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उत्तरकाशी: ग्राम क्यार्क पाला और दयारा बुग्याल के बाद हम सभी साथी इस सफर में आगे बढ़े। हम क्यार्क गांव से झाला के लिए निकले। हम एक कार ही लेकर आगे बढ़े जिसमें सभी साथी बैठ गए और मैं और मेरे साथ संदीप रावत दुपहिया वाहन से आगे बढ़े। क्योंकि मैं इस रूट पर दुपहिया वाहन से जाना चाहता था और यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को नजदीक से देखना व महसूस करना चाहता था। हम आगे बढ़े तो सबसे पहले हम इस मार्ग के पहले यात्रा पड़ाव पर पहुंचे। उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से पचास किमी दूर गंगोत्री हाईवे पर गंगनानी गंगोत्री यात्रा रूट का अहम पड़ाव है। यह पड़ाव तप्तकुंड (गर्म कुंड) के लिए जाना जाता है। मान्यता है कि ऋषि पराशर ने इस स्थान पर तप कर अमरत्व हासिल किया था। इसके चलते यहां ऋषि पराशर की पूजा भी की जाती है उन्ही के तप से इस कुंड का पानी गर्म है। यह तप्तकुंड अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर है। इस पड़ाव पर यात्रियों की काफी चहल पहल रहती थी। हर साल यात्रा सीजन में आबाद रहने वाला यह पड़ाव इस बार भी बीते साल की तरह सूना पड़ा हुआ है। पहले तप्तकुंड में रोजाना हजारों यात्री नजर आते थे, यात्री तप्तकुंड में स्नान के साथ ही दुकानों में खरीदारी करते थे। कोरोना महामारी से पहले यहां चालीस से अधिक दुकानें यात्राकाल के दौरान खुल जाती थी, लेकिन इस बार भी कुछ ही दुकान खुल हुई हैं। यहां यात्रियों के ठहरने के लिए तैयार होटल भी पूरी तरह खाली हैं। यात्रा सीजन में यह पड़ाव हुर्री, भंगेली, तिहार, कुज्जन, सालंग व भुक्की आदि गांवों के लिए रोजगार भी पैदा करता था, लेकिन कोरोनकाल से यात्रियों की मामूली आमद के कारण इन गांवों के लोग भी बेरोजगार बैठे हैं। इस कुंड में हम सभी साथियों ने स्नान किया और यहां के कुछ लोगों से बात भी की और फिर हम अपने सफर में आगे बढ़ चले। इस सड़क यात्रा से हम आगे बढ़ते चले। पूरा मार्ग गंगा नदी के किनारे किनारे आगे बढ़ता चला जा रहा था। चारों तरफ पहाड़ और हरियाली ही हरियाली नजर आ रही थी। हम अब सुखिटॉप पहुंचने वाले थे। सुखिटॉप इस पड़ाव में एक मुख्य स्थान है यहां कुछ ढाबे भी खुले रहते थे पर कोरोना महामारी के बाद से ये बंद पड़े हुए हैं। क्योंकि इस जगह का रोजगार का मुख्य बिंदु गंगोत्री यात्रा ही है। जब से यात्रा बंद है तो यहां भी सभी दुकाने बंद है। इस पड़ाव पर भी काफी यात्री रुकते थे यह काफी ऊंचाई पर स्थित है। यहां लोग रुककर फ़ोटो खिंचवाते और चाय नाश्ता करते थे। सबसे बड़ी बात जब हम सुखिटॉप की करीब आ रहे थे तो यहां सेब के बागान दिखने शुरू हो गए थे। यहां के लोग सेब की खेती करते हैं जो इनका मुख्य व्यवसाय है साथ ही यात्रा सीजन भी इनका रोजगार का माध्यम है। यहां सेब अच्छी मात्रा में होता है। सुखिटॉप से हिमालय के भी दर्शन होते हैं, यहां से नीचे गंगा बहती है जो यहां से बहुत ही