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सहदायिकी क्या है ? सर्वप्रथम हम यह देखते हैं कोपार्सनरी या सहदायिकी क्या है ? एक पिता, पुत्र, पुत्री व पौत्र या पोता मिलकर किसी संयुक्त हिन्दू परिवार में एक सहदायिकी या कोपार्सनरी बनाते हैं। सहदायिकी किसी संयुक्त हिन्दू परिवार की एक छोटी इकाई कही जा सकती है जो उक्त तीन पीढि़यों से मिलकर बनती है। धारा 6 में हुए उक्त संशोधन के पूर्व यह स्थिति थी लेकिन धारा 6 में हुए संशोधन के बाद सहदायिकी में पुत्री को भी शामिल किया गया है अतः वर्ष 2005 के संशोधन के बाद पिता, पुत्र, पुत्री व पौत्र या पोता मिलकर सहदायिकी बनाते है लेकिन पुत्री का पुत्र या नाती सहदायिक नहीं होता है। वर्ष 2005 के बाद पुत्रियों को भी सहदायिक सम्पत्ति में पुत्र के समान हक होता है संशोधन के पूर्व पुत्रियां स्वतंत्र रूप से विभाजन की मांग नहीं कर सकती थी केवल पिता और भाइयों के बीच बंटवारा होने पर उन्हें एक हिस्सा मिलता था और वह भी बहुत थोड़ा सा होता था वर्ष 2005 के संशोधन के बाद पुत्रियां न केवल स्वतंत्र रूप से विभाजन की मांग कर सकती है बल्कि उन्हें पुत्र के समान बराबर हिस्सा सम्पत्ति में मिलता है। सहदायिक सम्पत्ति में विभाजन (वर्ष 2005 के पूर्व की स्थिति) यदि किसी व्यक्ति के तीन पुत्र, तीन पुत्रियां हों और वह तथा उसकी पत्नी भी हो तब उसकी मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति में 3 पुत्रों, एक विधवा और एक उसका स्वयं का इस तरह 5 हिस्से होगें और प्रत्येक को 1/5 हिस्सा मिलेगा। उस व्यक्ति का 1/5 हिस्सा उसके 3 पुत्रों, एक विधवा और तीन पुत्रियों में ( कुल 7 भागों में ) समान रूप से बंटेगा ( अर्थात 1/5 ÷7=1/35).ऐसी में पत्नी का 1/5 + 1/35 = 8/35 अंश मिलेगा और इसी प्रकार प्रत्येक पुत्रों को भी 1/5 + 1/35 = 8/35 अंश मिलेगा। प्रत्येक पुत्री को 1/35 अंश मिलेगा। उस व्यक्ति की मृत्यु दिनांक के ठीक पूर्व काल्पनिक बंटवारा करते हैं। और उक्त अनुसार प्रत्येक सदस्य का हिस्सा निकालते हैं। इस संबंध न्यायदृष्टांत श्रीमति राजरानी विरूद्ध द चीफ सेटलमेंट कमिश्नर देहली ए.आई.आर. 1984 एस.सी. 1234 तीन न्यायमूर्ति गण की पीठ निर्णय चरण 17 और 18, गुरूपद खंडप्पा विरूद्ध हीराबाई खंडप्पा ए.आई.आर. 1978 एस.सी. 1239 तीन न्यायमूर्ति गण की पीठ निर्णय चरण 13 से मार्गदर्शन लिया जा सकता है। वर्ष 2005 के संशोधन के पश्चात् विभाजन होने पर यदि किसी व्यक्ति के दो पुत्र, दो पुत्रियां और पत्नी हैं और वह वर्ष 2005 के संशोधन के अस्तित्व में आने के पश्चात् मरता है तो उसकी सहदायिक सम्पत्ति उसके दो पुत्र, दो पुत्रियों और एक पत्नी मे समान रूप से बंटेगी। उस व्यक्ति की मृत्यु के ठीक पूर्व काल्पनिक बंटवारा करने पर एक अंश उस व्यक्ति का भी रखेंगे और इस तरह सम्पत्ति के 6 हिस्से होंगे और प्रत्येक को 1/6 अंश मिलेगा। उस व्यक्ति का 1/6 अंश फिर उसके दो पुत्र, दो पुत्रियों और एक विधवा में अर्थात् 5 सदस्यों में समान रूप से बंटेगा और प्रत्येक सदस्यों को इस 1/6 ÷5 = 1/30 अंश