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हो निर्विकार तथापि तुम हो भक्त वत्सल सर्वदा हो तुम निरीह तथापि अद्भुत सृष्टि रचते सदा। आकरहीन तथापि तुम साकार संतत सिद्ध हो सर्वेश होकर भी सदा तुम प्रेम वश्य प्रसिद्ध हो। करते तुम्हारा ही मनन, मुनि रत तुम्ही में ऋषि सभी, संतत तुम्ही को देखते हैं,ध्यान में योगिंद्र भी। विख्यात वेदो में विभो! सब के तुम्ही आराध्य हो, कोई न तुमसे है बड़ा,तुम एक सब के साध्य हो। पाकर तुम्हे फिर और कुछ पाना न रहता शेष है, पाता न जब तक जीव तुमको भटकता सविशेष है। जो जन तुम्हारे पद कमल के असल मधु को जानते, वे मुक्ति की भी कर अनिच्छा तुच्छ उसको मानते। हे सच्चिदानंद प्रभो ! तुम नित्य सर्व सशक्त हो, अनुपम, अगोचर,शुभ, परात्पर ईश्वर अव्यक्त हो। तुम गेय, देय, अजेय हो,निज भक्त पर अनुरक्त हो, तुम भाव विमोचन ,पदमलोचन,पूर्ण, पद्माशक्त हो। तुम एक होकर भी अहो! रखते अनेकों वेश हो, आधंत हीन , अचिंत्य, अदभुत आत्मभू अखिलेष हो। करता तुम्ही, भर्ता तुम्हीं, हर्ता तुम्ही हो सृष्टि के, चारों पदारथ दयानिधे ! फल है तुम्हारी दृष्टि के। है ईश ! बहु उपकार तुमने सर्वदा हम पर किये, उपकार प्रत्युपकार में क्या दे तुम्हे इसके लिऐ? है क्या हमारा सृष्टि में? यह सब तुम्हीं से है बनी, संतत ऋणी है हम तुम्हारे,तुम हमारे हो धनी। जय दिनबंधो , सोरव्य -सिंधो देव -देव, दयानिधे, जय जन्म - मृत्यु -विहीन,शाश्वत विश्व वन्ध माया विधे। जय पूर्ण पुरषोत्तम, जनार्दन, जगन्नाथ, जगतपते, जय जय विभो, अद्भुत हरे , मंगलमते,माया पते।। Thanks to Shobhana ji for providing the lyrics 🙏🏻