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टिहरी गढ़वाल: महासर ताल उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जनपद में स्थित है। यह समुद्र तल से लगभग 2500 से 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस ताल की यात्रा का सबसे अच्छा समय जून से सितंबर के बीच होता है। यह ताल गढ़वाल क्षेत्र के सबसे अलग-थलग तालों में से एक है। महासर ताल के आसपास की मनोरम दृश्यावली इसे लोकप्रिय यात्रा भी बनाती है। झील के आसपास के क्षेत्र में हरी घास के मैदान हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘बुग्याल’ भी कहा जाता है। इन घास के मैदानों को प्रकृति ने विभिन्न वनस्पतियों से ढका है, जिस पर नंगे पैर चलने से ऐसा लगता है जैसे बादलों के साथ बह रहें हो। यह एक खूबसूरत मार्ग है साथ ही इस रूट से अन्य ट्रेक भी निकलते हैं जिनमें सहस्राताल, क्यारी बुग्याल भी शामिल हैं। कैसे पहुंचे महासर ताल देहरादून से 200 किमी की दूरी तय कर बूढाकेदारधाम पहुंचा जा सकता है। जब आप देहरादून से निकलेंगे तो नरेंद्रनगर, चम्बा, टिहरी झील होते हुए घनसाली पहुंचेंगे। जिसके बाद आप वहां से चमियाला होते हुए बूढाकेदारनाथ धाम पहुंचेंगे। जहां आप सुंदर देवदार के जंगल के पास धर्म गंगा और बालगंगा नदी के संगम पर बसा बूढाकेदारधाम के दर्शन कर करीब 7 किमी आगे सड़क मार्ग से घंडियाल सौड़ तक पहुंच जाएंगे। घंडियाल सौड़ से 8 किमी की खडी चढाई को पार कर जंगलों के बीच में ये खूबसूरत ताल स्थित है। इसका कैचमेंट क्षेत्र बुग्याल और जंगल है। महासरताल करीब 80 मीटर लम्बा और 30 मीटर चौडा है। गंगा दशहरा के दिन बूढाकेदार क्षेत्र के कई गांव के लोग यहां देवता की डोली के आगमन पर पहुंचाते हैं। इस ताल की गहराई का आज तक पता नहीं चल पाया है कि यह कितनी गहरी है। महासरताल के साथ ही एक ओर ताल भी है जिसे स्थानीय लोग महारणी ताल कहते है। लोक मान्यता है कि ये दोनों झील नाग नागिन है और इन्हें भाई बहन ताल के नाम से भी पुकारा जाता है। हर साल इस ताल में बूढाकेदार क्षेत्र के थाती कठूड पट्टी के सात गांव महासरनाग देवता की पूजा अर्चना के लिए यहां पहुंचते हैं। पौराणिक मान्यता के मुताबिक हिमालय क्षेत्रों में नाग जाति के रहने के पुष्ट प्रमाण मिलते है। गढ़वाल में नागराजा का मुख्य स्थान सेम मुखेम माना जाता है, इसी संदर्व में नागवंश में महासरनाग का विशिष्ट स्थान है। जो कि बालगंगा क्षेत्र में महत्वपूर्ण देवता की श्रेणी में गिना जाता है। प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर, भिन्न भिन्न प्रजातियों एवं दुर्लभ वृक्षों की ओट में स्थित महासरताल से जुड़ी संछिप्त मगर ऐतिहासिक गाथा के बारे में जानने के लिए करीब तेरह सौ साल पुराने इतिहास को खंगलाना पड़ेगा। तेरह सौ वर्ष पूर्व धुमराणा शाह नाम का एक राजा राज करता था इनका एक ही पुत्र हुआ जिनका नाम था उमराणाशाह, जिसकी कोई संतान न थी। उमराणाशाह ने पुत्र प्राप्ति के लिए शेषनाग की तपस्या की। उमराणाशाह तथा उनकी पत्नी फुलमाला की तपस्या से शेषनाग प्रसन्न हुए और मनुष्य रूप में प्रकट होकर उन्हें कहा कि मैं तुम्हारे घर में नाग रूप में जन्म लूंगा। फलत: शेषनाग ने फुलमाला के गर्भ से दो नागों के रूप में जन्म लिया जो कि कभी मानव रूप में तो कभी नाग रूप में परिवर्तित होते रहते थे। नाग का नाम महासर (म्हार) तथा नागिन का नाम माहेश्वरी (म्हारीण) रखा गया। उमराणाशाह की दो पत्नियां थी। दूसरी पत्नी की कोई संतान न थी। सौतेली मां की कूटनीति का शिकार होने के कारण उन नाग नागिन भाई-बहन को घर से निकाल दिया गया। फलस्वरूप दोनों भाई बहन ने बूढ़ाकेदार क्षेत्र में बालगंगा के तट पर विशन नामक स्थान चुना। विशन गांव में आज भी इनका मन्दिर विध्यमान है। विशन गांव के अतिरिक्त नाग वंशी दोनो भाई बहन ने एक और स्थान चुना जो विशन गांव के काफी ऊपर है जिसे महसरताल कहते है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसे नाग विष्णु स्वरूप जल का देवता माना जाता है और नाग देवता का निवास जल में ही होता है अत: इस स्थान पर दो ताल है जिन्हें ‘म्हार’और ‘म्हारीणी’ का ताल कहा जाता है। कहते है नागवंशी दोनों भाई बहन इन्ही दो तालों में निवास करते है।