У нас вы можете посмотреть бесплатно Asa Rasa Mahan Mohin Sadguru Bori | Kripaluji Maharaj Sankirtan | Sadguru Madhuri или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
Written and Composed by Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj Prem ras Madira- Sadguru Madhuri अस रस महँ मोहिं सद्गुरु बोरी। धर्म अर्थ अरु काम मोक्ष रस, सबै लगत मो फीको री। कहँ लौं कह बैकुण्ठ-लोक हूँ, रुचि नहिं टुक सपनेहुँ मोरी। इक भावत चंचल नंदनंदन, इक वृषभानुलली भोरी। गिरिजा-अजा-जलधिजा-दुर्लभ, पियत रास रस ब्रजखोरी । कह 'कृपालु' अस सद्गुरु ऋण ते, उऋण न कोटि कल्प कोरी। भावार्थ-एक शरणागत शिष्य कहता है कि मुझे मेरे सद्गुरु ने ऐसे प्रेमरस में डुबो दिया है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पदार्थ उस रस के आगे फीके लगते हैं । कहाँ तक कहें बैकुण्ठ लोक का सुख भी स्वप्न में नहीं प्रिय लगता है । बस एक चंचल श्याम सुन्दर एवं भोली-भाली राधारानी ही प्रिय लगती हैं । अब मैं ब्रह्माणी, रुद्राणी, लक्ष्मी आदि से भी दुर्लभ रास-रस को ब्रज की कुंजों में निरन्तर पीता हूँ । 'कृपालु' कहते हैं कि ऐसे सद्गुरु के ऋण से मैं करोड़ों कल्प में भी उऋण नहीं हो सकता ।