У нас вы можете посмотреть бесплатно 12 वर्ष बाद ऐतिहासिक मौरी मेला शुभारम्भ | ग्रामसभा तमलाग, पट्टी गगवाड़स्यूँ, पौड़ी गढ़वाल или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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मौरी मेले का आयोजन पौड़ी जिले में गगवाड़स्यूँ पट्टी के अंतर्गत पड़ने वाले ग्राम सभा तमलाग में किया जाता है । अगर इस मेले को समय के खांचे में मापा जाये तो यह पूरे विश्व का सबसे ज्यादा दिनों तक चलने वाला धार्मिक मेला है इस धार्मिक मेले कि अवधि छः महीने तमलाग गाँव में और समापन के बाद अगले छः महीने सबदरखाल के कुण्डी गाँव में है , इसमें हर रोज दिन और रात के कुछ पहर पांडव का अवाहन किया जता है । इस मेले का शुभारम्भ २२ गते मर्गशीर्ष में होता है , तथा इसकी समापन तिथि २२ गतै अषाढ़ है । इन छ : महीनों के मध्य पूर्वजों द्वारा ग्राम के मध्य एक सुंदर भैरव मंदिर के परागण में दिब्य शाक्तियों व ग्राम वासियों द्वारा पांडव नृत्य होता रहता है । इस अवधि काल में इस मेले में लाखों लोग सिरकत करके पुण्य कमाते है । यह मेला पांडव से सम्बधित है । मौरी क्या है यह क्यों मनाई जाती है ? मौरी का अर्थ क्या होता है ? और इसका नाम मौरी क्यों पड़ा ? इसका आयोजन ग्राम सभा तमलाग और कुण्डी में ही क्यों किया जाता है ? " मौरी " शब्द माहौरू " शब्द का अपभ्रश रूप है मौरी शब्द माहौरू से बना है इस शब्द का जिक्र एक जागर में बड़े स्पष्ट रूप से होता है । दिशा कूड माहौरू , माहौरू लगाण बांझू माहौरू , माहौरू लगाण भैजी चल्दू बणाण , माहौरू लगाण ... इस मेले कि समाप्ति इस माहौरू शब्द की ब्याख्या को पूर्णता प्रदान करती है । मौरी शब्द का अर्थ होता है दान देकर किसी बंजर इलाके को हरा - भरा करके समृद बनाना । अब सवाल यह उठता है की आखिर दान देकर किसको समृद बनाया गया । दन्त कथाओं में कहते है की पांडव की एक धर्म बहन थी जिसका नाम रूपेणा था । जिसका विवाह नारायण के साथ हुआ था । एक बार नरायण नदी के किसी कुंड में स्नान कर रहे थे वही उस नदी के ऊपर वाले कुंड कुसमा कुवेण नाम की एक नारी भी स्नान कर रही थी जो दिखने में बहुत सुंदर थी । कहते है की उसकी सुनेहरी लटे थी । स्नान करते समय उसकी एक लट टूटकर नारायण की ऊँगली से उलझ जाती है । नारायण इस लट को देख कर अचंभित रह जाता है । और अपने मन में सोचता है कि जिस नारी की लट ही सोने की है तो वह खुद कितनी खूबसूरत होगी वह उस लट के सहारे कुसमा तक पहुचते है । तथा कुसमा के रूप सौंदर्य यौवन को देखकर हमेशा के लिए कुसमा कुवेण के हो जाते है । इस दौरान वह अपनी राज रानी रूपेणा तथा राज पाठ और अपने भावी कुलवंशों को भूल जाते है । इस समय का लाभ उठाकर कुछ राक्षस उसके राज्य पर हमला कर उसके हरे - भरे राज्य को उजाड़कर बंजर बना देते है । तथा उसके पुत्रों को मार देते है । रूपेणा को अपने राज्य का सर्वनाश और पुत्रों की अकाल मृत्यु से बहुत बड़ा आघात पहुचता है । तब उसे इस दुःख की घडी में अपने धर्म भाई पांडव का स्मरण आता है । और वह यह सोच कर हस्तिनापुर आ जाती है की मेरे भाई मेरी मदद जरुर करेंगे । हस्तिनापुर आकर जब वह अपनी सारी दास्ता कुंती माता को सुनती है । उसकी दुःख भरी दास्ता सुनकर कुंती उसे बचन देती है कि मै तेरे राज्य को एक बार फिर खुशहाल और समृद बनाऊंगी । तुझे जो भी दान चाहिए मै वह दान देकर तुझे अपनी बेटी की तरह विदा करूँगी । इस प्रकार रूपेणा कुंती से दान में भतीजा भिभीसैण , भतीजी भभरोन्दी , कल्यलुहार , नागमौला तथा काली दास ढोली की मांग करती है । ( काली दास ढोली जिसे समस्त ढोल सागर का ज्ञान था आज की तारीख में यह लोग हमारी संस्कृति के अभिन्न अंग है । अगर मै सरल शब्दों में यह कहूं की मौरी मेला का अर्थ ही ढोल बादक है तो अतिशयोक्ति नहीं होगा । अगर इनकी यह बिद्या जिंदा है तो मौरी मेला है अन्यथा आने वाले समय में यह मेला अपना अस्थित्व् खो देगा । इसलिए हमें इनकी इस बिद्या और इनकी कला को जिंदा रखने के लिए अभी से उन्चित कदम उतने होंगे जिससे हम अपनी आने वाली पीढ़ी को इस अमूल्य धरोहर को देने में सक्षम हो सके । ) इस प्रकार पांच पांडव अपनी धर्म बहन रूपेणा को दान में सब खुछ देकर उसे उसकी थाती तक विदा करते है । और इस प्रकार रूपेणा का राज्य एक बार फिर अन्न धन से खुशाल और समृद्ध हो जाता है । लेख साभार – श्री प्रदीप रावत 'खुदेड' • #MoriMela • #Uttarakhand • #Garhwal • #Mori • #TraditionalMela