У нас вы можете посмотреть бесплатно कैरेबियन में ऐसा ट्रेन सफ़र नहीं सोचा होगा! [By Train Through the Carribean] | DW Documentary हिन्दी или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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कैरेबियन में बसे सेंट किट्स में आज भी कुछ ऐसी ट्रेनें चल रही हैं, जिनसे गन्ने ढोए जाते थे. ये ट्रेन क़रीब 30 किमी की तटरेखा के साथ-साथ चलती है. लेसर एंटिलीस में सेंट किट्स और नेविस नाम के द्वीपों का जोड़ा है. ये दुनिया के सबसे छोटे देशों में शुमार हैं. ये और चौंकाने वाली बात है कि सेंट किट्स में रेलवे लाइन भी है. छोटी लाइन का ये ट्रैक स्थानीय प्लांटेशन मालिकों ने 1912 और 1926 के बीच बनवाया था, ताकि गन्नों को बासटेयर की फ़ैक्ट्री में लाया जा सके. लेकिन अंत में कैरेबियाई गन्ना यूरोप के मीठे चुकंदर से हार गया. माल ढुलाई बंद हो गई और सेंट किट्स सीनिक रेलवे ने आसानी से उसकी जगह ले ली. अमेरिकी रेलवे मालिक ख़ासतौर से क्रूज़ शिप यात्रियों के साथ व्यापार पर निर्भर थे. उन्होंने ताक़तवर रेल इंजन खरीदे और उस ट्रेन में लगवाए, जिससे कभी मीठे चुकंदर पोलैंड भेजे जाते थे. आज ये इंजन उन डबल-डेकर डिब्बों को खींचते हैं, जिनमें से समुद्र और पहाड़ों के ख़ूबसूरत नज़ारे दिखते हैं. गन्ने के दौर के इंजन और पुराने कारख़ाने अब ख़राब हो गए हैं. यहां नमी बहुत ज़्यादा है, जिसने इन्हें और ख़राब कर दिया है. आज सिर्फ़ 15 नंबर का हंसलेट इंजन ही चलने की हालत में है. लोको पायलट इसे ट्रैक और चार लंबे पुलों की देखभाल के लिए इस्तेमाल करते हैं. उन्हें वो दौर याद करके बड़ी ख़ुशी होती है, जब ये बेड़े का सबसे शक्तिशाली इंजन था और इसके कई डिब्बे गन्नों से लदे होते थे. हम गन्ना रेलवे की पुरानी पटरियों पर फिर से चलते हैं और सेंट किट्स सीनिक रेलवे के कर्मचारियों के लिए रोमांचक अनुभव करते हैं. #dwdocumentaryहिन्दी #dwहिन्दी #stkitts #sugarcanetraiin #travel #caribbeancruise ---------------------------------------------------------------------------------------- अगर आपको वीडियो पसंद आया और आगे भी ऐसी दिलचस्प वीडियो देखना चाहते हैं तो हमें सब्सक्राइब करना मत भूलिए. विज्ञान, तकनीक, सेहत और पर्यावरण से जुड़े वीडियो देखने के लिए हमारे चैनल DW हिन्दी को फॉलो करे: @dwhindi और डॉयचे वेले की सोशल मीडिया नेटिकेट नीतियों को यहां पढ़ें: https://p.dw.com/p/MF1G