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#नागपुरी कबि कंचन कर एक ठो गीत उमड़ि गगन घन घमंड पाठालोचन - नीचे कोष्ठक में सुधार खातिर प्रस्तावित सबदमन के देल जाय हे। उमड़ि गगन घन घमंड, चमकत चपला प्रचंड, दुन्दुभि चहुँ ओरे, अग गग गग घहरत झरी झझकत जलधरे गोइ, आजु अवसर अस गोबिन्द नहीं घरे । धु०। लह लह लह पवन रोस (जोर), हह हह तरू धरनी लोर, गह गह सोर करे। हहरत मन थहरत तन खरभरे गोइ. आजु अवसर अस गोबिन्द नहीं घरे ।01 । झन नन झिंगुर झकोर (झिकोर) ठन नन फेनी ठनके जोर, मंडुक परखरे। चात्रिक पुनि मोर धुनी झुंडन मही परे गोइ, आजु अवसर अस गोबिन्द नहीं घरे ।02। रजनी विकट त्रिमीर (तिमिर) घोर, दादुर कड़का अंदोर, नीन्द न दृग परे, खन खन हिया कड़कत जिया डरपत एकसरे गोइ, आजु अवसर अस गोबिन्द नहीं घरे ।03। बाजल (लागल) मनमथ तीर, जरत उर उठत पीर, लोचन नीर ढरे, कंचन छबि बिसरत नहीं बिरहानल बरे गोइ, आजु अवसर अस गोबिन्द नहीं घरे ।04। कुछ सबदमनक अरथ :- चपला- आकास बिजली । प्रचंड रोक छेक से परे । दुन्दुभि नगाड़ा इया नगेरा। जल घर-बदरी, बादल । गोबिन्द श्रीकृष्ण । रोस-जोर ।तरू-गाँछ। सोर-शोर, गोहाइर। हहरत- लालसा, अतृप्त इच्छा। थहरत थरथरायक। खरमरे खोभरायक। मंडुक-मेंढक, बैंग। परखरे-प्रखर बगरा। चात्रिक-चातक। पुनि-फिर। मोर-मंजुर । मही-घरती। त्रिमीर- तिमिर, अंधकार। दादुर-दर्दुर, मेढ़क, बेंग। दृग-ऑइख, नयन। खन खन छन-छन। डरपत- डेरायक।, एकसरे एक साथे, एक दफे। मन्मथ कामदेव । कंचन-सोना, कवि कर नाम। बिरहा नल- बिरह रूपी आइग। उन्नीसवी सदी कर पछिला आउर बीसवीं सदी कर सुरूआत में सक्रिय नागपुरी कर बहुत कुसल कबि कंचन कर ई पावस राग कर गीत हेके । पावस के बहरसात कर दिन में गावल जायला ।ई मर्दानी राग में आवेला ।ईकर में पावस रितु कर घनघोर बरखा कर बरनन उद्दीपन रूप में होय हे जेकर प्रभाव बिरहिनी नायिका राधा में बताल जात है।ई गीत हरेक रसिक पाठक इया गायक के आपन तइर बुझाई का ले कि ईकर में साधारणीकरण बहुत सुन्दर रीति से आय है। ई गीत में पता लागत हे कि नायिका खातिर नायक गोबिन्द आलंबन रूप में आय हैं जब कि पावस रितु आउर ऊकर अंग-प्रत्यंग उद्दीपन रूप में प्रस्तुत होय हे। कबि बरनन करत है कि नभ में घमंड से भरल बदरी चाइरो दन से चढ़ल है। बादल दल अनगिनती नगेरा बाजेक तइर गरजत हे। प्रचंड बिजली चमके लाइग हे। बदरी अग-गग जइसन गरज आवाज साथे घहइर-घहइर उठत हे, जेकर प्रभाव से बरखा झरी 'झझ झझ' करते बइरसे लागलक । कबि कंचन कहत हैं कि प्रेम ले आइज कर इसन सुंदर मोका में जब कि पूरा प्रकृति प्रेम कर आह्वान करत हे, नायिका कर नायक गोबिन्द घर में नखे। माने कि जे उद्दीपनमन प्रेम ले साधक रहें सेहे बाधक भे गेलै आउर नायिका के बिरह के सहेक परत हे। उद्दीपन सूची कर आगे बिस्तार करते कबि कहत है कि पवन एतना जोर बहत हे कि ऊकर से लह-लह ध्वनि सुनातहे। ई ठिन झरी कर झझकेक आउर हावा कर लह-लह बहेक में बहुत सुन्दर ध्वनि बिम्ब कर योजना दीसत हे। गाँछ कर डाइरमन हावा-पानी कर बेग से धरती दन लोइर जात हैं। बरंडो कर दृश्य देखायक में कवि गह-गह जइसन ध्वनि बिम्ब से लेइके चित्र बिम्ब तक सफलतापूर्वक पोहचाय देत हैं। झींगुर कर झनकार आउर ठनका कर ठनकेक में हों ध्वनि बिम्ब सिद्ध होवतहे। चातक आउर मेंजुर पंछी कर आवाज सुनात हे जे धरती में झुंड बनाय के भरल हैं।