У нас вы можете посмотреть бесплатно હેતલબેન વિરાણી_વિતક ચર્ચા_તા.27/11/2025_TARTAM SSMM શ્રી શ્યામાજી મહિલા મંડળ કાલાવડ is live! или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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श्री तारतम सागर 1495 श्री कृष्ण नाम महिमा पर न आवे तोले एकने, मुख श्री कृष्ण कहंत । प्रसिध प्रगट पाधरी, किवता किव करंत ॥ 1. महामति प्राणनाथ जी कहते हैं अपने मुख से एक बार श्री कृष्ण नाम का उच्चारण करने से अथवा उनके यशोगान करने से जो लाभ प्राप्त होता है, उसकी तुलना अन्य किसी भी साधन एवं पदार्थों से नहीं की जा सकती, अनेक कवियों ने तथा सन्त मनीषियों ने भी इस सत्यता का प्रमाण दिया है। कोट करो अनेक धरम धरा नरमेध, अस्वमेध विषे, तीरथ वास अनंत । वसंत ॥ 2. यद्यपि करोड़ों नरमेध यज्ञ अथवा अनन्त अश्वमेघ यज्ञ किए जाएं, इस संसार में प्रचलित अनेक धमों का अनुपालन भी किया जाए तथा तीर्थ धामों में जाकर कल्पवास भी किया जाए तथापि श्रीकृष्ण नाम के उच्चारण के साथ इसकी तूलना नहीं की जा सकती। सिध करो साधना, विप्र मुख वेद वदंत। सकल क्रियासुं धरम पालतां, दया करो जीव जंत ॥ 3. चाहे जितनी साधना करके सिद्धियाँ प्राप्त की जाएं, कुलीन ब्राह्मण बनकर वेदों को कण्ठस्थ करके उनका पाठ किया जाए, सब प्रकार की उपासना करके सर्वध में पालन किया जाए, प्राणी मात्र पर दया भाव रखा जाए, परन्तु श्रीकृष्ण नाम स्मरण की तुलना में ये सब टिक नहीं सकते। व्रत करो विध विधनां, सती थाओ सीलवंत। संतना, ग्यानी ग्यान कथंत ॥ वेष धरो साध 4. चाहे अनेक प्रकार के व्रत करो या पतिव्रता धर्म का पालन कर शीलवती सती बनो, साधु, महात्मा बनकर अनेक प्रकार के वेश धारण करो, पण्डित, वैरागी अथवा ज्ञानी बनकर विभिन्न प्रकार से ज्ञान चर्चा करो, तथापि यह सब श्रीकृष्ण नाम के उच्चारण समान नहीं हो सकता। तपसी बहुविध देह दमो, सरवा पर तोले न आवे एकने, मुख अंग दुख श्री कृष्ण सहंत । कहंत ॥ 5. चाहे तपस्वी बनकर विविध प्रकार की साधनाओं द्वारा शरीर (इन्द्रियों) का दमन करो, शरीर के सभी अंगों के द्वारा अनेक प्रकार के दुःख सहन करो। तो भी ये सब उपक्रम श्री कृष्ण नाम स्मरण के समान नहीं हैं। मेहेराज कहे मुख ए धन, जो ते वली रुदे रमंत। धन ए कुलवंत ॥ चौदे भवन जीतियो, धन 6. मिहिरराज (महामति) कहते हैं, जो लोग मुख से श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हैं वे तो धन्य हैं ही किन्तु जिनके हृदय में श्रीकृष्ण जी सदैव रमण करते हैं ऐसी आत्माओं ने तो चौदह लोकों पर विजय प्राप्त कर ली है। ऐसरी कुठीन नहायाः सर्वदा धन्य हैं।