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आखिर ऊंट आ ही गया पहाड़ के नीचे...| जवाब तो देना पड़ेगा | 1st India News Anchor Exposed | SA NEWS शिक्षित होकर आप जानबूझकर हमारे संत सतगुरु रामपाल जी महाराज का अपमान कर रहे हो। आपने हमारी आस्था पर कुठाराघात किया है। हमारी पुस्तक को सरेआम फाड़कर फेंक दिया। कृपा इसको गहराई से पढ़ते तो आप समझ जाते इस पुस्तक में शब्दा शब्द शास्त्रों का उल्लेख है। जिनको आप सच्चा मानते हैं। लिंग व लिंगी का जो चित्र पुस्तक में है उसका प्रमाण श्री शिव महापुराण के विद्यवेश्वर संहिता के अध्याय 5 श्लोक 27-30 में है। शिवलिंग क्या है तथा इसकी पूजा कैसे प्रारंभ हुई? संत रामपाल जी महाराज जी कहते हैं कि शिव महापुराण {प्रकाशक “खेमराज श्री कष्णदास प्रकाशन मुंबई (बम्बई), हिन्दी टीकाकार (अनुवादक) हैं विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र} भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता पृष्ठ 11 अध्याय 5 श्लोक 27-30 में लिखा है कि शिव के वाहन नंदिकेश्वर बताते हैं: पूर्व काल में जो पहला कल्प जो लोक में विख्यात है। उस समय महात्मा ब्रह्मा और विष्णु का परस्पर युद्ध हुआ। ( 27 ) उनके मान को दूर करने को उनके बीच में उन निष्कल परमात्मा ने स्तम्भरूप अपना स्वरूप दिखाया। ( 28 ) तब जगत के हित की इच्छा से निर्गुण शिव ने उस तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया। (29) उसी दिन से लोक में वह निष्कल शिव जी का लिंग विख्यात हुआ। (30) विद्यवेश्वर संहिता पृष्ठ 18 अध्याय 9 श्लोक 40-43 :- इससे मैं अज्ञात स्वरूप हूँ। पीछे तुम्हें दर्शन के निमित साक्षात् ईश्वर तत्क्षणही में सगुण रूप हुआ हूँ। (40) मेरे ईश्वर रूप को सकलत्व जानों और यह निष्कल स्तंभ ब्रह्म का बोधक है । ( 41 ) लिंग लक्षण होने से यह मेरा लिंग स्वरूप निर्गुण होगा। इस कारण हे पुत्रो ! तुम नित्य इसकी अर्चना करना । ( 42 ) यह सदा मेरी आत्मा रूप है और मेरी निकटता का कारण है। लिंग और लिंगी के अभेद से यह महत्व नित्य पूजनीय है। (43) अर्थात श्री शिव महापुराण (खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन मुंबई द्वारा प्रकाशित) से स्पष्ट है कि काल ब्रह्म ने जान-बूझकर शास्त्र विरुद्ध साधना बताई है क्योंकि यह नहीं चाहता कि कोई शास्त्रों में वर्णित साधना करे। इसलिए अपने लिंग (गुप्तांग) की पूजा करने को कह दिया। पहले तो तेजोमय स्तंभ ब्रह्मा तथा विष्णु के बीच में खड़ा कर दिया। फिर शिव रूप में प्रकट होकर अपनी पत्नी दुर्गा को पार्वती रूप में प्रकट कर दिया और उस तेजोमय स्तंभ को गुप्त कर दिया और अपने लिंग (गुप्तांग) के आकार की पत्थर की मूर्ति प्रकट की तथा स्त्री के गुप्तांग (लिंगी) की पत्थर की मूर्ति प्रकट की। उस पत्थर के लिंग को लिंगी यानि स्त्री की योनि में प्रवेश करके ब्रह्मा तथा विष्णु से कहा कि यह लिंग तथा लिंगी अभेद रूप हैं यानि इन दोनों को ऐसे ही रखकर नित्य पूजा करना। इसके पश्चात् यह बेशर्म पूजा सब हिन्दुओं में देखा-देखी चल रही है। यह पूजा काल ब्रह्म ने प्रचलित करके मानव समाज को दिशाहीन कर दिया। वेदों तथा गीता के विपरीत साधना बता दी। इसलिए हमें शास्त्रोक्त तरीके से भगवानों की भक्ति करनी चाहिए। तीनों देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी) की उत्पत्ति संत रामपाल जी महाराज जी पुराणों से प्रमाण सहित बताते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी की उत्पत्ति काल रूपी ब्रह्म (सदाशिव) और प्रकृति देवी दुर्गा (शिवा) से हुई है। श्री शिव महापुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित) के रूद्रसंहिता खण्ड में अध्याय 5 से 9 में अपने पुत्र नारद जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री ब्रह्मा जी स्वयं कहते हैं कि आपने सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता के विषय में जो प्रश्न किया है, उसका उत्तर सुन। प्रारम्भ में केवल एक “सद्ब्रह्म” ही शेष था। सब स्थानों पर प्रलय था। उस निराकार परमात्मा ने अपना स्वरूप शिव जैसा बनाया। उसको “सदाशिव” कहा जाता है, उसने अपने शरीर से एक स्त्री निकाली, वह स्त्री दुर्गा, जगदम्बिका, प्रकृति देवी तथा त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) की जननी (माता) कहलाई, जिसकी आठ भुजाएं हैं, इसी को शिवा भी कहा है। फिर सदाशिव (काल रूपी ब्रह्म) और शिवा (दुर्गा) ने पति-पत्नी रूप में रहकर एक पुत्र की उत्पत्ति की, उसका नाम विष्णु रखा। फिर श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि जिस प्रकार विष्णु जी की उत्पत्ति शिव तथा शिवा के संयोग (भोग-विलास) से हुई है, उसी प्रकार शिव और शिवा ने मेरी (ब्रह्मा की) भी उत्पत्ति की। यही प्रमाण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 14 श्लोक 3-5 में भी है कि रज (रजगुण ब्रह्मा), सत (सतगुण विष्णु), तम (तमगुण शंकर) तीनों गुण प्रकृति अर्थात् दुर्गा देवी से उत्पन्न हुए हैं। प्रकृति तो सब जीवों को उत्पन्न करने वाली माता है, मैं (गीता ज्ञान दाता) सब जीवों का पिता हूँ। मैं दुर्गा (प्रकृति) के गर्भ में बीज स्थापित करता हूँ जिससे सबकी उत्पत्ति होती है। __________________________________________ For More Update Follow Us On Social Media Facebook: / satlokashramnewschannel Twitter : / satlokchannel Youtube : / satlokashram Instagram : / sanewschannel Official Site: https://jagatgururampalji.org Website : http://sanews.in