ई ठिन घेयान देवेक है कि कवि चर्चा कर मोताबिक चातक बिरह कर सूचक हेके । चातक आउर चातकी राइत भइर सरोवर इया नदी कर दूनो तट में फरका रहना आउर मिले नी पाएँ । दोसर बात कि पावसे रितु में ई दूनो कर गतिबिधि जादे कहर के देखल जायला। विकट अंधारी राइत में नायिका सुतेक निन्दायक कोसिस करत हे। मुदा धरती में बेंग कर भयंकर टर-टर्र आउर बदरी में बिजली कर कड़का आउर ठनका ऊके सुतेक नी देत हे। माने ई मेलक कि जोन उद्दीपनमन मिलन में सुखकारी होतें सेहे बिरह में दुखकारी भे गेलै । नायिका कर हृदय छने छन तड़पत हे आउर इसन राइत में ऊकर जीव में डर आउर आशंका भरल है। नायिका के मन के मथेक वाला देवता कामदेव कर तीर लाइंग जाय हे। कामदेव कर तरकस में पाँच किसिम के फूल कर पाँच ठो बान रहैना, जे के ऊ आपन कतारी कर धनुस में चढ़ाय के प्रेमी प्रेमिका कर हृदय में मारैना। एहे बदे कामदेव के पुष्पधन्वा कहल जायला । नायिका के ओहे तीर लाइग चुइक हे। सेइ से ऊकर हृदय में ऊकर सहेक बउसाव से बगरा लहइर आउर बथा होवत हे। ई जलन के बुतायक इया घटायक कोसिस में आँइख से लोर बहत हे। लेकिन बिरह रूपी आइग एतना जोर से लागल है कि इकर नींझेक संभव नखे। जब नायक श्रीकृष्ण आय के नायिका के मिलन कर सुख देखें तभे उनकर मन कर आइग बुती। आइग आउर पानी कर ई बरनन रूपक अलंकार देखात हे। "कंचन छबि" में श्लेष अलंकार है। का ले कि कंचन कर एक माने सोना आउर दूसर माने कबि कर उपनाम हेके जे ई गीत कर अंत में आभेइग कर रूप में आय है। कंचन छबि कर एक माने भेलक कंचन जइसन सुंदर छबि वाला कृष्ण। ई ठिन धेयान देवेक चाही कि कृष्ण पीताम्बरधारी हैं। पीताम्बर कर रंग सोना बरन पीयर है। दोसर माने कि कबि कंचन कर आखिरी कहनाम है कि आइज कर इसन सुन्दर अवसर में जब कि संपूर्ण प्रकृति आपन नाना रंग-रूप से प्रेम कर नेवता देवेक लाइग हे. सेहो अकारथ जात हे। श्री कृष्ण घर में नखै।'आजु अवसर' में "अस' सबद बहुत घेयान देवेक तइर आहे। का ले कि इकरे में नायिका कर बिरह वेदना कर लाचारी लुकल है। मन कर कसइक, वेदना आउर बिरह कर मनोविग्यान व्यक्त होवत हे। (क) तत्सम- दुन्दुभि,, चपला, प्रचंड, जलघर, अवसर, मंडुक, रजनी विकट, लोचन, नीर, दृग, कंचन, उर, विरहानल। (ख) तद्भव- सोर-शोर, चात्रिक-चातक, धुनी-ध्वनि, परखरे-प्रखर, त्रिमीर-तिमिर छबि-छवि, दादुर-दर्दुर खन-खन-क्षण क्षण, मनमथ-मन्मथ। (ग) ठेठ नागपुरी- उमडि, घहरत, झझकत, लह-लह, गह-गह. फेनी, झिकोर,ठन नन, एकसरे, कृष्ण कलाघर/सिसई/14.01.2024 उमड़ी गगन घन घमंड# कवि कंचन# umadi gagan ghan ghamand# kavi kanchan #nagpurigoith #nagpuri #nagpurimcqAbout This चैनल-----