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| Rajgarh Mahal | Datia | दतिया रियासत की कहानी बयां करता राजगढ़ का महल! 📌You can join us other social media 👇👇👇 💎INSTAGRAM👉 / gyanvikvlogs 💎FB Page Link 👉 / gyanvikvlogs इंद्रजीत के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र शत्रुजीत दतिया का शासक बना । शत्रुजीत का काल ( 1762-1801 ) भारतीय इतिहास में बहुत ही उथल - पुथल और संक्रमण का काल था । पानीपत के युद्ध ( 1761 ई . ) ने मराठों की शक्ति को गहरा धक्का पहुँचाया था । पेशवा माधवराव और महादजी सिंधिया जब तक उसे उवारे तब तक भारतीय क्षितिज पर अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी एक नई शक्ति के रूप में उदित हो चुकी थी । सन् 1757 में प्लासी के युद्ध में वह बंगाल में अपना प्रभाव स्थापित कर चुकी थी। और सन 1764 ई . में बक्सर के युद्ध में उसने एक साथ मुगल सम्राट शाहआलम , उसके वजीर , अवध के नवाब शुजाउद्दौला और बंगाल के नवाब मीर कासिम को पराजित कर अपनी स्थिति मजबूत ही नहीं अपितु निर्णायक बना ली थी । मराठों को भी दोनों आंग्ल - मराठा युद्ध में जो (1774-1782) ई . और सन (1802-1803) के बीच हुए थे , मुंह की खानी पड़ी । अवध की बेगमें बनारस का राजा चेतसिंह , मैसूर के हैदर अली और टीपू सुल्तान सभी अंग्रेजों की बढ़ती शक्ति और दुरभि संधियों के शिकार हुए थे । देशी राजे - रजवाड़ों को पंगु बना देने वाली लार्ड वेलेजली ( 1798-1805 ई . ) की सहायक संधियों का दौर शुरू हो चुका था । बुन्देलखण्ड भी बरबस इस राजनैतिक भँवर में खिचता गया । ऐसी स्थिति में शत्रुजीत किसी प्रकार लगभग 40 वर्षों तक अपनी दतिया की गद्दी पर आसीन रहा । यही उसके लिए कम श्रेयस्कर बात नहीं थी । शत्रुजीत के गद्दी पर बैठते ही शत्रुओं के आक्रमण शुरू हो गये । प्रथम दशक में ही नवाब शुजाउद्दौला , उसके गुंसाई सरदार हिम्मतबहादुर , मल्हारराव होल्कर , झाँसी के नये सूबेदार नारोशंकर के भतीजे विश्वासराव लक्ष्मण और जवाहर जाट लगातार दतिया राज्य के प्रदेशों को उध्वस्त करते रहे । शत्रुजीत कैसे तो भी विपत्ति के अनुरूप कभी युद्ध कर , कभी दबकर और कभी चौथ और युद्ध की क्षति पूर्ति देकर , दतिया की गद्दी बचाये रहा । सन् 1771 ई . में रघुनाथरि निवालकर झांसी का सूबेदार हुआ । उधर ग्वालियर के महादजी सिन्धिया का दबदबा बढ़ चला । इन दोनों पाटों के बीच ओड़छा और दतिया दोनों ही खूब पिसे । उनके कई भूभाग झांसी और ग्वालियर के मराठा राज्यों में बलपूर्वक , मिला लिए गये । चौथ की वसूली और तरह - तरह के हरजाने लगाकर दोनों ही राज्यों का रक्त निचोड़ा जाता रहा । ओड़छा का राजा विक्रमाजीत तो इस सबसे इतना घबड़ा गया कि वह सन् 1783 ई में अपनी राजधानी ओड़छा से टीकमगढ़ ले गया । पर शत्रुजीत ने हिम्मत नहीं हारी । सन् 1791 ई के लगभग नाना फडनीस ने पेशवा बाजीराव मस्तानी के पौत अलीबहादुर को धसान नदी के पार पूर्वी बुंदेलखण्ड का शासन संभालने भेजा । सुप्रसिद्ध गुंसाई सरदार हिम्मत बहादुर भी उसी के साथ बुंदेलखण्ड चला आया । इन दोनों की महादजी सिन्धिया से नहीं बनती थी । झाँसी के सूबेदार रघुनाथ हरि निवालकर ( 1771-1794 ई ) भी महादजी की झाँसी पर कुदृष्टि से शंकित था । शत्रुजीत भी सिंधिया और सिन्धिया के सरदारों , हरिपंत , अम्बाजी इंग्ले , लखवा दादा आदि से कम त्रस्त न था । अतएव महादजी सिन्धिया के विरुद्ध इनके समान विरोधी रुख ने उन्हें कुछ हद तक परस्पर एक दूसरे के लिए सहनशील बना दिया । इससे शत्रुजीत को रघुनाथ हरि की ओर से कुछ राहत मिल गई । इधर महादजी सिन्धिया भी राजपूतों से लालसोट की पराजय ( 27 जुलाई 1787 ) के बाद राजपूतों इन्दौर के होल्करों और दिल्ली के शाही मामलों में उलझ जाने से बुंदेलखण्ड ' ओर विशेष ध्यान नहीं दे सका । इससे भी शत्रुजीत को दतिया राज्य के बचे - खुचे प्रदेशों पर अपना शासन बनाये रखने में सुविधा हुई । #DatiaMahal #RajgarhPalace #Gyanvikvlogs #HeritageofDatia #MadhyaPardeshHeritage #मध्यप्रदेश_की_धरोहर #OrchhaHeritage #राजगढ़महल