रौद्र स्वरुप वीरभद्र महादेव के रूप में. भक्तगण महादेव के दर्शन कर अपने सभी कष्टों के निवारण एवं सभी मनोकामनाओं की पूर्ती की भोलेनाथ से प्रार्थना करते हैं. गर्भग्रह में वीरभद्र महादेव के समीप ही उनका परिवार अर्थात माता पार्वती, पुत्र गणेश जी एवं कार्तिकेय जी भी विराजमान हैं. गर्भग्रह की दीवारों पर भगवान् भोलेनाथ की लीलाओं का बहुत ही सुंदर एवं आकर्षक चित्रण किया गया है. गर्भग्रह के द्वार पर वीरभद्र महादेव का पवित्र मंत्र भी अंकित किया गया है. तथा सामने ही नंदी जी महाराज की सुंदर सुनहरी प्रतिमा विराजमान है. मंदिर का इतिहास: भक्तों, ऋषिकेश के समीप वीरभद्र शहर में स्थित वीरभद्र महादेव मंदिर के इतिहास की बात करें तो यहाँ स्थित शिवलिंग आदि काल से है. महादेव के रौद्र स्वरुप वीरभद्र के प्राकट्य एवं इस मंदिर के इतिहास से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार - हरिद्वार के कनखल में दक्ष प्रजापति ने एक भव्य विशाल यग्य का आयोजन किया था. जिसमे सभी देवी - देवता आमंत्रित थे, किन्तु भगवान् शिव को अपना घोर शत्रु मानने वाले राजा दक्ष ने अपनी बेटी देवी सती तथा जमाता भगवान शिव को यग्य का आमंत्रण नही दिया. और भगवान शिव के मना करने के बाद भी माता सती उस यज्ञ में चली गई. क्योंकि माता सती का मानना था की वह उन्हीं का घर है तो आमंत्रण कैसा. यग्य में पहुंचकर माता सती ने सभी देवी देवताओं को देखा किन्तु उनके पति भगवान् शिव का वहां कोई स्थान नहीं था. और मां सती ने राजा दक्ष से जब इसका कारण पूछा. तो राजा दक्ष ने भगवान शिव के लिए कई अपशब्दो का प्रयोग किया जो देवी सती सहन न कर पाई तथा उसी यज्ञ कुंड की अग्नि में अपने प्राणों की आहुति दे दी. जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ कर उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया. तथा उस जटा के पूर्वभाग से महादेव के रौद्र स्वरुप महाभयानक वीरभद्र प्रगट हुए. भगवान् शिव के आदेशानुसार उनके वीरभद्र अवतार ने राजा दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया. जिनको सबकी स्तुति पर भगवान् शिव ने बकरे का सिर लगाकर पुनः जीवित कर दिया. फिर भी वीरभद्र का क्रोध शांत न हुआ. इस तरह क्रोध से ओत प्रोत वीरभद्र जब ऋषिकेश के इस स्थान पर पहुंचे, तो वहां भगवान शिव ने उन्हें गले लगा कर उनका क्रोध शांत किया. जिससे वीरभद्र महादेव में समा गए तथा इसी स्थान पर शिवलिंग के रूप में विराजमान हो गए. तभी से इस क्षेत्र को वीरभद्र क्षेत्र और इस मंदिर को वीरभद्र महादेव मंदिर के रूप में जाना जाता है. भक्तों, इस मंदिर का निर्माण लगभग 1300 वर्ष प्रचीन माना जाता है। वर्ष 1975 में आर्कियोलॉजिकल विभाग द्वारा यहाँ खुदाई कराये जाने पर पता चला था कि यह नगर पहली सदी के समय से है। यहाँ हुई खुदाई में पहली सदी से 8वीं सदी के बीच के अवशेष मिले हैं। यही नहीं. मंदिर के आस पास के क्षेत्र में जब भी खुदाई हुई या होती है तो उसमें से बहुत से शिवलिंग निकलते हैं. Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. श्रेय: लेखक: याचना अवस्थी #devotional #temple #virbhadramahadevmandir #mahadev #hinduism #uttrakhand #tilak #darshan #travel #vlogs