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©वास्तुशास्त्र काव्य चालीसा भाग-०१ @upendravasturesolve5368 यह वास्तुशास्त्र काव्य चालीसा कॉपीराइट के तहत है। यह चालीसा वास्तुशास्त्रक ग्रँथों, ज्योतिष शास्त्र, योगशास्त्र के सूत्रों पर आधारित है। दिशाओं का ज्ञान सभी लोग को है ही, पंचतत्वों का रंग,आकार, स्वभाव,दिशाओं का वर्णन क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंचतत्व कहलाता है। नीला पीला लाल सफेदी, विचित्र रँग दिखलाता है।। शिवस्वरोदय शास्त्र में आया है:- आप: श्वेता क्षीतिः पीता रक्तवर्णो हुताशनः। मारुतो नील जीमूत आकाशः सर्ववर्णके।। रं बीजं शिखिनं ध्यायेत त्रिकोणं अरुणंप्रभं। वं बीजं वरुणं ध्यायेत अर्धचंद्र शशिप्रभं। आदि अन्य सूत्र मिलते हैं। अगले भाग में भवननिर्माण में मुहूर्त की उपयोगिता पर चर्चा करेंगे। हमारे अन्य वास्तुशास्त्रक वीडियो देखें:--- भवन में ब्रह्मस्थान के गुण दोष एवं उपाय • भवन में ब्रह्मस्थान के गुण,दोष एवं उपाय,दे... वायव्यकोण के गुण दोष एवं उपाय • वायव्यकोण(NW) में दोष है, तो क्या प्रभाव ए... घर के अग्निकोण के बढ़ने पर प्रभाव एवं उपाय • घर का अग्निकोण बढ़ा हुआ है/Extension of SE ...