У нас вы можете посмотреть бесплатно कषाय - कर्म बंध का कारण или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
हम सभी लोग इस संसार में अपनी अज्ञानता और आसक्ति के कारण सुख-दुःख का अनुभव करते रहते है। हमारे ज्ञान में और हमारे चारित्र की निर्मलता में बाधक बनने वाली हमारी अपनी कषाए है। जिसे कर्म बंध ना करना हो, जिसे संसार से मुक्त होना हो, आचार्यों ने लिखा है कि वो कषाय ना करे। कषाय की तासीर ऐसी है कि जैसे हमे कोई व्याधि हो जाए और उस घाव में होने वाली खुजलाहट को आराम पहुँचाने के लिए हम और अधिक खुजलाये तो क्षण भर को लगता है की आराम मिला लेकिन पीड़ा और बढ़ जाती है। यही तासीर कषायों की है। दूसरी उपमा कषायों को दुर्गंध की दी है। जैसे एक कण भी दुर्गंध का पूरे वातावरण को दूषित कर देता है, ऐसे ही हमारे मन में उत्पन्न होने वाली कषायें हमारे अपने मन को, हमारे परिणामों को और आस-पास के वातावरण को दूषित कर देता है। जैसे की भोजन में, बहुत स्वादिष्ट भी क्यों ना हो, एक कण रेत का आ जाए, तो वो पूरे भोजन के स्वाद को नष्ट करने में कारण बनता है, ऐसे ही हमारे अपने जीवन के अच्छे विचारों को नष्ट करने में ये कषाए कारण बनती है। हम चाहते है की अच्छा सोचे, हम चाहते है की कुछ अच्छा करे, लेकिन कषाय के चलते ना अच्छा विचार आता है, ना कुछ अच्छा कर पाते है। इसलिए हमे इस कषाय के स्वभाव को समझ कर के उससे बचने का पुरुषार्थ करना चाहिए। बहुत प्यासा व्यक्ति सहसा कहीं पानी का कुँआ देख कर के और पानी खींचे और पानी खींचने के लिए वही रखा हुआ घड़ा उसमे डाले और देखे की जब ऊपर खींचा तो ख़ाली घड़ा बाहर आया। कारण क्या है? तो उस घड़े में छिद्र थे।