У нас вы можете посмотреть бесплатно श्रीसुन्दरकाण्ड Sunderkand(श्री६श्री गुरु श्रीशिवदत्त स्मारक गड्डी,जोधपुर)9414849604 9829335510 или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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जय श्री राम , आप सभी धर्म प्रेमियों की सेवार्थ श्री सुन्दर काण्ड प्रस्तुत है , त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | ॥ ॐ श्री परमात्मने नमः । । प्रनवउँ पवनकमार खल बन पावक ग्यानघन । जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥ किष्किन्धाकाण्ड [ दोहा २९ ] बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ सो तनु बरनि न जाइ । उभय घरी महँ दीन्हीं सात प्रदच्छिन धाइ । अंगद कहइ जाउँ मैं पारा । जियँ संसय कछु फिरती बारा ॥ जामवंत कह तुम्ह सब लायक । पठइअ किमि सबही कर नायक । कहइ रीछपति सुनु हनुमाना । का चुप साधि रहेहु बलवाना ॥ पवन तनय बल पवन समाना । बधि बिबेक बिग्यान निधाना ॥ कवन सो काज कठिन जग माहीं । जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं ॥ राम काज लगि तव अवतारा । सुनतहिं भयउ पर्बताकारा ॥ कनक बरन तन तेज बिराजा । मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा ॥ सिंहनाद करि बारहिं बारा । लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा ॥ सहित सहाय रावनहि मारी । आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी । जामवंत मैं पूँछउँ तोही । उचित सिखावनु दीजहु मोही ॥ एतना करहु तात तुम्ह जाई । सीतहि देखि कहहु सुधि आई । तब निज भुज बल राजिवनैना । कौतुक लागि संग कपि सेना ॥ छं० - कपि सेन संग सँघारि निसिचर रामु सीतहि आनिहैं । त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानिहैं ॥ जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नर पावई । रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावई ॥ [ दोहा ३० ( क ) ] भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि । तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि ॥ [ सोरठा ३० ( ख ) ] नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक । सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक ॥ ॥ श्रीगणेशाय नमः । श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्री पञ्चम सोपान श्लोक शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् । रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम् ॥ १ ॥ नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा । भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च ॥ २ ॥ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् । सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं गशिरघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥ ३ ॥ ....................