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कहते हैं जहाँ चाह वहां राह...श्री ज्योति मंडल ने भी अपनी चाहत को कठिन मेहनत और कृषि विज्ञान केंद्र, मधेपुरा के सहयोग से परिणाम में बदला है... आज ज्योति इस इलाक़े में बड़े मछली पलक के तौर पर जाने जाते हैं... मछली पालन ने इन्हें वह सब कुछ दिया जो एक संपन्न व्यक्ति को होना चाहिए... लेकिन श्री मंडल को वह दिन आज भी याद है जब वे एक साधारण खेतिहर किसान थे... और अन्य किसानों की तरह प्रकृति के आँख-मिचौलियों से जूझते हुए धान-गेहूं की खेती पर निर्भर रहते थे... वह वर्ष 1990 का था जब खेती से वर्ष भर की आमदनी मात्र 25000 रूपये सालाना थी, जिसपर पुरे परिवार का भरण-पोषण की जिम्मेदारी थी... ज्योति ने भाग्यभरोसे वाली पारंपरिक खेती से हटाकर कुछ अलग करने की सोची... उन्हें कहीं से मछली पालन की प्रेरणा मिली और अपने एक एकड़ जमीन में दो तालाब खोदवा डाला. और इस प्रकार ज्योति ने अपने जीवन को मोड़ देते हुए मछली पालन की शुरूआत कर दिया... पहले वर्ष ही ज्योति को मछली पालन से 40 हजार रूपये की आमदनी हुयी... हालाँकि मछली पालन मे अपनी खेती से बेहतर परिणाम मिले लेकिन ज्योति का लक्ष्य मात्र यह आंशिक राहत भर नहीं था... तकनिकी सहायता के लिए वे जा पहुंचे कृषि विज्ञान केंद्र.... कृषि विज्ञानं केंद्र के संपर्क में आने के बाद केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा उन्हें प्रशिक्षण दिया गया सइसके अलावा मछली पालन में नयी तकनीकों से अवगत कराया गया... समय-समय पर उनके तलब पर केंद्र के वैज्ञानिकों का आना-जाना होता रहा... वैज्ञानिकों ने उनके तालाब से मिटटी और पानी का नमूना अपने केंद्र पर लाकर परिक्षण किया और उनके तलब की स्थिति के अनुसार मछली पालन को और अधिक लाभकारी बनाने के तकनीकी उपाय बताए.. मछली के रख-रखाव और भोजन प्रबंधन को बारीकी से समझाया...देखते ही देखते श्री मंडल के तलब में न सिर्फ मछलियों की संख्या बढ़ने लगी बल्कि मछलियों का भार भी पहले से दुगना बढ़ गया...