У нас вы можете посмотреть бесплатно मृत्यु ! | Mrityu! | Death! | रचियता - बाबू ‘युगल’ जी जैन, कोटा | Babu Yugal Ji Jain, Kota или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
मृत्यु ! जिसे व्यक्ति झूठा स्वप्न समझता है, वह सृष्टि का अटल सत्य है और नये जीवन की सुन्दर आमंत्रण पत्रिका है। यह महायोग के लिए चिर समाधी व मुक्ती का भव्य उद्घाटन है और क्या है ? मृत्यु.... आइए सुनते है पूज्य बाबुजी की अमर अनुभूतियों के अमर संगीत से............ रचियता - बाबू ‘युगल’ जी जैन, कोटा | Babu Yugal Ji Jain, Kota स्वर - मल्लिका सोनी, उज्जैन संगीत- अन्वय जैन, दिव्यध्वनि स्टुडियो, उज्जैन प्रस्तुतकर्ता- आचार्य कुन्द कुन्द फाउंडेशन , कोटा मृत्यु ! अरी मृत्यु की बहरी बाला, ओ वसुधा के महा विधान नहीं कभी तू मरती, तेरा निखिल लोक में चलता यान नव जीवन की पृष्ठभूमि, ओ दक्ष धनुर्धर के संधान भोग सृष्टि की प्रलय-कारिणी, ओ योगी के मंगल गान निश्छल शिशु-सी निर्विकारिता, सार्वभौम समदृष्टि सुरम्य सबसे गूढ़ रहस्य जगत् के, तू ही एक चिरंतन सत्य उन्मन् वैभव की बरसातें, अथवा हो दुर्देव वितान तेरा क्षण पर नहीं टलेगा, तू जगती का नियम महान राजदण्ड तू महा विश्व की और सृष्टि की सुन्दर नीति तू एकाकी वीतराग-सी, तुझको नहीं किसी से प्रीति निखिल विश्व को कवलित करती, लेती बस प्राणों का भोग असफल सारे राजतंत्र हैं, तुझ पर नहीं कोई अभियोग कृष्ण-क्रान्ति की सूत्रधारिणी, नियति-नटी के तांडव नृत्य विश्व-विजयिनी ओ कंकाली ! रंगमंच के अन्तिम दृश्य संक्लेशों की जन्मभूमि, ओ पापों के सुन्दर अभिशाप ओ चिन्ता के तल प्रकोष्ठ, ओ ज्वालामुखियों के संताप नन्दन-वन की भीषण दावा, पुण्य-तत्त्व के करुण विलाप अस्वीकृति सब आवेदन की जीवन के सुन्दरतम पाप ओ तस्कर! जीवन बसन्त के स्वर्णिम पातों के पतझड़ मूर्तिमान विश्वासघात, ओ जीवन के सर्वोत्तम छल विश्व विपिन में निर्दय भूखी, अपलक व्याली-सी गतिमान नहिं अपथ्य तेरा कोई भी, भू-मण्डल तेरा जलपान तेरे अंचल में पलता है जीवन-शिशु सुन्दर सुकुमार ओ निर्दय ! पर तू ही अन्तिम कर देती उसका संस्कार पोंछ दिये तूने सहसा ही अनगिन भालों के सिन्दूर रची महँदियों की चीत्कारें बधिक-तुल्य तू सुनती क्रूर प्रासादों के भोग-कक्ष, उन्मुक्त काम का मदिर-विलास मत्त मस्तियाँ प्रमदाओं की, इन पर तू हँसती चुपचाप कालकूट विष पी-पी कर भी अरी मोहनी! रही अमर घर-घर जाती लेकिन लगती नहीं किसी की कभी नजर करता लोक तुम्हारी पूजा री ! अनादि से तन्मय मन नहीं चाहता किन्तु स्वप्न में वह देवी तेरा दर्शन मूषक-सी तू काटा करती नव-शिशु का जीवन चुपचाप अरी प्रवीणे! लेकिन कितना अनसुन है तेरा पदचाप महामान का फेनिल-यौवन करता जग का उत्पीडन शीश तोड़ देती तू उसका, वज्र विनिर्मित तेरा घन फाड़ दिये तूने ममत्व के ओ व्याघ्री ! कितने ही चीर ले जाती निज सबल पाश में नर्क-निगोदों के उस तीर पावन प्रायश्चित पापों के, ओ कल्मष के चिर-प्रस्थान मुक्तिवधु की परिणय पत्री, चेतन के आनन्द-निधान ऋषियों के मन-सी अचंचला, सघन शान्ति के अमृत कुम्भ तू अभाव की सुन्दर-संज्ञा, मंगल-जीवन का प्रारम्भ निर्ममत्व की सुखद सहेली, वीतराग के चिर विश्राम अवसादों की अन्तिम संध्या, अन्तिम क्षण के विनत प्रणाम जन्म-मृत्यु के जन्म-स्थल जो पाप-पुण्य सब ही निःशेष पंचभूत का चिर- विश्लेषण, सघन चेतना का संश्लेष उपसंहार अतीत क्षणों के, ओ साधक के सफल भविष्य अन्तिम पृष्ठ ग्रन्थराजों के, महायज्ञ के चरम हविष्य ओ नवयुग के प्रिय आमन्त्रण, मधुमय जीवन के सन्देश विश्व-नगर की चतुर नागरी, कितना भव्य अरी परिवेश घनीभूत चैतन्य विभा, निज सौख्य कल्प की शीतल छाँह इन्द्रभवन के सुख सकुचाते तू पहुँचा देती उस गाँव धवल धरा के प्रथम चरण, ओ सुख-शय्या के प्रथम विहान आवर्तन की चिर समाधि, ओ तीर्थंकर के परिनिर्वाण #जैन #जैनभजन #तत्विक #जैनकविता #कविता #जैनपोयम#पोयम #veershashan #lordmahvir #mahveerbhagwan #mumukshu # #मुमुक्षु #virshashandiwas #mahveerjayanti #divyadhawani #samavsharan #jain #khsamavani #kshama #shama #shamavani #Parv #micchamidukkadam #micchamidukkadamsong #micchamidukkadamwhatsappstatus #khsamavaniwhatsapp #jaindharam #मृत्यु #mratyumahostav #Mratyu #Maratyu #Maratu #mratu #Maratu #maratyu