У нас вы можете посмотреть бесплатно ज्वाला माता मंदिर, जोबनेर | ज्वाला माता का रहस्य | ज्वाला शक्ति पीठ के घुटनो की होती है पूजा | или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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#ज्वालामाता# #जोबनेर# #ज्वालामाताकारहस्य# #shakuntalamvideos आईये दोस्तों, आज हम आपको लेकर चलते हैं राजस्थान के जयपुर जिले में स्थित एक पावन धाम – ज्वाला माता मंदिर, जोबनेर। जयपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था और चमत्कार का प्रतीक है। ज्वाला माता की पावन शरण में जाने से पहले हमें धाना भक्त के दर्शन होते हैं। कहते हैं, धाना भक्त ने माता के चरणों में अपना शीश अर्पित कर दिया था। इसके बाद माता का तोरण द्वार आता है और फिर हम पहुंचते हैं लांगड़ा भैरुजी के मंदिर में। भैरुजी के दर्शन किए बिना माता के दर्शन अधूरे माने जाते हैं। ज्वाला माता के निज मंदिर में अखंड ज्योति जलती है, जिसकी रोशनी भक्तों के जीवन में नई ऊर्जा का संचार करती है। निज मंदिर के बाहर भी काली माता, भैरव मंदिर, शिव मंदिर जैसे अनेक देव स्थान हैं, जहां श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए दर्शन करते हैं। दोस्तों, नवरात्र के समय यहां श्रद्धालुओं का अटूट सैलाब उमड़ पड़ता है। भारत के कोने-कोने से भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, जब राजा दक्ष ने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया, तो सती माता ने स्वयं को यज्ञ अग्नि में भस्म कर लिया। इस पर भगवान शिव ने क्रोधित होकर तांडव किया, जिससे सृष्टि संकट में आ गई। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता के 51 खंड कर दिए और कहा जाता है कि जोबनेर की पहाड़ी पर माता का घुटना गिरा। तभी से यह स्थान शक्ति उपपीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गया। कहते हैं, 1300 साल पहले जब जोबनेर गांव पहाड़ी के दक्षिण में बसा था, तब एक ग्वाला अपनी गायें चरा रहा था। तभी माता ने उसे आकाशवाणी दी। लेकिन जब देवी प्रकट हुईं, तो एक भयंकर गर्जना हुई, जिससे ग्वाला डर गया। और माता का सिर्फ घुटना ही बाहर आया। तब से लेकर आज तक इस घुटने के ही स्वरूप की पूजा की जाती है। आज भी लाखों श्रद्धालु नौकरी, संतान, विवाह और सुख-समृद्धि की कामना लेकर यहां आते हैं। माता उनकी हर मनोकामना पूर्ण करती हैं। भक्त माता के दरबार में रात्रि जागरण और स्वामनी का आयोजन भी करते हैं। मंदिर के पुजारी बनवारी लाल पाराशर जी के अनुसार, माता की विग्रह प्रतिमा किसी ने स्थापित नहीं की, बल्कि यह स्वयं प्रकट हुई थी। खंगारोत राजपूत इस माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं, और अन्य समाज भी माता को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं। शारदीय और चैत्र नवरात्रों में यहां विशाल मेले का आयोजन होता है। श्रद्धालुओं के लिए ठंडा पानी, छाछ और प्रसाद की व्यवस्था की जाती है, ताकि कोई भी भक्त बिना दर्शन किए लौटे नहीं। तो दोस्तों, कैसा लगा आपको यह पावन स्थल? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं ताकि हम आपके लिए और भी रोचक और प्रेरणादायक वीडियो ला सकें। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो, तो वीडियो को लाइक करें, शेयर करें और चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूलें! 🌺 जय माता दी! 🌺