У нас вы можете посмотреть бесплатно दक्षिण पश्चिम:— राजस्थान का पठारी मरुस्थलीय क्षेत्र। [Aravalli Hills]—Hind Information***Video или скачать в максимальном доступном качестве, которое было загружено на ютуб. Для скачивания выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
दक्षिण पश्चिम:— राजस्थान का पठारी मरुस्थलीय क्षेत्र। [Aravalli Hills]—Hind Information***Video देश का सबसे अधिक दुर्लभ पक्षी गोडावण है जो राजस्थान के बीकानेर, बाड़मेर और जैसलमेर जिले में अधिक संख्या में मिलता है राजस्थान में 5 राष्ट्रीय उद्यान, 27 वन्य जीव अभ्यारण्य एवं 33 आखेट निषेद क्षेत्र घोषित किए जा चुके हैं। भारतीय वन्यजीव कानून १९७२ देश के सभी राज्यों में लागू है। राज्य में वन्य प्राणियों के प्राकृतिक आवास को जानने के लिए भू-संरचना के अनुसार प्रदेश को चार मुख्य भागों में बांटा जा सकता है- १ मरुस्थलीय क्षेत्र, २ पर्वतीय क्षेत्र, ३ पूर्वी तथा मैदानी क्षेत्र और 4 दक्षिणी क्षेत्र। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान जो कि भरतपुर में स्थित है यह एक राष्ट्रीय उद्यान है अर्थात एक अंतर्राष्ट्रीय पार्क जिसे पक्षियों का स्वर्ग भी कहा जाता है। धार्मिक स्थलों के साथ जुड़े ओरण सदैव ही पशुओं के शरणस्थल रहे हैं केंद्र सरकार द्वारा स्थापित पशु-पक्षियों का स्थल राष्ट्रीय उद्यान व राज्य सरकार द्वारा स्थापित स्थल अभ्यारण्य यह राज्य का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है जो सवाई माधोपुर जिले में 39,200 हैक्टेयर क्षेत्र में सन 1955 में अभ्यारण्य के रुप में स्थापित किया गया था। वर्तमान में इसका नाम "राजीव गांधी राष्ट्रीय उधान" कर दिया । सन 1949 में विश्व वन्य जीव कोष द्वारा चलाए गए प्रोजेक्ट टाइगर' में से सम्मिलित किया गया है। राज्य में सबसे पहले बाघ बचाओ परियोजना में इस राष्ट्रीय उद्यान में प्रारंभ की गई थी। इस अभयारण्य को १ नवंबर १९८० को राज्य का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया। इस उद्यान में प्रमुख रूप से बाघ इसके अलावा सांभर, चीतल, नीलगाय रीछ, जरख एवं चिंकारा पाए जाते हैं यह भारत का सबसे छोटा बाघ अभयारण्य है लेकिन इसे भारतीय बाघों का घर कहा जाता है। राजस्थान में सर्वाधिक प्रकार के वन्य जीव अभयारण्य में पाए जाते हैं। इस अभयारण्य में त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर तथा जोगी महल स्थित है जोगी महल से पर्यटक सामान्यतया बाघों को देखते हैं। इस अभयारण्य में राज बाग, गिलाई सागर पदमला, तालाब, मलिक तालाब, लाहपुर एवं मानसरोवर इत्यादि सरोवर है। अभयारण्य के वनों में मिश्रित वनस्पति के साथ सर्वाधिक धोंक मुख्य रूप से पाई जाती है। रणथंभौर बाघ परियोजना के अंतर्गत विश्व बैंक एवं वैश्विक पर्यावरण सुविधा की सहायता से १९९६ - ९७ से इंडिया ईको डेवलपमेंट प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। जवाई नदी का उद्गम स्रोत राजस्थान के उदयपुर जिले की अरावली पर्वत श्रृंखला में स्थित है। जवाई नदी का कुल जलग्रहण क्षेत्र 2,976 वर्ग किलोमीटर है और यह कुल लंबाई 96 किलोमीटर तक बहती है। जवाई नदी के जलग्रहण क्षेत्र में शामिल प्रमुख