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अहिल्या माता फोर्ट (महेश्वर किला) की कहानी महान रानी अहिल्याबाई होल्कर से जुड़ी है, जिन्होंने 18वीं सदी में इसे अपनी राजधानी बनाया, नर्मदा नदी के किनारे इस किले को भव्य वास्तुकला, मंदिरों (जैसे अहिल्येश्वर मंदिर), घाटों और धर्मशालाओं से सजाया, इसे संस्कृति और न्याय का केंद्र बनाया, और आज यह किला एक विरासत होटल के रूप में अपनी शाही विरासत को सहेजता है. रानी अहिल्याबाई का शासन (1765-1796) राजधानी का स्थानांतरण: अहिल्याबाई ने इंदौर से अपनी राजधानी को महेश्वर स्थानांतरित किया और यहीं से पूरे मालवा साम्राज्य पर शासन किया. 'अहिल्या वाड़ा' का निर्माण: उन्होंने किले के भीतर 'अहिल्या वाड़ा' (अपना निवास, कार्यालय और दरबार हॉल) बनवाया, जो उनकी प्रशासनिक शक्ति का केंद्र था. शहर का विकास: उनके शासनकाल में महेश्वर मंदिरों, घाटों और धर्मशालाओं से भरा एक समृद्ध शहर बन गया, जिसे एक पवित्र और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में जाना जाने लगा. किले की मुख्य विशेषताएँ नर्मदा नदी के किनारे: किला नर्मदा नदी के तट पर स्थित है, जो इसे एक मनोरम स्थान बनाता है. अहिल्येश्वर मंदिर: किले के परिसर में भगवान शिव को समर्पित एक मुख्य मंदिर है, जहाँ आज भी पूजा-अर्चना होती है. शाही अनुभव: किले के कुछ हिस्सों को अब एक हेरिटेज होटल (अहिल्या फोर्ट होटल) में बदल दिया गया है, जहाँ मेहमान शाही कमरों में रुक सकते हैं और रानी की विरासत का अनुभव कर सकते हैं. अहिल्याबाई की विरासत अहिल्याबाई होल्कर अपनी बहादुरी, दूरदर्शिता और प्रजा के प्रति समर्पण के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने महेश्वर को न केवल एक राजनीतिक केंद्र, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित किया, और महेश्वरी साड़ियों के लिए भी यह शहर प्रसिद्ध हुआ. संक्षेप में, अहिल्या माता फोर्ट सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि रानी अहिल्याबाई होल्कर की न्यायप्रिय, समृद्ध और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है, जो आज भी पर्यटकों को आकर्षित करती है.