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आध्यात्मिक और भौतिक इच्छाएं कैसे पूरी होगी? | BG 03.11 | 4 Mar 2004 | Mumbai | Gopal Krishna Goswami скачать в хорошем качестве

आध्यात्मिक और भौतिक इच्छाएं कैसे पूरी होगी? | BG 03.11 | 4 Mar 2004 | Mumbai | Gopal Krishna Goswami 3 года назад

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आध्यात्मिक और भौतिक इच्छाएं कैसे पूरी होगी? | BG 03.11 | 4 Mar 2004 | Mumbai | Gopal Krishna Goswami

आध्यात्मिक और भौतिक इच्छाएं कैसे पूरी होगी? | BG 03.11,12 | 4 Mar 2004 | Mumbai | Gopal Krishna Goswami Install GKG App 𝐄𝐯𝐞𝐫𝐲𝐭𝐡𝐢𝐧𝐠 @ 𝟏 𝐏𝐥𝐚𝐜𝐞 😇 𝐃𝐢𝐬𝐭𝐫𝐚𝐜𝐭𝐢𝐨𝐧 𝐅𝐫𝐞𝐞 ✔️ 𝐍𝐨 𝐀𝐝𝐬 🚫 All about Śrīla Gopāl Kṛṣṇa Goswāmī Maharaja Install Now Android - https://bit.ly/gkgapp iOS - https://bit.ly/gkgapp1 BG 3.11 “देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः | परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ || ११ ||” अनुवाद यज्ञों के द्वारा प्रसन्न होकर देवता तुम्हें भी प्रसन्न करेंगे और इस तरह मनुष्यों तथा देवताओं के मध्य सहयोग से सबों को सम्पन्नता प्राप्त होगी | तात्पर्य तात्पर्य : देवतागण सांसारिक कार्यों के लिए अधिकारप्राप्त प्रशासक हैं | प्रत्येक जीव द्वारा शरीर धारण करने के लिए आवश्यक वायु, प्रकाश, जल तथा अन्य सारे वर उन देवताओं के अधिकार में हैं, जो भगवान् के शरीर के विभिन्न भागों में असंख्य सहायकों के रूप में स्थित हैं | उनकी प्रसन्नता तथा अप्रसन्नता मनुष्यों द्वारा यज्ञ की सम्पन्नता पर निर्भर है | कुछ यज्ञ किन्हीं विशेष देवताओं को प्रसन्न करने के लिए होते हैं, किन्तु तो भी सारे यज्ञों में भगवान् विष्णु को प्रमुख भोक्ता की भाँति पूजा जाता है | भगवद्गीता में यह भी कहा गया है कि भगवान् कृष्ण स्वयं सभी प्रकार के यज्ञों के भोक्ता हैं – भोक्तारं यज्ञतपसाम्| अतः समस्त यज्ञों का मुख्य प्रयोजन यज्ञपति को प्रसन्न करना है | जब ये यज्ञ सुचारू रूप से सम्पन्न किये जाते हैं, तो विभिन्न विभागों के अधिकारी देवता प्रसन्न होते हैं और प्राकृतिक पदार्थों का अभाव नहीं रहता | यज्ञों को सम्पन्न करने से अन्य लाभ भी होते हैं, जिनसे अन्ततः भवबन्धन से मुक्ति मिल जाती है | यज्ञ से सारे कर्म पवित्र हो जाते हैं, जैसा कि वेदवचन है – आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः स्मृतिलम्भे सर्वग्रंथीनां विप्रमोक्षः | यज्ञ से मनुष्य के खाद्यपदार्थ शुद्ध होते हैं और शुद्ध भोजन करने से मनुष्य-जीवन शुद्ध हो जाता है, जीवन शुद्ध होने से स्मृति के सूक्ष्म-तन्तु शुद्ध होते हैं और स्मृति-तन्तुओं के शुद्ध होने पर मनुष्य मुक्तिमार्ग का चिन्तन कर सकता है और ये सम मिलकर कृष्णभावनामृत तक पहुँचाते हैं, जो आज के समाज के लिए सर्वाधिक आवश्यक है | BG 3.12 “इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः | तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङक्ते स्तेन एव सः || १२ ||” अनुवाद जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले विभिन्न देवता यज्ञ सम्पन्न होने पर प्रसन्न होकर तुम्हारी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे | किन्तु जो इन उपहारों को देवताओं को अर्पित किये बिना भोगता