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"अपनी प्रकृति" और "मायावाद" दोनों शब्द भारतीय दर्शन में गहराई से उलझे हुए संकल्पनाएं हैं, जिन्हें समझने के लिए इनके मूल अर्थों पर विचार करना जरूरी है। अपनी प्रकृति "अपनी प्रकृति" का अर्थ है किसी व्यक्ति की वह बुनियादी या मूलभूत प्रकृति जो उसके व्यवहार और निर्णयों को निर्देशित करती है। यह प्रकृति संस्कृतियों, व्यक्तिगत अनुभवों, और जैविक प्रवृत्तियों से प्रभावित होती है। इस प्रकृति की पहचान और समझ स्व-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जा सकती है, जिससे व्यक्ति अपने आप को और बेहतर ढंग से समझ पाता है और जीवन में अधिक प्रभावी ढंग से कार्य कर सकता है। मायावाद मायावाद, जिसे अक्सर अद्वैत वेदांत के संदर्भ में समझा जाता है, वह दर्शन है जो सिखाता है कि सांसारिक अनुभव और सामग्र जगत माया के कारण हमें भ्रमित करते हैं। माया उस अविद्या का प्रतिनिधित्व करती है जो सच्चाई को छिपाती है, जिससे हमें लगता है कि जगत विभाजित और बहुतायत से भरा है, जबकि वास्तविकता में, सब कुछ एक अखंड ब्रह्म से निर्मित है। इस प्रकार, मायावाद हमें यह सिखाता है कि जीवन की सच्ची समझ हासिल करने के लिए हमें इस भ्रम को पार करना होगा। जीवन की सच्ची समझ हासिल करने के लिए भ्रम को पार करना भारतीय दर्शन में जीवन की सच्ची समझ को हासिल करने के लिए भ्रम को पार करने की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस प्रक्रिया में माया और अविद्या के भ्रम को समझना और उन्हें पार करना शामिल है। यह प्रक्रिया व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है, जिससे वह जीवन की गहराई और इसके असली अर्थ को समझ सके। भ्रम का स्वरूप भ्रम में व्यक्ति वास्तविकता को उसके वास्तविक स्वरूप में नहीं देख पाता, बल्कि उसे किसी दूसरे रूप में अनुभव करता है। इसमें सांसारिक वस्तुओं, भावनाओं, और संबंधों को उनकी अस्थायी प्रकृति के बावजूद स्थायी मान लेना शामिल है। भ्रम हमें यह विश्वास दिलाता है कि सांसारिक सुख-दुख ही सब कुछ हैं, जबकि वास्तविक सत्य कुछ और ही है। भ्रम को पार करना भ्रम को पार करने के लिए अनेक आध्यात्मिक पथ और प्रक्रियाएं हैं, जैसे कि: ध्यान और योग: ये प्रथाएं मन को शांत करती हैं और आंतरिक ज्ञान को जागृत करती हैं। ध्यान के द्वारा व्यक्ति अपने आप को गहराई से समझ सकता है और अपनी आत्मा की अस्थायी प्रकृति को पहचान सकता है। आत्म-चिंतन: स्वयं के बारे में गहराई से चिंतन करना, अपने विचारों और भावनाओं के मूल कारणों को समझना, और उनकी सत्यता की पड़ताल करना। ज्ञान मार्ग: वेदांत और अन्य दार्शनिक ग्रंथों का अध्ययन करना, जिससे व्यक्ति को ब्रह्मांड और आत्मा के बीच के संबंध की सही समझ हो सके। गुरु का मार्गदर्शन: एक योग्य गुरु का मार्गदर्शन अमूल्य होता है क्योंकि वे अपने ज्ञान और अनुभव से शिष्य को सही दिशा दिखा सकते हैं। अंतिम लक्ष्य भ्रम को पार करने का अंतिम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार है, जहां व्यक्ति अपने और ब्रह्म के बीच की एकता को समझता है। इस स्तर पर पहुंचने के बाद, व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिल जाती है और वह सच्चे सुख और शांति का अनुभव करता है। इस प्रकार, जीवन की सच्ची समझ के लिए भ्रम को पार करना न केवल आत्म-विकास की एक यात्रा है, बल्कि यह व्यक्ति को उसकी आत्मा के सच्चे स्वरूप से परिचित कराने का भी एक साधन है। भारतीय दर्शन में, विशेषकर अद्वैत वेदांत में, माया की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण है। माया को अक्सर उस अविद्या के रूप में देखा जाता है जो सत्य या वास्तविकता को छिपाती है। यह समझना जरूरी है कि माया कैसे कार्य करती है और यह हमें ब्रह्मांड की सच्ची प्रकृति से कैसे दूर रखती है। माया की भूमिका माया एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है 'जो नहीं है' या 'भ्रम'। अद्वैत वेदांत के अनुसार, ब्रह्म ही सत्य है, जो कि एक अनंत, अव्यक्त, और निराकार सत्ता है। माया उस पर्दे की तरह है जो ब्रह्म और जीवात्मा के बीच में होती है, जिससे जीवात्मा खुद को ब्रह्म से अलग और भिन्न समझती है।