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अन्तिम प्रवचन - स्वामी रामसुखदासजी महाराज 20050629 0330 Antim Pravachan 000 || श्री हरिः || श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के (अन्तिम प्रवचन का यथावत् लेखन) [श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजसे अन्तिम दिनोंमें यह प्रार्थना की गयी कि आपके शरीरकी अशक्त अवस्थाके कारण प्रतिदिन सत्संग-सभामें जाना कठिन पड़ता है।इसलिये आप विश्राम करावें।जब हमलोगोंको आवश्यकता मालुम पड़ेगी तब आपको हमलोग सभामें ले चलेंगे और कभी आपके मनमें सत्संगियोंको कोई बात कहनेकी आ जाय तो कृपया हमें बता देना,हमलोग आपको सभामें ले जायेंगे। उस समय ऐसा लगा कि श्री महाराजजी ने यह प्रार्थना स्वीकार करली। इस प्रकार जब भी परिस्थिति अनुकूल दिखायी देती तब समय-समय पर आपको सभामें ले जाया जाता था। एक दिन (परम धाम गमन से तीन दिन पहले २९ जून २००५ को) श्रद्धेय श्री स्वामीजी महाराजने अपनी तरफसे (अपने मनसे) फरमाया कि आज चलो अर्थात् आज सभामें चलें। सुनकर तुरन्त तैयारी की गयी। पहियोंवाली कुर्सी पर आपको विराजमान करवा कर सभामें ले जाया गया और जो बातें आपके मनमें आयीं,वो सुनादी गयीं तथा वापस अपने निवास स्थान पर पधार गये। दूसरे दिन भी सभामें पधारे और प्रवचन हुए। इस प्रकार यह समझ में आया कि जो अन्तिम बात सत्संगियोंको कहनी थी,वो उस (पहले) दिन कह दीं। दूसरे दिन भी सभामें पधारे थे परन्तु दूसरों की मर्जी से पधारे थे।अपनी मर्जीसे तो जो आवश्यक लगा, वो पहले दिन कह चूके। दूसरे दिन (उन पहले दिन वाली बातों पर)प्रश्नोत्तर हुए]। श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के अन्तिम प्रवचन का यथावत् लेखन १- मंगलाचरण के बाद- ■■■■■■■■■■■■■ श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के द्वारा दिया गया यहाँ यह अन्तिम प्रवचन दिनांक,२९ जून २००५ को सायं लगभग ४ बजे का है। इसकी रिकोर्डिं को सुन-सुनकर उस के अनुसार ही, यथावत् लिखने की कोशिश की गयी है। महाराज की वाणी में email: [email protected] websites: www.swamiramsukhdasji.net (english) www.swamiramsukhdasji.org (hindi) / swamiramsukhdasji / swamiramsukhdasjienglish http://www.sadhaksanjivani.com/ http://www.shriswamiramsukhdasjimahar... http://satcharcha.blogspot.com/ (Daily hindi message) / @swamiramsukhdasjimaharaj www.gitapress.org www.gitaprakashan.com Swami Ramsukhdasji's sole aim was to find out how mankind can be benefited (liberated) in the least possible time and through the easiest possible method, and throughout his life he kept searching for this one answer. In this context he discovered many revolutionary, novel, and remarkable methods and spread them across the masses through his discourses and articles. The very idol of Shrimad Bhagavad Gita, Revered Swamiji Maharaj also authored an unprecedented commentary on Gita titled 'Sadhak-Sanjivani', which is an outstanding gift from him to the world. Other than this, he also authored several unparalleled texts such as 'Gita-Darpan', 'Gita Prabodhani', 'Sadhan-Sudha-Sindhu' etc.