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अकाल और उसके बाद’ कविता नागार्जुन द्वारा रचित अत्यंत मार्मिक एवं हृदयग्राही कविता है| इसमें कवि ने अकाल के समय तथा उसके बाद की परिस्थितियों का सजीव अंकन किया है| यह कविता 1952 में रची गई थी| यह कविता देखने में जितनी छोटी और सरल लगती है, अर्थ एवं भावबोध में उतनी ही गहरी एवं संवेदना से भरी हुई है| सारी कविता अपनी आठ पंक्तियों के माध्यम से अकाल और उसके बाद की स्थिती की चित्रात्मक व्यंजना करती है| यह चित्र रोजमर्रा के जाने-पहचाने लगते हैं| इस कविता का एक-एक शब्द यथास्थान जुड़ा है| कविता में कहीं भी अकाल आने की बात नहीं की गई है, बल्कि सारी कविता का संबंध अकाल से जुड़ी परिस्थितियों से ही है| यह पुरी कविता आशा और निराशा सुप्त द्वंद्व की अभिव्यंजना करती है| अकाल में मनुष्य के अलावा अन्य प्राणियों की भी उसी तरह की दुर्गति होती है| कविता का संदेश यही है कि अकाल के समय घर भर में मनहूसियत छा जाती है परंतु पक्के इरादे से अगर सामना किया जाए तो बुरा समय टल जाता है तथा पुन: समृद्धि लौट आती है|