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देश की आत्मा यानि हमारे गांव...और इस गांव में रहने वाला किसान। देश की आज़ादी के बाद देश की बड़ी आबादी खाद्य समस्याओं से दो-चार हो रही थी।वक्त मुश्किल था...देश के किसान ने अपने पसीने के दम पर खाद्य समस्या की धुंधली तस्वीर को बदला। उम्मीदों को पूरा किया...देश में खुशहाली का सूरज उगा। ये देश के किसान की ही मेहनत थी...जहां देश अन्न के मामले में आयात पर निर्भर था...वहां देश निर्यात करने लगा। खाद्यान के मामले में देश सिर ऊंचा करके खड़ा था.. लेकिन इसके पीछे की तस्वीर उतनी सुहानी भी नहीं थी.. जिसकी असल मयानों में देश के मेहनतकश को दरकार थी। किसान की मेहनत का मोल उसे नहीं मिला..किसान को जो मिला उसको ही अपनी मेहनत मानना पड़ा... दिन बीते…. साल बीते….दशकों बीत गए लेकिन खेती-किसानी घाटे का ही सौदा बना रहा... किसानों को लेकर नीति-निर्धारकों के सामने हमेशा चुनौतियां बनी रहीं.. किसानों को उपज का फायदा मिले...इसके लिए आजादी के बाद इस दिशा में कोशिशें भी हुई। 60 के दशक से कृषि उत्पाद के लिए सभी थोक मंडियों को कृषि उपज मंडी विनियमन अधिनियम के तहत लाने के लिए कोशिश शुरु हुई। APMC ACT यानि एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग ऐक्ट के तहत कृषि विपणन समितियां बनीं। इन समितियों का मकसद बाजार की अनिश्चितताओं से किसानों को बचाना था। एपीएमसी कानून लागू होने के बाद कृषि बाजारों में व्यवस्था लाने और बिचौलियों के हाथों किसानों का शोषण रोकने की दिशा में काम हुए। ज्यादातर राज्यों में पहले अपने-अपने एपीएमसी कानून थे..लेकिन कहते है ना वक्त बीतने के साथ व्यवस्थाओं में भी बदलाव जरूरी है...लेकिन एपीएमसी के साथ ऐसा नहीं हुआ..जो बदलाव इस व्यवस्था में जरूरी था वो नहीं हो पाया. Producer - Pradeep Lochab Production – Ekta Mishra Reporter - Ravindra Sheoran Graphics - Saurav Video Editor – Dalip Kumar