खूबसूरत लगती है और ऊपर बर्फ से ढके पहाड़ जो मन मोह लेते हैं। हमको आगे झाला जाना था तो हम सफर में आगे बढ़ने लगे। झाला यहां से ज्यादा दूर नहीं है 15 से 20 मिनट में हम झाला पहुंचने वाले थे। आज हम रात्रि विश्राम झाला में ही करने वाले थे तो हम आराम आराम से आगे बढ़ने लगे। दुपहिया वाहन में यहां की ठंडी हवा हमको महसूस हो रही थी और साथ ही हल्की बारिश इस सफर को ओर आनंदित और रोमांचित करती जा रही थी। झाला गंगोत्री यात्रा मार्ग का मुख्य पड़ाव है तो गंगा नदी के तट पर बसा हुआ एक खूबसूरत गांव और कस्बा है। यहां के लोग भी सेब की खेती करते हैं। कहा जाए तो यहां के लोग सेब की खेती पर ही पूर्ण निर्भर है। यहां काफी सेब के बगीचे हैं जो सभी अभी सेब की प्रारंभिक स्थिति से लकदक हैं। हम यहां होटल दुर्गा माँ पुत्र में रोकने वाले हैं। इस होटल में सभी सुविधाएं मौजूद हैं। यह क्षेत्र काफी ठंडा क्षेत्र है जो भी यात्री यहां जाते हैं तो उनके मुताबिक सभी सुविधा इस होटल में मौजूद हैं। होटल के चारों तरफ का नजारा काफी सुंदर है। एक तरफ गंगा दूसरी तरफ दिखते सेब के बगीचे ओर सामने दिखते पहाड़ आपको अंदर से आनंदित कर देता है। जब हम झाला पहुंचे तो बारिश की बौछार ओर तेज हो गई मौसम और ठंडा हो गया पूरी घाटी कोहरे से ढकनी शुरू हो गई। ऐसा महसूस हो रहा था कि ये हमसे मिलने आ रहे हैं। जिसके बाद हम लोगों ने रात का खाना खाया और देर रात तक खूब बातें की ओर अपने अपने कमरों में सोने के लिए निकल गए। क्योंकि इससे पहले दिन हम सभी लोग दयारा बुग्याल से एक दिन का ट्रैक कर के आये थे तो उस थकान का अहसास अभी भी था तो हमको जल्दी नींद आ गई। सुबह जब नींद खुली तो खिड़की खोली सामने गंगा मैया अपनी अवरिल धारा के साथ बह रही थी और ऊपर पहाड़ों में बदल विचरण कर रहे थे। इस नजारे को देख मैं शून्य हो गया और उस नजारे को देखने में मगन हो गया। सूरज की किरणें अभी एक लकीर की तरह आगे हमारी ओर बढ़ती चली आ रही थी। साथ ही कोहरा कहीं जैसे भागे जा रहा था और हम एक टक देखे जा रहे थे इस दृश्य को। फिर आगे हम सभी लोग तैयार हुए और नाश्ता करने पहुंचे तो हमारे लिए वहां के उत्पादित आलू के परांठे शुद्ध घी के, वहां की प्रसिद्ध हर्षिल की राजमा की दाल और पुदीना धनिया की चटनी बन रही थी। इस नाश्ते के जायका ही अलग था सच कहूं तो अभी भी वह स्वाद में भूल नहीं पा रहा। हम सभी ने नाश्ता किया और आगे बढ़ने का कार्यक्रम बनाया। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, रहन सहन, रीतिरिवाज, अतिथि सत्कार यहां के लोगों की बोली भाषा बहुत की शानदार है जो उत्तरकाशी जनपद की एक पहचान है। हम भी उन सभी के साथ वैसे ही घुल मिल गए ऐसा महसूस हो रहा था कि अपने ही घर में हैं। हम आगे हर्षिल और गंगोत्री जाना चाहते थे तो हम जाने को तैयार हो गए और हमारा साफ फिर शुरू हो गया हर्षिल और गंगोत्री के लिए। आगे की यात्रा के बारे में भी आपको बताएंगे वहां के किस्से सुनाएंगे... क्योंकि सफर अभी जारी है....