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प्रश्न- "संन्यासी सर्वकर्म्मविनाशी" और अग्नि तथा धातु को स्पर्श नहीं करते। यह बात सच्ची है वा नहीं? उत्तर - नहीं । “सम्यङ् नित्यमास्ते यस्मिन् यद्वा सम्यङ् न्यस्यन्ति दुःखानि कर्माणि येन स संन्यासः, स प्रशस्तो विद्यते यस्य स स "न्यासी" जो ब्रह्म और उसकी आज्ञा में उपविष्ट अर्थात् स्थित और जिससे दुष्ट-कर्मों का त्याग किया जाय, वह उत्तम स्वभाव जिसमें हो, वह 'स 'न्यासी' कहाता है। इसमें सुकर्म का कर्त्ता और दुष्ट कर्मों का विनाश करने वाला 'संन्यासी' कहाता है। प्रश्न- अध्यापन और उपदेश गृहस्थ किया करते हैं, पुनः संन्यासी का क्या प्रयोजन है ? उत्तर - सत्योपदेश सब आश्रमी करें और सुनें, परन्तु जितना अवकाश और निष्पक्षपातता संन्यासी को होती है, उतनी गृहस्थों को नहीं । हां, जो ब्राह्मण हैं, उनका यही काम है कि पुरुष पुरुषों को और स्त्री स्त्रियों को सत्योपदेश और पढ़ाया करें। जितना भ्रमण का अवकाश स 'न्यासी को मिलता है, उतना गृहस्थ ब्राह्मणादिकों को कभी नहीं मिल सकता। जब ब्राह्मण वेदविरुद्ध आचरण करें तब उनका नियन्ता संन्यासी ही होता है। इसलिये संन्यास का होना उचित है। सनातन धर्म के प्रचार में आप अपने सामर्थ्य के अनुसार हमें सहयोग कर सकते हैं। हमारा खाता विवरण इस प्रकार है- खाताधारक- अंकित कुमार बैंक- State Bank of India A/C no. 33118016323 IFSC- SBIN0007002 UPI- 7240584434@upi