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#चैत्य_भक्ति_हिन्दी_पद्यानुवाद #ऐलक_श्री_क्षीरसागर_जी_महाराज चैत्य भक्ति अजेय अघहर अद्भुत अद्भुत पुण्य बन्ध के कारक हैं। करें उजाला पूर्ण जगत में सत्य तथ्य भव तारक हैं। गौतम-पद को सन्मति पद को प्रणाम करके कहता हूँ। चैत्यवन्दना जग का हित हो जग के हित में रहता हूँ॥१॥ अमर मुकुटगत मणि आभा जिन को सहलाती सन्त कहे कनक कमल पर चरण कमल को रखते जो जयवन्त रहे। जिनकी छाया में आकर के उदार उर वाले बनते अदय क्रूर उर धारे आरे मान दम्भ से जो तनते॥ २॥