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ग़म नहीं जी तन से निकला दिल गया मिल गए तुम मुझ को सब कुछ मिल गया बोले वो सीने पे मेरे रख के हाथ कहिए अब तो इज़्तिराब-ए-दिल गया ऐ निगाह-ए-यास तेरा हो बुरा घर तलक रोता हुआ क़ातिल गया तेग़-ए-क़ातिल है उसे बाद-ए-बहार जब चली वो ग़ुंचा-ए-दिल खिल गया कूचा-ए-गेसू न हाथ आया मुझे काले कोसों सैकड़ों मंज़िल गया मिट गया काजल का तिल इस्लाह में मुसहफ़-ए-आ'रिज़ का नुक़्ता छिल गया आहनी दम पर जहाँ बिगड़े हुज़ूर लब हिलाए आप ने दिल हिल गया मरहले तय कुंज-ए-उ'ज़्लत में किए बैठे बैठे सैंकड़ों मंज़िल गया बरहमन को बुत मुझे तू ऐ सनम जिस ने जो माँगा ख़ुदा से मिल गया जम्अ' हैं सीने में पैकाँ तीर के सैंकड़ों दिल हैं अगर इक दिल गया हल मिरे मुश्किल-कुशा ने की 'अमीर' ले के कैसी ही कोई मुश्किल गया AMEER MINAI