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गांधी ने 1904 में डरबन के निकट फ़ीनिक्स सेटलमेंट में एक आश्रम बनाया था जहाँ से वो "इंडियन ओपिनियन" नाम का एक अख़बार प्रकाशित करते थे. मणिलाल 1920 में इसके संपादक बने और 1954 में अपनी मृत्यु तक इसी पद पर रहे. इन युवाओं को इस बात पर गर्व है कि गांधी भारत के राष्ट्रपिता हैं और दुनिया भर में उन्हें अहिंसा और सत्याग्रह का गुरू माना जाता है. 'इंसान की तरह देखे जाएं गांधी' कबीर कहते हैं, "मेरे विचार में इस बात से मैं काफ़ी प्रभावित हूँ कि किस तरह वो अपने मुद्दों पर शांतिपूर्वक डटे रहते थे. ये आज आपको देखने को नहीं मिलेगा. गांधी ने शांति के साथ अपनी बातें मनवाईं जिसके कारण उस समय कुछ लोग नाराज़ भी रहते होंगे." गांधी की विरासत की अहमियत का उन्हें ख़ूब अंदाज़ा है लेकिन उनके अनुसार ये भारी विरासत कभी-कभी उनके लिए एक बोझ भी बन जाती है. सुनीता कहती हैं, "गांधी जी को एक मनुष्य से बढ़ कर देखा जाता है. उनकी विरासत के स्तर के हिसाब से जीवन बिताने का हम पर काफ़ी दबाव होता है." सुनीता मेनन बताती हैं, "सामाजिक न्याय मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. और ये सोच गांधी परिवार में पिछली पांच पीढ़ी से चली आ रही है." वे कहती हैं कि उनके कई दोस्तों को सालों तक नहीं पता चलता कि वो गांधी परिवार से हैं. मिशा बताती हैं, "मैं जानबूझ कर लोगों को ये नहीं कहती रहती हूँ कि आप जानते हैं कि मैं कौन हूँ". जब हमने पूछा कि जब उनके दोस्तों को पता चलता है कि उनका बैकग्राउंड किया है तो उनके दोस्तों की प्रतिक्रियाएं किया होती हैं? इस सवाल के जवाब में सुनीता कहती हैं, "जब लोगों को हमारे बैकग्राउंड के बारे में पता चलता है तो वो कहते हैं कि हाँ अब समझ में आया कि आप सियासत के प्रति इतने उत्साहित क्यों हैं." लेकिन इससे उनकी दोस्ती पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. वो गांधी की शिक्षा को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करते हैं लेकिन वो इस बात पर ज़ोर देते हैं कि वो एक अलग दौर में अपनी ज़िंदगी जी रहे हैं और उनके अनुसार ये ज़रूरी नहीं है कि गांधी की 20वीं शताब्दी की सभी सीख आज के युग में लागू हो. सुनीता के अनुसार उनके व्यक्तित्व को कई व्यक्तियों ने प्रभावित किया है, गांधी उनमें से एक हैं. ये युवा गांधी के अंधे भक्त नहीं हैं. गांधी की कई कमज़ोरियों से वो वाक़िफ़ हैं लेकिन वो ये भी कहते हैं कि उन्हें उनके दौर की पृष्ठभूमि में देखना चाहिए. गांधी परिवार की इन संतानों को इस बात की भी जानकारी है कि भारत में गांधी के आलोचक भी बहुत हैं. मगर वो इससे दुखी नहीं हैं. कबीर कहते हैं, "काफ़ी लोग ये समझते हैं कि अहिंसा को अपनाने के लिए आपको गांधीवादी होना पड़ेगा. अहिंसा के लिए आप गांधी से प्रेरणा ले सकते हैं लेकिन आप अगर उनके आलोचक हैं और अहिंसा के रास्ते पर चलना चाहते हैं तो आप गांधीवाद के ख़िलाफ़ नहीं है." सुनीता कहती हैं कि गांधी की आलोचना उनके समय के हालत और माहौल के परिपेक्ष्य में करना अधिक उचित होगा. वीडियो: ज़ुबैर अहमद और नेहा शर्मा