У нас вы можете посмотреть бесплатно फिस्चुला (भगंदर) से संबंधित कुछ जिज्ञासाएं или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
फिस्चुला (भगंदर) से संबंधित कुछ जिज्ञासाएं क्या इस बीमारी को बिना आपरेशन के ठीक नहीं किया जा सकता ? एक प्रतिशत मरीजों में समय के साथसाथ जख्म भर भी जाता है, मगर निन्यानबे प्रतिशत मरीज इतने खुशकिस्मत नहीं होते. हां, आयुर्वेद में क्षार सूत्र' पद्धति से भगंदर का उपचार काफी हद तक सफल सिद्ध हुआ है. इस विधि में दवाओं के घोल में डुबोया हुआ धागा बाहरी छिद्र से प्रवेश करवा कर भीतरी छिद्र से निकाल लिया जाता है और दोनों छोरों पर गांठ बांध दी जाती है. इस गांठ को नियमित रूप से कसा जाता है. धागे पर लगी दवा भगंदर को काटती भी है और जख्म को सुखाती भी है. इस तरह तीन से चार सप्ताह में उपचार पूर्ण हो जाता है. यह दर्द रहित चिकित्सा विधि है, जिस में मरीज को अस्पताल में भर्ती रहने की जरूरत नहीं होती है और खर्च भी बहुत कम आता है. मगर इस विधि की अपनी सीमाएं हैं. केवल कुशल चिकित्सक के द्वारा ही इसे करवाना चाहिए. यह गहराई में मौजूद भगंदर या अनेक छिद्रों वाले भगंदर की चिकित्सा नहीं कर सकता. फिस्चुला (भगंदर) से संबंधित कुछ जिज्ञासाएं क्या किसी अन्य उपचार जैसे दवाइयों या मरहम से भी इसे ठीक किया जा सकता है? ● कुछ लोग इस सुरंगनुमा घाव में कई ऐसे घोलों का प्रवेश करवाते हैं जिन से घाव के भीतर दाह और शोथ उत्पन्न होता है. जब वह थम जाता है तो वहां के स्नायु आपस में इस तरह गुंथ जाते हैं कि घाव बंद हो जाता है. मगर इस तरह की विधि बहुत खतरनाक सिद्ध होती है. एक तो इस उपचार में मरीज को मरणांतक पीड़ा होती है, दूसरे, यह सारे खून को दूषित कर मरीज की जान ले सकती हैं, तीसरे, कभी कभी उस स्थान की उग्रता इतनी बढ़ सकती है कि जहांजहां दवा का फैलाव हुआ है वहां का सारा मांस जलकर एक गट्ठे का रूप ले सकता है. यह चिकित्सा विधि उन नीमहकीमों द्वारा अपनाई जाती है जो भगंदर को बिना आपरेशन ठीक करने का दावा करते हैं. मगर यह बेहद खतरनाक विधि है. फिस्चुला (भगंदर) से संबंधित कुछ जिज्ञासाएं क्या भगंदर का आपरेशन बहुत जोखिम भरा है? ● नहीं, यह किसी भी अन्य आपरेशन की भांति निश्चेत (बेहोश ) अवस्था में किया जाता है ताकि मरीज को दर्द न हो. क्या आपरेशन के पश्चात जख्म में बहुत पीड़ा होती है? ● पहले चौबीस घंटों में, जब जख्म हरा होता है, हलका दर्द रहना लाजमी है, मगर धीरेधीरे दर्द कम होने लगता है. वैसे भी दवाएं, गरम पानी का सेंक, जो मरीज को आपरेशन के पश्चात दिए जाते हैं, राहत प्रदान करते हैं. → जख्मों को भरने में कितना वक्त लगता है ? ● यह भगंदर की गहराई और जीर्णता पर निर्भर करता है, मगर आम तौर पर सभी जख्म तीन से चार सप्ताह में भर जाते हैं. क्या इस दौरान मरीज को बिस्तर पर ही पड़े रहना होता है ? • बिलकुल नहीं, शल्यक्रिया के एक सप्ताह बाद मरीज अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों में हिस्सा लेने के काबिल हो जाता है. जख्म पर ड्रेसिंग कर वह बाहर के काम भी कर सकता है. बस, उसे इतनी सावधानी बरतनी होती है कि लम्बे समय तक एक स्थान पर न बैठा जाए. फिस्चुला (भगंदर) से संबंधित कुछ जिज्ञासाएं → क्या फिस्चुला के आपरेशन के बाद मरीज मल त्याग को इच्छानुसार रोकने की क्षमता खो देता है ? • यह एक मिथ्या धारणा है जो आम व्यक्ति के मन में बैठी हुई है. दरअसल उन मरीजों में, जिन का आपरेशन किसी नीमहकीम या अनुभवहीन सर्जन द्वारा किया गया है, ऐसी समस्या उत्पन्न हो सकती है, अन्यथा ऐसी कोई जटिलता पेश नहीं आती. फिस्चुला (भगंदर) से संबंधित कुछ जिज्ञासाएं क्या आपरेशन के पश्चात मल मार्ग संकीर्ण हो जाता है? • यदि फिस्चुला बहुत पुराना हो या उस में अनेक बाहरी छिद्र हों या उस का मूल कारण क्षय रोग या कैंसर हो, तो ऐसी दशा में वहां से बहुत अधिक मात्रा में दूषित मांस को निकाल देना पड़ता है जिसकी वजह से जब जख्म भरता है तो वह स्थान छोटा हो जाता है. मगर इस परेशानी की रोकथाम की जा सकती है. क्या एक बार आपरेशन करवा लेने के बाद भी भगंदर पुनः हो सकता है? ● देखिए, करीब दस प्रतिशत मरीजों में यह बीमारी आपरेशन के बाद भी हो सकती है. इसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे-1. फिस्चुला का एक और घाव मौजूद हो जिस का पता न चला हो, 2. शल्यक्रिया त्रुटिपूर्ण हो,3. क्षयरोग या कैंसर जैसी बीमारियों की वजह से उत्पन्न भगंदर. 4. बाहरी जख्म का भीतरी भाग पहले ही भर जाना. भगंदर एक कष्टदायक, दीर्घकालीन बीमारी जरूर है, किंतु समुचित उपचार द्वारा इस की रोकथाम न की जा सके, ऐसा नहीं है. अतः इस की अवहेलना करना या संकोच करना मरीज के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. अब तो लेजर और रेडियो सर्जरी उपकरणों से इसका उपचार और भी सरल हो चुका है.