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Your Name in suicide note? question 12

Question 12- What happens if someone put your name in suicide note? Is it sufficient to prosecute and convict the accused. Learn the technicalities of Indian law. What is the implications of section 306 IPC. It is punishable with 10 years jail and a cognizable offence, non bailable. It is session triable case and anticipatory bail should be taken first before you join investigation. Police can arrest without warrant. हाय गाइज, आज का क्वेश्चन किसी ने महाराष्ट्र से पूछा है, यह पूछ रहे हैं कि अगर मान लीजिए कोई सुसाइड नोट में आपका नाम लिख के चला गया और वह बंदा सुसाइड नोट में अगर नाम लिखने के बाद मर जाता है तो क्या सिर्फ इस वजह से कि सुसाइड नोट में आपका नाम है, आपको जेल हो जाएगी, क्या आपको जो सजा है वह हो जाएगी या नहीं होगी तो सबसे पहले आपको यह समझना पड़ेगा कि सेक्शन 306 है क्या? देखो अगर कोई आदमी सुसाइड करता है और वह किसी के अबेटमेंट यानी किसी के भड़कावे या उकसाने की वजह से सुसाइड कर लेता है तो उसमें सेक्शन 306 यानी अबेटमेंट टू सुसाइड का जो सेक्शन है वह पुलिस इनवोक करती है. अब इसमें जो सबसे पहली चीज है वह यह है कि क्या पुलिस आपको इस केस में डायरेक्टली अरेस्ट कर सकती है या उसको परमिशन लेने की जरूरत पड़ेगी? सेक्शन 306 जो है उसमें मैक्सिमम पनिशमेंट है 10 साल प्लस फाइन यानी ऐसा यह केस जो अरणेश कुमार की जजमेंट सुप्रीम कोर्ट की है उससे बाहर आ जाता है. अब अरणेश कुमार के केस में सुप्रीम कोर्ट ने बोला था कि अगर किसी भी केस के अंदर 7 साल या 7 साल से कम की अगर जेल का प्रोविजन है तो पुलिस वाले डायरेक्टली अरेस्ट नहीं कर सकते, उनको अरेस्ट करने से पहले सेक्शन 41 ए का नोटिस देना चाहिए और अक्यूज को चांस देना चाहिए कि वो इन्वेस्टिगेशन जवाइन कर सके, अगर उसके बाद भी पुलिस को अरेस्ट करने की रिक्वायरमेंट है तो वो परमिशन लेके अरेस्ट कर सकती है या फिर अगर 41 ए के नोटिस की कंप्लायंस नहीं होती तब अरेस्ट किया जा सकता है, लेकिन सेक्शन 306 में वो जो अरणेश कुमार की जजमेंट है वो अप्लाई नहीं होती, इसमें 10 साल तक की जेल है तो अरणेश कुमार में जो 7 साल की कैपिंग थी ये उससे बाहर आ जाता है तो इस केस के अंदर अगर कोई पुलिस वाला इन्वेस्टिगेट करना चाहता है तो उसको परमिशन लेने की जरूरत नहीं है, अगर वह अक्यूज को अरेस्ट करना चाहते हैं तो भी उसको परमिशन लेने की जरूरत नहीं है और इस सिचुएशन में अगर सुईसाइड नोट में आपका नाम लिख दिया है तो यह चांसेस हैं कि पुलिस वाले अरेस्ट करने की कोशिश तो करेंगे तो इसके लिए आपके पास जो रेमेडी है वह एंटीसिपेटरी बेल की है बट उस परे जाने से पहले एक चीज और समझो कि इन्वेस्टिगेशन में अगर यह निकलता है कि