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युद्ध के बाद बर्बरीक द्वारा पांडवों के अभिमान का मर्दन हुआ और उसके बाद उनके शीश को रूपवती नदी में प्रवाहित किया गया। शीश बहता हुआ खाटू नामक गांव में पहुँच गया। इसके बाद रूपवती नदी सूख गई और बर्बरीक का शीश वहीं दबा रह गया। उसके कई वर्षों बाद राधा नामक एक गाय थी। वह गाय दूध देने में असमर्थ थी। इसी कारण उसके मालिक ने उसे छोड़ दिया। गाय घूमते हुए उस स्थान पर पहुंची जहां बर्बरीक का शीश दफन था। वहां पहुँचते ही उसके थनों से दूध बहने लगा। जिसके बाद खाटू के राजा को जब इस बात का पता चला तो वे स्वयं वहां गए और वहां खुदाई करके उन्हें एक शीश दिखा। जिसके पश्चात आकाशवाणी हुई कि यह ज्येष्ठ घटोत्कच पुत्र बर्बरीक का शीश है जिसे श्री कृष्ण चंद्र द्वारा उनके श्याम नाम से पूजे जाने का वर है। यह कला योगी कृष्ण है। इनके लिए विशाल मंदिर का निर्माण करवा आकाशवाणी के कुछ दिनों बाद मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और देव उठनी एकादशी के दिन बर्बरीक के उस शीश की स्थापना मंदिर में हुई और वे बर्बरीक से खाटू श्याम बन गए। और दोस्तों कमेंट में श्री खाटू श्याम लिखना न भूले #KhatuShyam #Barbarik