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गुरु सान्दीपनि आगे की कथा सुनाते है - राजा बलि परम भक्त प्रह्लाद के पौत्र और परम शूरवीर थे। इन्द्र से प्रतिशोध लेने के लिए असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने उनसे सौ यज्ञ करवाए। निन्यानबे यज्ञ पूरे होने पर शुक्राचार्य बलि को विश्वास दिलाते हैं कि सौवाँ यज्ञ पूरा होते ही इन्द्र लोक पर उसका अधिकार हो जाएगा। सौवां यज्ञ प्रारम्भ होने पर देवता चिंतित होकर भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हैं कि वह बलि को रोकें। भगवान विष्णु कहते हैं कि जो तपस्या करेगा, वह उसका फल पाएगा, पर बृहस्पति तर्क देते हैं कि यदि प्रकृति का विधान धर्म का नाश करे तो दैवीय विधान की स्थापना आवश्यक है। तब विष्णु आश्वासन देते हैं कि वे स्वयं इस संतुलन को पुनः स्थापित करेंगे। भगवान विष्णु वामन अवतार धारण कर यज्ञशाला पहुँचते हैं और राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगते हैं। शुक्राचार्य वामन को पहचान जाते हैं कि यह स्वयं विष्णु हैं और बलि को समझाते हैं कि यह दान उन्हें श्रीहीन कर देगा और शास्त्र भी सम्पत्ति का पाँचवाँ अंश से अधिक दान की अनुमति नहीं देते। लेकिन राजा बलि अपने वचन, परंपरा और दानशीलता को सर्वोपरि मानते हैं। वे कहते हैं कि यदि भगवान स्वयं याचक बनकर उनके द्वार आए हैं तो यह तो उसके लिए गौरव की बात है। शुक्राचार्य उन्हें श्राप देते हैं फिर भी बलि अपने वचन से पीछे नहीं हटते है। बलि जल लेकर वामन को तीन पग भूमि दान संकल्प करते हैं। वामन अपना विराट स्वरूप धारण करते हुए एक पग में धरती, दूसरे पग में आकाश नाप लेते हैं। तीसरे पग के लिए स्थान न होने पर बलि विनम्रता पूर्वक अपना सिर प्रस्तुत कर देते हैं। भगवान उसके त्याग से प्रसन्न होकर उसे पाताल (सुतल) लोक का अधिपति बनाते हैं और भविष्य में इन्द्र पद का वर देते हैं। इस कथा के बाद श्रीकृष्ण गुरु सान्दीपनि से पूछते हैं कि सर्वशक्तिमान भगवान अवतार क्यों लेते हैं। गुरु बताते हैं कि अवतार से जीवों में यह विश्वास कायम रहता है कि ईश्वर उनके रक्षक हैं। यही आस्था धर्म पालन और साहस का आधार बनती है। गुरु सान्दीपनि श्रीकृष्ण और बलराम को योग शास्त्र, कुण्डलिनी और शरीर के सात चक्रों का ज्ञान देते हैं - मूलाधार से सहस्रार तक। वे बताते हैं कि साधना से सूक्ष्म शरीर जागृत होता है, जिससे योगी दूर की वस्तुओं को देख-सुन सकता है और स्थूल शरीर की सीमाएँ पार कर सकता है। एक दिन श्रीकृष्ण गुरुमाता के आदेश पर सुदामा के साथ वन में लकड़ियाँ लेने जाते है। गुरुमाता उनको मार्ग में खाने के लिए चने देती है, जिसे सुदामा अपने पल्लू में बाँध लेता है। वन में वर्षा आने पर दोनों पेड़ पर चढ़ जाते है, लेकिन भूख से व्याकुल सुदामा गुरुमाता के दिए हुए चने अकेले ही खाने लगते है और श्रीकृष्ण से झूठ बोल देते है कि चने गिर गए। श्रीकृष्ण उसका भाव समझ जाते है और उसे अपनी माया से और चने खाने के लिए देते है। यह देख सुदामा को ग्लानि होती है और वह श्रीकृष्ण से क्षमा माँगता है। श्रीकृष्ण सुदामा को क्षमा करते हुए मित्रता का सच्चा भाव समझाते है। इसी प्रकार जब श्रीकृष्ण बलराम और सुदामा के साथ भिक्षा माँगने के एक गाँव में जाते है तो वहाँ पर उन्हें भिक्षा में मालपुए मिलते है। आश्रम के नियम के अनुसार समस्त भिक्षा सबसे पहले आश्रम में ले जायी जाती है और लेकिन सुदामा मौका देखकर माल पुआ खाने लगता है, श्रीकृष्ण उसे ऐसा करते हुए देख लेते है, जिससे सुदामा को डर सताने लगता है कि अब बात गुरुदेव को पता चल जाएगी। श्रीकृष्ण सुदामा से कहते है कि मित्रता धर्म कहता है कि मित्र की कमजोरी पर पर्दा डालना चाहिए, मैं नहीं बताऊँगा। यह बात सुन सुदामा पुनः माल पुआ खाने लगता है। सम्पूर्ण जगत में भगवान विष्णु के आठवें अवतार एवं सोलह कलाओं के स्वामी भगवान श्री कृष्ण काजीवन धर्म, भक्ति, प्रेम, और नीति का अद्भुत संगम है। वसुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में कारागार में जन्म लेकर गोकुल की गलियों में यशोदा और नंदबाबा के यहाँ पलने वाले, अपनी लीलाओं, जैसे पूतना वध, माखन चोरी, राधा के संग प्रेम, गोपियों के साथ रासलीला और कालिया नाग के दमन के लिए प्रसिद्ध श्री कृष्ण ने युवावस्था में मथुरा कंस का वध करके जनमानस को उसके अत्याचार से मुक्त कराया एवं स्वयं के लिए द्वारका नगरी स्थापना भी की। उनका जीवन केवल लीलाओं तक सीमित नहीं था। उन्होंने समाज को धर्म और कर्म का गूढ़ संदेश देने के लिए महाभारत के युद्ध में पांडवों का मार्गदर्शन किया और अर्जुन के सारथी बनकर उसे "श्रीमद्भगवद्गीता" का उपदेश दिया, जो आज भी जीवन की समस्याओं का समाधान बताने वाला महान ग्रंथ माना जाता है। श्री कृष्ण का जीवन प्रेम, त्याग, और नीति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। आपका प्रिय चैनल "तिलक" श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ा यह विशेष संस्करण "श्री कृष्ण जीवनी" आपके समक्ष प्रस्तुत है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी कथाओं का संकलन किया गया है। भक्ति भाव से इनका आनन्द लीजिए और तिलक से जुड़े रहिए। #tilak #krishna #shreekrishna #shreekrishnajeevani #krishnakatha