है, वह निश्चित रूप से चोर है | तात्पर्य तात्पर्य : देवतागण भगवान् विष्णु द्वारा भोग-सामग्री प्रदान करने के लिए अधिकृत किये गये हैं | अतः नियत यज्ञों द्वारा उन्हें अवश्य संतुष्ट करना चाहिए | वेदों में विभिन्न देवताओं के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के यज्ञों की संस्तुति है, किन्तु वे सब अन्ततः भगवान् को ही अर्पित किये जाते हैं | किन्तु जो यह नहीं समझ सकता है कि भगवान् क्या हैं, उसके लिए देवयज्ञ का विधान है | अनुष्ठानकर्ता के भौतिक गुणों के अनुसार वेदों में विभिन्न प्रकार के यज्ञों का विधान है | विभिन्न देवताओं की पूजा भी उसी आधार पर अर्थात् गुणों के अनुसार की जताई है | उदाहरणार्थ, मांसाहारियों को देवी काली की पूजा करने के लिए कहा जाता है, जो भौतिक प्रकृति की घोर रूपा हैं और देवी के समक्ष पशुबलि का आदेश है | किन्तु जो सतोगुणी हैं उनके लिए विष्णु की दिव्य पूजा बताई जाती है | अन्ततः समस्त यज्ञों का ध्येय उत्तरोत्तर दिव्य-पद प्राप्त करना है | सामान्य व्यक्तियों के लिए कम से कम पाँच यज्ञ आवश्यक हैं, जिन्हें पञ्चमहायज्ञ कहते हैं | किन्तु मनुष्य को यह जानना चाहिए कि जीवन की सारी आवश्यकताएँ भगवान् के देवता प्रतिनिधियों द्वारा ही पूरी की जाती हैं | कोई कुछ बना नहीं सकता | उदाहरणार्थ मानव समाज के भोज्य पदार्थों को लें | इन भोज्य पदार्थों में शाकाहारियों के लिए अन्न, फल, शाक, दूध, चीनी आदि हैं और मांसाहारियों के मांसादि जिनमें से कोई भी पदार्थ मनुष्य नहीं बना सकता | एक और उदहारण लें – यथा उष्मा, प्रकाश, जल, वायु आदि जो जीवन के लिए आवश्यक हैं, इनमें से किसी को बनाया नहीं जा सकता | परमेश्र्वर के बिना न तो प्रचुर प्रकाश मिल सकता है, न चाँदनी, वर्षा या प्रातःकालीन समीर ही, जिनके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता | स्पष्ट है कि हमारा जीवन भगवान् द्वारा प्रदत्त वस्तुओं पर आश्रित है | यहाँ तक कि हमें अपने उत्पादन-उद्यमों के लिए अनेक कच्चे मालों की आवश्यकता होती है यथा धातु, गंधक, पारद, मैंगनीज तथा अन्य अनेक आवश्यक वस्तुएँ जिनकी पूर्ति भगवान् के प्रतिनिधि इस उद्देश्य से करते हैं कि हम इनका समुचित उपयोग करके आत्म-साक्षात्कार के लिए अपने आपको स्वस्थ एवं पुष्ट बनायें जिससे जीवन का चरम लक्ष्य अर्थात् भौतिक जीवन-संघर्ष से मुक्ति प्राप्त हो सके | यज्ञ सम्पन्न करने से मानव जीवन का चरम लक्ष्य प्राप्त हो जाता है | यदि हम जीवन-उद्देश्य को भूल कर भगवान् के प्रतिनिधियों से अपनी इन्द्रियतृप्ति के लिए वस्तुएँ लेते रहेंगे और इस संसार में अधिकाधिक फँसते जायेंगे, जो कि सृष्टि का उद्देश्य नहीं है तो निश्चय ही हम चोर हैं और इस तरह हम प्रकृति के नियमों द्वारा दण्डित होंगे | चोरों का समाज कभी सुखी नहीं रह सकता क्योंकि उनका कोई जीवन-लक्ष्य नहीं होता | भौतिकतावादी चोरों का कभी कोई जीवन-लक्ष्य नहीं होता | -------------------------------------------------------------------------------------------------- LIKE | COMMENT | SHARE | SUBSCRIBE -------------------------------------------------------------------------------------------------- #GKGMedia #GKGTalk #GopalKrishnaGoswami #Bhagvatam

Comments
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