जो सुसाइड है उस सुसाइड में आपका कोई हाथ है यानी आपने आया है, आपका रिलेशनशिप क्या था, जो आदमी मरा है उसके साथ या आपका जो बिहेवियर था उसके साथ वो कैसा था, कोई पैसे का लेनदेन था या नहीं था, अब इसके लिए अगर आपको लॉ समझना है तो उसमें बॉम्बे हाई कोर्ट की एक जजमेंट है, गुलाब वर्जेस स्टेट ऑफ महाराष्ट्र, आप उसको डाउनलोड करके पढ़ सकते हो, इसमें बॉम्बे हाई कोर्ट ने बोला है कि जस्ट बिकॉज किसी का नाम सुसाइड नोट में लिख दिया है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसी आदमी ने सुसाइड के लिए अबेटमेंट किया है, बाकी और भी फैक्ट्स हैं वो प्रूव करने बहुत जरूरी है, अब दूसरा क्वेश्चन ये आता है कि अगर कोई सुईसाइड नोट में नाम लिख दे है तो आपको क्या करना चाहिए? क्या पुलिस अगर बुलाता है पुलिस वाला आपको पुलिस स्टेशन तो आपको जाना चाहिए? आंसर इज नो. अगर 306 का केस है और डायरेक्टली पुलिस वाला आपको पुलिस स्टेशन बुला रहा है तो आपको डायरेक्टली पुलिस स्टेशन नहीं जाना चाहिए क्योंकि पुलिस वाले को पता है कि अगर आप पुलिस स्टेशन आते हो तो वह आपको डायरेक्टली अरेस्ट कर सकता है तो पुलिस स्टेशन जाने से पहले क्या करें? सबसे पहले आपको स्टेप लेना चाहिए आपको कोर्ट ऑफ सेशन में एंटीसिपेटरी बिल फाइल करनी चाहिए. आप कोर्ट को बता सकते हैं कि आपका और जो डिसीज था उसका रिलेशन कैसा था क्या आपका अबेटमेंट था या नहीं था या जो आपके फेवर के जो डिफेंस की जो चीजें हैं वह आप कोर्ट में प्रोड्यूस कर सकते हो और चांसेस हैं कि आपको इंडिस्पेटरी बेल मिल जाए और कोर्ट ऑफ सेशन से अगर आपको एंटीसिपेटरी बेल नहीं मिलती है किसी भी रीजन से तो आप हाई कोर्ट में भी एंटीसिपेटरी बेल के लिए मूव कर सकते हो एक बार एंटीसिपेटरी बेल मिल गई तो आप उसके बाद पुलिस स्टेशन जाके इन्वेस्टिगेशन जवाइन कर सकते हो कोई प्रॉब्लम नहीं होगी किसी तरह की हां क्योंकि सुसाइड नोट में आपका नाम है तो यह मान के चलना कि आपके अगेंस्ट ट्रायल जरूर चलेगा अब ट्रायल का मतलब यह हो गया कि जो 5-छ साल केस चलेगा वो आपको भुगतना पड़ेगा उसमें प्रॉस अपनी तरफ से एविडेंस देंगे और उसके बाद आपकी बारी आएगी अपनी तरफ से डिफेंस एविडेंस देने की जो सबसे इंपॉर्टेंट चीज है वो यह है कि अगर 306 का कोई केस हो जाता है अपेटमेंट टू सुसाइड तो वो मैजिस्ट्रेट ट्राइबल केस नहीं है वो कोर्ट ऑफ सेशन ट्राइबल केस है ये कॉगनिजेबल है नॉन बेलेबल है और कोर्ट ऑफ सेशन में इसका ट्रायल चलेगा तो जब चार्जशीट फाइल होगी तो चार्जशीट होगी मैजिस्ट्रेट कोर्ट में या सीएम सीजीएम या सीएमएम कोर्ट में उसके बाद जो कंसर्न मैजिस्ट्रेट कोर्ट है वो इसको कमिट कर देंगे कोर्ट ऑफ सेशन में आपके चार्ज भी जो है व कोर्ट ऑफ सेशन में फ्रेम होंगे और जो ट्राय है वो भी पूरा कोर्ट ऑफ सेशन में चलेगा.

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