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नमस्कार दोस्तों, आज हम लेकर आए हैं हिंदी और बंगाली साहित्य की एक अमर कृति— शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया उपन्यास "श्रीकांत"। यह उपन्यास वास्तव में बंगाली रचना "श्रीकांतो" का हिंदी रूपांतरण है। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक यात्रा है—एक ऐसी यात्रा जिसमें जीवन, भावनाएं, रिश्ते और स्वयं की खोज शामिल है। "श्रीकांत" आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया उपन्यास है। इसमें मुख्य पात्र श्रीकांत को एक भटकने वाले, स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। उसके जीवन में कई लोग आते हैं, लेकिन यदि कोई उसके मन और हृदय पर गहरी छाप छोड़ती है, तो वह है उसकी बचपन की साथी — राजलक्ष्मी। यह उपन्यास काफी विस्तृत है, इसलिए मैं इसे कई भागों में आपके सामने प्रस्तुत करूँगी। आशा है कि आप इस साहित्यिक यात्रा में मेरे साथ बने रहेंगे और अपने प्यार और सहयोग से इसे और विशेष बनाएंगे। उपन्यास के प्रकाशन और संरचना के बारे में: "श्रीकांत" कुल चार भागों में लिखा गया था, और इसे पूरा होने में लगभग सोला वर्ष लगे। पहले तीन भाग एक लोकप्रिय पत्रिका में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुए थे। बाद में इन्हें पुस्तक के रूप में अलग-अलग वर्षों में प्रकाशित किया गया। अंतिम भाग बाद में एक अन्य पत्रिका में छपा और 1933 में पुस्तक के रूप में उपलब्ध हुआ। धीरे-धीरे यह रचना बंगाली साहित्य की सबसे प्रशंसित और लोकप्रिय कृतियों में शामिल हो गई। लेखक परिचय: शरतचंद्र चट्टोपाध्याय (जन्म: 15 सितंबर 1876 — निधन: 16 जनवरी 1938) भारत के सबसे चर्चित और प्रिय साहित्यकारों में से एक माने जाते हैं। उनकी कहानियों में सामान्य लोगों का जीवन, भावनाएँ, संघर्ष और समाज की वास्तविकता देखने को मिलती है। अगर आपको यह कहानी पसंद आए तो वीडियो को LIKE, SHARE और SUBSCRIBE करना न भूलें। और भी साहित्यिक कहानियाँ देखने के लिए जुड़े रहें!