У нас вы можете посмотреть бесплатно भाग 01 वैदिकता पर पंच परमेश्वर के हठ और अन्य सम्प्रदायों के प्रति वैमनस्य की पोल खोलते निग्रहाचार्य или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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भाग ०१ ― छद्म साम्प्रदायिकता के पूर्वाग्रह से ग्रस्त द्वेष के द्वारा अपने ही पूर्वाचार्यों का मनमाने ढंग से अनुसरण/विरोध करने वाले, स्वयं को ही एकमात्र वैदिक एवं परम्परागत मानते हुए पशुयज्ञ के विषय में अपना एकच्छत्र मत स्थापित करने का कुप्रयास करने वाले तथा स्वमतविरुद्ध जाने वाले समस्त आर्ष शास्त्रवाक्यों, समस्त स्वसम्प्रदाय अथवा परसम्प्रदायाचार्यों के प्रति द्वेषपूर्ण एवं हास्यास्पद रूप से अप्रामाणिक होने का आरोप लगाने वाले अहम्मन्यों के विरुद्ध स्वामी निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु का वक्तव्य। ""आवश्यक चेतावनी"" ― इस वीडियो के प्रारम्भ एवं मध्य के कुछ विषय अनिवार्य सन्दर्भों को अभिव्यक्त करने के कारण आपकी दृष्टि में क्रूर, अमर्यादित, अश्लील और अभद्र हो सकते हैं और आप असहज तथा विचलित हो सकते हैं किन्तु जो विषय जैसा है, उसकी सत्यता बताने हेतु यह अपरिहार्य एवं अनिवार्य है अतः अपने विवेक से ही वीडियो को देखें। वक्तव्य में 56:30 मिनट के बाद प्रसङ्ग में यक्षावतार के विषय में केनोपनिषत् होगा, असावधानी से कठोपनिषत् का उच्चारण हो गया, उसे श्रोता सुधार लेंगे। विधिरत्यन्तमप्राप्तौ नियमः पाक्षिके सति। तत्र चान्यत्र च प्राप्तौ परिसङ्ख्येति गीयते॥ अत्यन्त अप्राप्त क्रिया एवं परिणाम की संसिद्धि कराने वाला, जिसका अवघात अन्य विकल्प से न हो, उसके भावज्ञान को अपूर्वपक्षप्रकाशिका विधि कहते हैं, विधिरत्यन्तमप्राप्तः। अनेकों विकल्पों की उपस्थिति में क्रमानुसार उक्त कार्यसिद्धि में अलक्षित रूप से योजकपक्षबल से ग्राह्य किन्तु लक्ष्यान्तरनिषेध में व्याप्त नियम है, पक्षान्तराप्राप्तिफलको नियमविधिः। समान फलदायक अन्य विकल्पों की नित्य प्राप्ति में अन्य के स्वाभाविक निषेधपूर्वक एक पक्ष का ग्रहण करना परिसङ्ख्या है, सामान्यतः प्राप्तस्यार्थस्य कस्माचिद्विशेषाद्व्यावृत्तिः परिसङ्ख्या। नित्यप्राप्तौ शेषान्तरस्य निवृत्तिफलकः परिसङ्ख्याविधिः। इसी बात को हमने एक एक पंक्ति में कह दिया है। चूंकि स्वर्गकामोऽश्वमेधेन यजेत के अनुरूप इसकी क्रिया और उसके फलप्राप्ति का अपूर्वार्थ सिद्ध है किन्तु फिर भी उसी आश्वमेधिक क्रिया में अन्न, रस, फलादि के प्रयोग से सम्पादित करने के निर्देशक ऋषियों के कथन का चिन्तन करके हमने नियम में गणना की है क्योंकि यहां मूल प्रतिपाद्य विषय अश्वमेध नामक पशुयज्ञ ही है। नानासाधनसाध्यक्रियायामेकसाधनप्राप्तावप्राप्तस्यपरसाधनस्य