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देश में विमर्श की दिशा एकांगी है। कतिपय समालोचक विचारधारा विशेष का कूडा-कचरा प्रेमचंद्र के स्तर का बता सकते हैं, वे किसी के जीवनभर का श्रम तथा संघर्षों को गहन सन्नाटा प्रदान करने में भी सक्षम हैं। दो सौ से अधिक उपन्यास तथा अप्रतिम शोध-साहित्य का लेखक गुरुदत्त नयी पीढी के लिये अनजाना क्यों है? क्या इसलिये कि उनका लेखन श्रेष्ठता अनुमापन के वामपंथी पैमानों के लिये खोटा था? हिंदी साहित्य में लाल ही चलेगा की ठेकेदारी ने गुरुदत्त जैसे साहित्यकार को न ही विमर्श में स्थान दिया न पाठ्यपुस्तकों में। यह अलग बात है कि युनेस्को द्वारा वर्ष 1973 में जारी एक सर्वेक्षण के अनुसार साठ तथा सत्तर के दशकों में गुरुदत्त हिन्दी के सर्वाधिक पढे जाने वाले लेखक रहे हैं। गुरुदत्त का जन्म लाहौर में 8 दिसंबर, 1894 को निम्नमध्यमवर्गीय अरोडी क्षत्रिय परिवार में हुआ था। पिता श्री कर्मचंद आर्यसमाजी, जबकि माता सुहावी देवी की आस्था वैष्णव मान्यताओं के प्रति रही थी। गुरुदत्त की आरम्भिक शिक्षा डीएवी स्कूल के माध्यम से हुई। वर्ष 1907 में क्रांतिकारी अजीतसिंह के नेतृत्व में भारत माता सोसाईटी की स्थापना हुई, गुरुदत्त इसकी बैठकों में हिस्सा लिया करते थे। उस दौर में वे विज्ञान से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण हुए। विज्ञान की शिक्षा तथा धर्म पर विमर्श ने उन्हें तार्किक बनाया। वे गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर के विज्ञान विभाग में डिमांसट्रेटर के पद पर नियुक्त हुए। वर्ष 1917 में उनका विवाह यशोदा देवी से हुआ, वैवाहिक जीवन आदर्श रहा तथा इस दम्पत्ति को पाँच संततियाँ हुईं। स्वदेशी आंदोलन तथा अंग्रेजों के प्रति वितृष्णा की भावना ने उन्हें सरकारी नौकरी छोडने की प्रेरणा दी। इसके कुछ समय पश्चात वे लाहौर के नेशनल स्कूल में मुख्य-प्राध्यापक के रूप में कार्य करने लगे, ब्रिटिश दबाव में अध्यापन उन्हें छोडना पडा। आजीविका की तलाश में वे अमेठी आ गये। अमेठी में उन्होंने राजा के निजी सचिव के रूप में कुछ समय तक कार्य किया परंतु प्रशासन के कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अंतर्गत जाने के पश्चात वे पुन: बेरोजगार हो गये थे। अब उन्होंने आयुर्वेद का अध्ययन किया तथा लखनऊ, लाहौर और दिल्ली में क्रमश: वैद्यिकी का कार्य करते रहे। दिल्ली में आयुर्वैदिक चिकित्सक के रूप में उनका कार्य चल निकला। आर्थिक रूप से स्थिर होने के पश्चात उन्होंने लेखन की दिशा प्रशस्त की। वे कालांतर में जनसंघ से भी जुडे परंतु बाद में केवल स्वतंत्र लेखन में ही अपने आप को डुबो लिया। पैंसठ वर्ष की आयु में हृडयघात से उनका देहावसान दिनांक 8 अप्रैल, 1989 को हुआ। www.rajeevranjanprasad.com #Gurudutt #Novalist #Literature #History #गुरुदत्त #साहित्य #उपन्यासकार