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#AkashvaniAIR #RadioNatak Radio Play - Drishtidaan by Rabindra Nath Tagore दृष्टिदान (16.4.2021) यह नाटक नोबल पुरस्कार से सम्मानित विश्व-प्रसिद्द लेखक गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर की बांग्ला कहानी का हिन्दी नाट्य-रूपांतर है | यह कहानी उनके इसी नाम से प्रकाशित कथा-संग्रह की एक कहानी है | इस संग्रह में मेघ और धूप,रात जैसी कहानियां भी हैं | गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर बंगला साहित्य के ही नहीं अपितु विश्व साहित्य के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उनके कथा का शिल्प प्राणवान और अविस्मरणीय होता है । सब जानते हैं कि भारतीय समाज में पति-पत्नी का संबंध जितना अप्रतिम और अनूठा होता है उतना ही स्वामी-दासी का भाव भी मिलता है। इसकी सबसे महत्वपूर्ण वजह वो धार्मिक पुस्तकें हैं जिसके आख्यानों में देवी-देवताओं के विष्णु-लक्ष्मी, कृष्ण-राधा मौजूद हैं। यदि स्त्री प्राणपण से अपनी गृहस्थी की रक्षा करती है और पुरुष अपने पुरुषार्थ से संसाधन जुटाता है। एक तरह से यही भारतीय गृहस्थ-समाज की शास्त्रीय तस्वीर है। लेकिन इस संरचना में कुछ ऐसी बातें पनप जाती हैं जो आज के समाज और व्यवस्था के अनुरूप नहीं है | यह कहानी जब लिखी गयी थी तब शास्त्रीय तस्वीर बहुत हद तक वास्तविकता थी – आज नहीं है | इस नाटक को उस काल के हिसाब से ही सुना और विवेचित किया जाना उचित है | पुरानी शास्त्रीय परम्परा में चूँकि पुरुष स्वामी है अत: अपने स्वामित्व की रक्षा के लिये कई बार बेवजह स्त्री पर कठोर शासन करता है। उसकी कठोरता में संबंधों की अनुभूति या एहसास दब जाते हैं या मर जाते हैं। उसके शासन का भाव इतना प्रबल हो जाता है कि स्त्री की कोमलता का स्पर्श उस तक पहुँच ही नहीं पाता और फिर दोनों का जो अप्रतिम बंधन होता है उसकी गांठ ढीली पड़ने लगती है और जब इस सत्य का एहसास होता है तब दोनों बहुत दूर चले गये होते हैं। दृष्टिदान नाटक में विश्व कवि गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने इसी स्वभाव की पड़ताल की है। Title: DRISHTIDAAN Writer: Rabindra Nath Tagore Hindi Adaptation: B.S.Bhatnagar Director: Sudarshan Kumar Artists: Ashwini Kumar, Surendra Sethi, Kamla Kumari Chopra, Harsh Bala, Monika Sharma, H.C.Pandey. (Refurbished by Sh. Vinod Kumar, Programme Executive, CDU,DG; AIR. This play was first broadcast on 9.5.1989) A presentation of Central Drama Unit, DG; AIR.