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A poetic expression of the two essential forces, this track is sung and gifted by Sri Ben Prabhu on the day of Guru Poornima 2018. Inspired by Sri S.N. Goenka Ji's writings and meditative vibrations of Sri Guru's voice, Dharma aur Guruvar is a special support to seeker's inner purity. Download: https://www.srmdelhi.com/dharma-aur-g... Lyrics: धर्म जगत का ईश है, धर्म ब्रह्म भगवान..। धर्म सदा रक्षा करे, धर्म बड़ा बलवान..।। गुरुवर हमारे ईश हैं, गुरु ही हमारे नाथ..। ईश-कृपा यूँ बहती रहे, गुरु का छूटे न साथ..।। धर्म सदृश रक्षक नहीं, धर्म सदृश न ढाल..। धर्म विहारी का सदा, धर्म रहे रखवाल..।। छाया के पीछे लगा, जिसमें तत्त्व न सार..। राख आसरा गुरु-वचन का, अन्य सभी बेकार..।। जिससे मन निर्मल बने, उसमें सबका श्रेय..। निजहित परहित सर्वहित, यही धर्म का ध्येय..।। मंगल वाणी श्री गुरु की, हितकारी ही होय..। श्रद्धा होवे बलवती, प्रज्ञा उजली होय..।। जब पासे उलटे पड़ें, कर मेहनत मन जोड़..। पर श्रम के परिणाम को, छोड़ धर्म पर छोड़..।। दिवस बिताए बिलखते, रोते बीती रैन..। धन्य! गुरुवर ऐसे मिले, पायी मन की चैन..।। धन्य धर्म ऐसा मिला, चित्त शुद्धि का पंथ..। जो भी आए शरण में, सहज बन गए संत..।। गुरुवर हमारे बंधु है, गुरु ही सहायक मीत..। चले जो गुरु की रीत से, रहे धर्म में प्रीत..।। धर्म जगे तो सुख जगे, मुक्ति दुखों से होय..। कर्मों के बंधन कटे, अज्ञान-निवृत्ति होय..।। मरुधर मरुधर भटकते, हुआ तृषित गुमराह..। धन्य! गुरु-सरोवर मिले, अमृत भरा अथाह..।। जात-पात, कुल-गोत्र या, वर्ण भेद न होय..। जो-जो चाखे धर्म रस, सो-सो सुखिया होय..।। जाति वर्ण का-वर्ग का, भेद जहाँ ना होय..। मनुज मनुज सब एक से, साचा गुरु-गण वो ही..।। शील धर्म की नींव है, ध्यान धर्म की भींत..। प्रज्ञा छत है धर्म की, मंगल भवन पुनीत..। श्री गुरु! अंतर भवन में, जागी सत्य की ज्योत..। हुआ उजाला आप वचन से, अंतस ओत प्रोत..।। सोए जननी जठर में, जाने कितनी बार..। शरण ग्रहण हो धर्म का, तो छूटे संसार..।। श्री गुरु वाणी अनमोल है, अमृत भरा अपार..। धोवे जन्मों के मैल को, जागे परस्पर प्यार..।। वह ना सच्चा धर्म है, ना सच्चा ईमान..। जिससे मन के प्रेम को, खो बैठे इंसान..।। श्री गुरु ज्ञान से ही धुलें, संप्रदाय के लेप..। उखड़ें कल्पित मान्यताएँ, चित्त होवे निर्लेप..।। जहाँ धर्म की चेतना, सतत तरंगित होय..। वहाँ मनुज की मुक्ति का, पंथ प्रकाशित होय..।। जहाँ गुरु का ज्ञान है, जहाँ गुरु पर प्रेम..। मन-जीवन हो धवल और, मस्त रहे दिन रैन..।। यही धर्म की परख है, यही धर्म का माप..। शरण ग्रहे जो धर्म का, तो छूटे संताप..।। मंदिर-मस्जिद भटकते, किसको मिला भगवान..? गुरु वचन का सार समझ कर, मानव बने भगवान..। जाने समझे धर्म को, पर ना बदले व्यवहार..। ज्ञान का बोझ ढ़ो रहा, कैसा मूढ़ गँवार..।। विपदा में ही गुरु वचन की, सही परीक्षा होय..। मन मैला होवे नहीं, सत्य धर्म है वो ही..।। शापित-तापित चित्त को, मिली जो धर्म की छांव..। अंतरतम शीतल हुआ, दूर हुआ दुःख दाह..।। जीऊँ जीवन गुरु-शरण में, बेहोशी हो दूर..। होश सदा ही जागा रहे, शुद्धि हो भरपूर..।। पग-पग पग-पग बढ़ते रहे, प्रेम-श्रद्धा-पुरुषार्थ..। गुरु-शरण में धर्म सधे, जीवन हो परमार्थ..।। आओ, प्राणी विश्व के, चालो धर्म के पंथ..। गुरुवर रंग रंगते रंगते, जानो एक अखण्ड..।।