प्रापको विधिर्नियमविधिः। यदि इसका मूल विषय अश्वमेध के अतिरिक्त कुछ और होता तो हम हिंसात्मक एवं अहिंसात्मक पक्ष में विकल्पविधि में इसकी गणना करते ― विरुद्धयोः पाक्षिकी प्राप्तिर्विकल्पः। किन्तु सम्पाद्य विषय के एकत्व तथा सम्पादनप्रक्रिया में पक्षान्तर प्राप्ति से हम इसे नियम समझते हैं। यदि इसका अपूर्वविधि होना सर्वमान्य होता तो इतना सामान्य विषय ऋषियों को ज्ञात नहीं था क्या जो व्यर्थ ही श्रुतिनिष्ठ निर्णयादि के प्रसारक को भी दण्डित कर दिया ? १. प्रत्यक्ष, २. अनुमान, ३. उपमान, ४. शब्द, ५. अर्थोपत्ति और ६. अनुपलब्धि के अन्तर्गत ही मीमांसापरिगृहीत नित्यशब्दप्रमाण को हम नहीं उपेक्षित कर सकते क्योंकि ब्रह्मसूत्रकार ने ही ग्रन्थान्तर से ही उनका भी लेखन किया है वह भी कल्पित रूप से नहीं, भवितव्य धर्मोपदेशक सावर्णि मनु को बोध कराने वाले श्रीस्कन्द के मतानुसार। श्रीस्कन्द ही कुमारिल बन कर कुछ कहें तो असन्दिग्ध हो जाता है और उन्हीं श्रीस्कन्द की उक्ति श्रीवेदव्यास ही वर्णित करें तो उसकी चर्चा तक नहीं ? मीमांसा एक दर्शन है, एकमात्र नहीं है और न ही श्रीजैमिनि ही एकमात्र मुनि हैं और न ही उनके सूत्रों का अर्थ भी मीमांसकों की ही दृष्टि में एक जैसा ही है। श्रीकुमारिल एवं श्रीप्रभाकर के मध्य आत्मा के ज्ञानकर्तृत्वविषयक मतभेद की फिर आवश्यकता ही नहीं होती। ब्रह्मसूत्रों में भी सम्प्रदायभेद से विभिन्न अर्थ लगना अनुचित नहीं, ऐसा श्रीकण्ठभाष्य की टीका से ही अप्पयदीक्षित जी ने सिद्ध कर दिया जिसमें ब्रह्मसूत्रों की व्याख्या पूर्वाचार्यों के द्वारा कलुषित होने की बात कही गयी। व्याकरण जैसे शब्दतत्त्वप्रकाशक शास्त्र में ही अनेकानेक मतभेद और सूत्रगणना के साथ अलग अलग विवाद इतिहास से सिद्ध हैं। ब्रह्मसूत्र के सूत्राधिकरणों पर भी वैभिन्न्य उपलब्ध ही है, ऐसे में आप जो मानना चाहते हैं मानें किन्तु राजा उपरिचर वसु की वापसी एवं उन्हें दण्डित करने वाले ऋषियों के अवैदिकत्व की सिद्धि तक हम उनके मत को सर्वथा उपेक्षित करके चिन्तन नहीं करेंगे। धन्यवाद। Like, Share, Subscribe https://www.shribhagavatananda.guru यदि आप इस प्रवाह पर उपलब्ध वक्तव्यों के बदले किसी प्रकार की आर्थिक सेवा निवेदित करना चाहते हैं तो आप निम्न विवरण पर अपनी इच्छानुसार धनराशि का भुगतान कर सकते हैं। If you want to provide any financial support for the videos of this channel, you may pay the desired amount at these details. Shri Bhagavatananda Guru Bank of Baroda Ratu Chatti Branch 54240100000958 IFSC - BARB0RATUCH (कोड का पांचवां वर्ण शून्य है | Fifth letter of code is Zero) UPI - nagshakti.vishvarakshak@okaxis