जिले हैं- जालोर, पाली और उदयपुर जिले। राजस्थान के बेरा में, स्थानीय लोग दशकों से तेंदुओं के साथ रह रहे हैं, शायद सदियों से भी। बेरा मध्य राजस्थान के पाली जिले का एक छोटा सा शहर है, जो जवाई नदी द्वारा पोषित चट्टानी अरावली पहाड़ियों में एक क्षेत्र है, और झाड़ीदार जंगलों की विशेषता है। लगभग 10,000 (2011 की जनगणना) के बेरा का मानव समुदाय समतल भूमि में निवास करता है, और तेंदुओं की एक संपन्न आबादी इस क्षेत्र की चट्टानी गुफाओं में निवास करती है। मीडिया रिपोर्ट अक्सर इसे "तेंदुए देश" के रूप में संदर्भित करती है। बेरा की तरह, वास्तव में, हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण समुदायों से लेकर मुंबई जैसी मेगा-शहरी सेटिंग्स तक, एक-दूसरे के करीब रहने वाले मनुष्यों और तेंदुओं के कई उदाहरण हैं, जहां बिल्लियों को रात में इमारत के परिसर में घूमते हुए फोटो खिंचवाते हैं। हालाँकि, ये झलकियाँ कम और बहुत दूर हैं और अक्सर कुशल कैमरा-ट्रैपिंग और अत्यधिक धैर्यवान वन्यजीव फोटोग्राफरों का परिणाम हैं। बेरा एक विसंगति है: यह उन एकमात्र स्थानों में से एक है (शायद ग्रह पर) जहां तेंदुए शर्मीले नहीं दिखते। आठ वर्षों से मानव-तेंदुए की बातचीत का अध्ययन कर रहे अथरेया कहते हैं, "यह केवल जवाई और श्रीलंका के याला नेशनल पार्क में है कि तेंदुए लोगों को उन्हें देखने की इजाजत दे रहे हैं।" इसका मतलब यह नहीं है कि यहां के तेंदुए वश में हैं, या मिलनसार भी हैं। लेकिन वे अक्सर चट्टानी बहिर्वाहों पर बैठे हुए या गाँव के मंदिर के किनारे देखे जाते हैं, जो कि एक ऐसी प्रजाति के लिए उल्लेखनीय है जो मनुष्यों के संबंध में बड़े पैमाने पर चुपके मोड में है। सवाल यह है कि क्यों? ☞ इस प्रदेश का विस्तार राज्य के कोटा संभाग में है। ☞ इस क्षेत्र में हाड़ा चौहानों का शासन था, अतः यहां बोली जाने वाली बोली हाडौती बोली है। इस कारण यह प्रदेश हाडौती का पठार कहलाया। ☞ राज्य के इस भौतिक विभाग के अन्तर्गत राज्य की कुल जनसख्या का 11% भाग निवास करता है। ☞ यह प्रदेश राज्य के कुल क्षेत्रफल का 6.89% (लगभग 7%) है। नोट :- यह प्रदेश अरावली पर्वतमाला तथा विन्ध्याचल पर्वत को जोडता है, इस कारण इस प्रदेश को सक्रांति प्रदेश कहा जाता है। ☞ हाडौती के पठार का विस्तार राज्य में चम्बल नदी के सहारे पूर्वी भाग में है। ☞ यह प्रदेश राज्य के भौतिक विभागों में सर्वाधिक वर्षा वाला भौतिक विभाग है। हाडौती का पठार ☆ अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हम हाडौती के पठार को दो भागों में विभाजित करते है- 1. विन्ध्यन कगार भूमि 2. दक्कन लावा का पठार नोट :- राज्य के दक्षिणी पूर्वी हाडौती का पठार मालवा के पठार के उत्तर पश्चिम का भाग है जबकि मालवा का पठार दक्षिण भारतीय प्रायद्धीपीय पठार का भाग है। नोट :- मध्यप्रदेश तथा राजस्थान में संयुक्त रूप से विस्तृत पठार को मालवा का पठार कहते है। नोट :- इस क्षेत्र के अन्तर्गत धौलपुर जिले में लाल-बलुआ पत्थर, करौली जिले में लाल-गुलाबी पत्थर, भीलवाड़ा जिले के बिजौलिया क्षेत्र में पट्टीया या कत्तलें, चित्तौड़गढ़ जिले के मानपुरा में पट्टीयां, प्रतापगढ़ के केसरपुरा में हीरें के लिये प्रसिद्ध है।