प्राप्त होगा। और इस तरह प्रत्येक सदस्य को 1/6 + 1/30 = 5/30 या 1/5 अंश मिलेगा। इस तरह जहा वर्ष 2005 के संशोधन के पूर्व पुत्री को मात्र 1/35 अंश सम्पत्ति में मिलता था वहा संशोधन के बाद उसे बराबरी का हक पुत्रों के समान 1/5 अंश मिला। इस तरह वर्ष 2005 के संशोधन के पूर्व पुत्री को पिता के एक हिस्से का भी बहुत थोड़ा अंश मिला था वहीं संशोधन के बाद उसे पुत्रों के समान बराबर अंश मिलने लगा है। 20/12/2004 के पूर्व के विभाजन के बारे में धारा 6(5) हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में ही यह स्पष्ट कर दिया गया है कि 20/12/2004 के पूर्व हुए बंटवारे पर संशोधित प्रावधान लागू नहीं होंगे लेकिन स्पष्टीकरण जोड़कर बंटवारे का अर्थ भी स्पष्ट किया गया है जिसके अनुसार पंजीकृत बंटवारा विलेख या न्यायालय की डिक्री से हुए बंटवारे को ही मान्यता दी जायेगी किसी भी प्रकार के मौखिक बंटवारे को मान्यता नहीं मिल सकती है अतः जब कभी मामलों में प्रतिवादी बंटवारा हो जाने का अभिवाक् लेता है तो उसे धारा 6(5) एवं स्पष्टीकरण के प्रकाश में देखना चाहिए। प्रावधान की प्रकृति धारा 6 हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 भूतलक्षी नहीं है जैसा की न्यायदृष्टांत जी. शेखर विरूद्ध गीथा (2009) 6 एस.सी.सी. 99 निर्णय चरण 30 और 31 से स्पष्ट है। अतः प्रावधान की प्रकृति को समझते समय यह तथ्य ध्यान रखना चाहिए कि यह प्रावधान भूतलक्षी नहीं है। ऋण अदायगी के पवित्र कत्र्तव्य के बारे में धारा 6(4) हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के प्रकाश में इस संशोधन के बाद किसी पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरूद्ध उसके पिता, पितामह, प्रपितामह पर बकाया किसी ऋण की वसूली के लिए परम कर्तव्य या पायस ओबलीगेशन के सिद्धांत के आधार पर अब कोई कार्यवाही नहीं की जा सकेगी यह भी एक परिवर्तन संशोधन के बाद आया है। कृषि भूमि के बारे में कृषि भूमि के बारे में भी हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के प्रावधान ही हिन्दू पर लागू होते हैं क्योंकी कृषि भूमि व्यक्तिगत कानून के अनुसार विभाजित होती है। इस प्रकार 2005 में धारा 6 हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में हुए संशोधन के बाद पुत्रियों को पुत्र के समान सहदायिक सम्पत्ति में समान हक दिया गया है और वे सहदायिक सम्पत्ति में स्वतंत्र रूप से विभाजन की मांग भी कर सकती है लेकिन 20/12/2004 के पूर्व पंजीकृत विलेख से या न्यायालय के माध्यम से हो चुके विभाजन पर यह प्रावधान लागू नहीं होता है। अब महिलायें धारा 23 के विलुप्त हो जाने के बाद निवास गृह में भी विभाजन मांग सकती है, ऋण अदा करने का पवित्र कत्र्तव्य की स्थिति विलुप्त हो चुकी है। धारा 6 हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम भूतलक्षी नहीं है सहदायिक सम्पत्ति के बारे में जन्म से अधिकार का सिद्धांत लागू होता है लेकिन पिता यदि विभाजन करवाकर पृथक अंश ले चुका होता है तब पिता के जीवनकाल में पुत्र को विभाजन मांगन