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हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास 400 एकड़ वनों की कटाई का मामला हाल ही में, तेलंगाना सरकार ने हैदराबाद विश्वविद्यालय (UoH) के पास गाचीबोवली क्षेत्र में 400 एकड़ भूमि को नीलाम करने की योजना बनाई है। इस भूमि को आईटी और अन्य मिश्रित विकास परियोजनाओं के लिए आवंटित किया गया है, जिससे सरकार को लगभग ₹10,000 करोड़ की आय होने की उम्मीद है। सरकार का दावा है कि यह भूमि सरकारी रिकॉर्ड में ‘कांचा अस्तबल पोरंबोक’ (खाली सरकारी भूमि) के रूप में दर्ज है। पर्यावरणीय प्रभाव और संभावित नुकसान इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पर्यावरणीय और जैवविविधता से जुड़े पहलू हैं, जो इस विकास परियोजना से प्रभावित हो सकते हैं: जैव विविधता पर असर यह क्षेत्र 237 से अधिक पक्षी प्रजातियों, चीतल हिरण, जंगली सूअर, भारतीय नेवले और मॉनिटर लिज़ार्ड्स का घर है। ‘पीकॉक लेक’ और ‘बफेलो लेक’ जैसे जल निकाय प्रवासी पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल हैं। यदि इस वन क्षेत्र को हटा दिया जाता है, तो वन्यजीवों के आवास नष्ट हो जाएंगे, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो सकता है। जलवायु और तापमान पर प्रभाव यह वन क्षेत्र शहर में ‘ग्रीन बेल्ट’ का काम करता है, जो स्थानीय तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है। इस क्षेत्र के नष्ट होने से ‘अर्बन हीट आइलैंड’ प्रभाव बढ़ सकता है, जिससे हैदराबाद में गर्मी और अधिक बढ़ेगी। वायु गुणवत्ता में गिरावट पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और वायु गुणवत्ता में सुधार लाते हैं। जंगलों की कटाई से प्रदूषण बढ़ सकता है, जिससे श्वसन संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाएगा। जल संकट का खतरा वनों के कटने से भूजल पुनर्भरण की दर घट सकती है, जिससे क्षेत्र में जल संकट और बढ़ सकता है। नदियों और झीलों में गाद बढ़ने से पानी की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है। स्थानीय समुदायों और छात्रों पर प्रभाव विश्वविद्यालय के छात्र और स्थानीय निवासी इस क्षेत्र को एक शांतिपूर्ण अध्ययन और अनुसंधान स्थल के रूप में देखते हैं। जंगल हटने से ध्वनि और वायु प्रदूषण बढ़ सकता है, जिससे विश्वविद्यालय का वातावरण प्रभावित होगा। विरोध और सरकार की प्रतिक्रिया कई पर्यावरणविद्, छात्र और स्थानीय निवासी इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। ‘#SaveCityForest’ जैसे अभियान शुरू किए गए हैं ताकि इस भूमि को संरक्षित किया जा सके। सरकार का कहना है कि वह पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए उचित कदम उठाएगी, लेकिन विरोध करने वाले समूहों का मानना है कि यह प्राकृतिक पारिस्थितिकी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। निष्कर्ष यदि इस परियोजना को रोका नहीं गया, तो यह न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र बल्कि हैदराबाद के पर्यावरणीय संतुलन को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। वनों की कटाई से जलवायु परिवर्तन, जल संकट, जैव विविधता की हानि और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बढ़ सकती हैं। इसलिए, इस भूमि के उपयोग को लेकर एक सतत विकास (Sustainable Development) मॉडल अपनाना जरूरी होगा।