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शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कैसे शुरू हुआ| क्या आप जानते है क्या होता है कृष्ण शुक्ल पक्ष! скачать в хорошем качестве

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शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कैसे शुरू हुआ| क्या आप जानते है क्या होता है कृष्ण शुक्ल पक्ष!

शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कैसे शुरू हुआ| क्या आप जानते है क्या होता है कृष्ण शुक्ल पक्ष! #कृष्ण पक्ष #शुक्लपक्ष #चंद्र ग्रहण #नक्षत्र #राजा_की_कहानी अश्विनी (Ashwini) भरणी (Bharani) कृत्तिका (Krittika) रोहिणी (Rohini) मृगशिरा (Mrigashira) आर्द्रा (Ardra) पुनर्वसु (Purvashada) पुष्य (Pushya) आश्लेषा (Ashlesha) मघा (Magha) पूर्वा फाल्गुनी (Purva Phalguni) उत्तरा फाल्गुनी (Uttara Phalguni) हस्त (Hasta) चित्रा (Chitra) स्वाति (Swati) विशाखा (Vishakha) अनुराधा (Anuradha) ज्येष्ठा (Jyeshtha) मूल (Mula) पूर्वाषाढ़ा (Purva Ashadha) उत्तराषाढ़ा (Uttara Ashadha) श्रवण (Shravana) धनिष्ठा (Dhanishta) शतभिषा (Shatabhisha) पूर्वाभाद्रपद (Purva Bhadrapada) उत्तराभाद्रपद (Uttara Bhadrapada) रेवती (Revati) कैसे शुरू हुए कृष्ण और शुक्ल पक्ष पंचांग के अनुसार हर माह में तीस दिन होते हैं और इन महीनों की गणना सूरज और चंद्रमा की गति के अनुसार की जाती है। चन्द्रमा की कलाओं के ज्यादा या कम होने के अनुसार ही महीने को दो पक्षों में बांटा गया है जिन्हे कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष कहा जाता है। पूर्णिमा से अमावस्या तक बीच के दिनों को कृष्णपक्ष कहा जाता है, वहीं इसके उलट अमावस्या से पूर्णिमा तक का समय शुक्लपक्ष कहलाता है। दोनों पक्ष कैसे शुरू हुए उनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं भी हैं। कृष्ण और शुक्ल पक्ष से जुड़ी कथा इस तरह हुई कृष्णपक्ष की शुरुआत पौराणिक ग्रंथों के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी सत्ताईस बेटियों का विवाह चंद्रमा से कर दिया। ये सत्ताईस बेटियां सत्ताईस स्त्री नक्षत्र हैं और अभिजीत नामक एक पुरुष नक्षत्र भी है। लेकिन चंद्र केवल रोहिणी से प्यार करते थे। ऐसे में बाकी स्त्री नक्षत्रों ने अपने पिता से शिकायत की कि चंद्र उनके साथ पति का कर्तव्य नहीं निभाते। दक्ष प्रजापति के डांटने के बाद भी चंद्र ने रोहिणी का साथ नहीं छोड़ा और बाकी पत्नियों की अवहेलना करते गए। तब चंद्र पर क्रोधित होकर दक्ष प्रजापति ने उन्हें क्षय रोग का शाप दिया। क्षय रोग के कारण सोम या चंद्रमा का तेज धीरे-धीरे कम होता गया। कृष्ण पक्ष की शुरुआत यहीं से हुई। ऐसे शुरू हुआ शुक्लपक्ष कहते हैं कि क्षय रोग से चंद्र का अंत निकट आता गया। वे ब्रह्मा के पास गए और उनसे मदद मांगी। तब ब्रह्मा और इंद्र ने चंद्र से शिवजी की आराधना करने को कहा। शिवजी की आराधना करने के बाद शिवजी ने चंद्र को अपनी जटा में जगह दी। ऐसा करने से चंद्र का तेज फिर से लौटने लगा। इससे शुक्ल पक्ष का निर्माण हुआ। चूंकि दक्ष ‘प्रजापति’ थे। चंद्र उनके शाप से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो सकते थे। शाप में केवल बदलाव आ सकता था। इसलिए चंद्र को बारी-बारी से कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में जाना पड़ता है। दक्ष ने कृष्ण पक्ष का निर्माण किया और शिवजी ने शुक्ल पक्ष का। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के बीच अंतर जब हम संस्कृत शब्दों शुक्ल और कृष्ण का अर्थ समझते हैं, तो हम स्पष्ट रूप से दो पक्षों के बीच अंतर कर सकते हैं। शुक्ल उज्ज्वल व्यक्त करते हैं, जबकि कृष्ण का अर्थ है अंधेरा। जैसा कि हमने पहले ही देखा, शुक्ल पक्ष अमावस्या से पूर्णिमा तक है, और कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष के विपरीत, पूर्णिमा से अमावस्या तक शुरू होता है। कौन सा पक्ष शुभ है धार्मिक मान्यता के अनुसार, लोग शुक्ल पक्ष को आशाजनक और कृष्ण पक्ष को प्रतिकूल मानते हैं। यह विचार चंद्रमा की जीवन शक्ति और रोशनी के संबंध में है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष की दशमी से लेकर कृष्ण पक्ष की पंचम तिथि तक की अवधि ज्योतिषीय दृष्टि से शुभ मानी जाती है। इस समय के दौरान चंद्रमा की ऊर्जा अधिकतम या लगभग अधिकतम होती है - जिसे ज्योतिष में शुभ और अशुभ समय तय करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। साभार~ पं राम त्रिपाठी!

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