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प्रभु जी! भले बुरे हम तेरे। उदर भरे पर महा आलसी, सोवत साँझ सवेरे। काम क्रोध अरु ममता तृष्णा, रहत सदा नित घेरे। माया-वश सब जनम गमायो, भटक फिरे बहुतेरे । तुम बिनु कौन सहायक मेरो, बैरी बहुत घनेरे। दास ‘कृपालु' आस तजि सब की, भये श्याम के चेरे ॥ हे श्यामसुन्दर! हम अच्छे या बुरे जैसे भी हैं तुम्हारे हैं| पेट भरने पर अत्यन्त आलस्य से युक्त होकर सायंकाल से प्रात:काल तक सोते रहते हैं। हे नाथ! काम, क्रोध, ममता, एवं लालच आदि ने मेरे ऊपर पूर्ण अधिकार जमा रखा है। आपकी माया के वशीभूत होकर सारा जीवन इधर-उधर भटक कर व्यर्थ ही गँवा दिया है। तुमको छोड़कर दूसरा कोई भी मेरी सहायता करने वाला नहीं है। सभी स्वजन बनकर शत्रु की भाँति स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं, सभी आशाओं को छोड़कर एवं सबसे सम्बन्ध तोड़ कर श्यामसुन्दर के दास हो गये हैं।